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________________ बहनोंके प्रति ( श्री चन्दगीराम विद्यार्थी) बहनों ! उठो ! बहुत सो चुकीं । अब सोनेका परन्तु इसका उल्टा अर्थ लगाकर, बेकार घर में बैठकर ममय नहीं है । जरा नजर उठाकर देखिए, पुरुषोंने पतिदेवके लिए भार-स्वरूप होना तो उचित तथा आपको अबला तथा अयोग्य प्रसिद्ध करके, आपके शोभनीय नहीं है। मच अधिकार छीन लिए हैं। आपको कायर तथा आप उठिए । सुशिक्षा प्राप्तकर, प्रत्येक काममें बुजदिल समझ लिया है। अपने पतिदेवका हाथ बटाइप-अपने अर्धाङ्गिनी बहनो! जरा विदेशोंकी ओर देखिए। वहांकी पदको जीवन में उतार कर दिग्बाइए । बहनोंने कितनी उन्नति कर डाली है तथा दिनप्रतिदिन प्राचीन समयमें आपका कितना आदर तथा मान उन्नतिकी ओर अग्रसर होरही हैं। वे किसीके आधीन था। यह हमारे प्राचीन धर्मग्रन्थोंसे भली प्रकार नहीं हैं। प्रत्येक कार्यमें अपने पतिदेवके साथ २ चल प्रकट है। मनु महाराज. अपनी मनुस्मृतिमें लिम्ते हैं कर उनका हाथ बटाती है। किसी २ बात में तो पति यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः। दवस भी दो कदम आगे बढ़ गई हैं। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते मस्तित्राऽफला क्रियाः॥ पुरुष-समाजने आपको सब ओरसे दवाया। यहां जिस कुल में, जातिमें, देशमें स्त्रियां पूजी जाती तक कि आपका शिक्षाका द्वार भी बन्द कर दिया। हैं-उनका श्रादर तथा सम्मान किया जाता है, वहां तो फिर रहा क्या? आपकी अवनतिका कारण- देवता वास करते हैं और जहां खियोंकी पूजा नहीं शिक्षाका अभाव ही तो है। होती-उन्हें घृणाकी दृष्टिस देखा जाता है, उनका शिक्षामे मेग प्रयोजन यह नहीं है कि आप बी० निरादर तथा अपमान किया जाता है, वहां सम्पूर्ण ए०, एम० ए० की गिरियां लेकर बेकार घर में बैठ कर्म निरर्थक हो जाते हैं-प्रत्येक कार्य असफल जायें और किसी कामको हाथ तक न लगावें; रातदिन हो जाता है। अपने शरीरको मजानेमें ही लगी रहें, वरन सुशिक्षित बहनों, यह है भी मत्य । इसमें सन्देहके लिये , होकर अपने प्रत्येक कार्यको बुद्धिमत्तास भली प्रकार कोई स्थान ही नहीं है । आज पुरुषोंने आपको केवल करें। शिक्षाके साथ साथ शिल्पकला भी सीखें, ताकि भोग-विलासकी ही सामग्री समझ रक्खा है। उनके अपने घरमें बेकार न बैठकर, अपने निर्वाह योग्य संकुचित हृदयमें यह विचार घर किए हुए है कि प्राय पैदा करके अपने पतिदेवसे किसी भी दशामें "खियाँ कुछ नहीं कर सकतीं। वे मर्वथा हमारे पीछे न रहें। अपने पेरोंपर खुद खड़े होनका पाठ प्राधीन हैं। उनका यही कत्तव्य तथा धर्म है, कि पढ़ें। आजकल बहुत मी अशिक्षित बहनोंका जीवन, दासीके रूपमें रह कर, मवंदा अपने आपको पुरुषपूर्णरूपसे अपने पतिदेवोंपर ही निर्भर है । यदि समाजस निर्बल तथा हीन समझती रहें।" परन्तु पतिदेव कमाकर न लावें तो उनको भोजन देने वाला बहनों, उनका यह विचार सवथा असत्य तथा निगफिर संसार में कोई नहीं। वे स्वयं कुछ नहीं कर दरणीय है। उन्हें नहीं मालूम कि देशकी उन्नति प्राप सकतीं । पतिदेव ही उनका सब कुछ है। माना; कि पर ही निर्भर है। यदि आप शिक्षिता होंगी, तो आप एक भारतीय महिलाकी दृष्टिमें उनके पतिदेव ही उस की संतान भी योग्य होगी । संतान-शास्त्र स्पष्ट शब्दोंमें के सब कुछ है-उसके ईश्वर हैं, उसके प्रीतम हैं। कह रहा है कि माता-वीर, धर्मात्मा, महात्मा, जैसी
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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