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________________ केवलज्ञानकी. विषय-मर्यादा ३१६ नामक भावकको उपदेश देवेंगें तो वे ८७५ धनुषकी बता इन खोखले नि:सार विकलोंको वे नहीं जानते हैं क्यों किये देंगे। क्या ये अपेक्षाकृत नागोंकी मब संख्यायें व ज्ञानीको प्रापेक्षिक परिवर्तनशील धर्म न तो कोई गुर हैन वस्तुभूत प्रतीत हो रही है? कथमपि नहीं। किन्तु प्राप लोगोने पर्यायें हैं और न द्रव्य है। सर्व द्रव्यपर्यायेषु केबलस्य" अपने विचारात्मक श्रतज्ञानमें शात करली है। मास्विर इसकी ही पकड़े रहो अधिक के लियेथन पसारो। श्रोताओं को किसी न किसी ढंगसे वस्तुस्थितिका ज्ञान तोहोवे। नव्य नैयायिकोंके यहा चौसठ विशेषणोंसे सहित कहा अापके पास एक लोटा दृघ है। अापकी श्रुत-हष्टमें गया जहाँ जहाँ धुश्रा है वह वहां अग्नि अवश्य होती वह एक सेर है। कोई दो पौएड कर रहा है। तसरा ही है ऐमा विचारात्मक, व्यामिशान केवलज्ञानीक नहीं न्यारे सेरसे १५ छटांक बता रहा है। यो उम दूधकी पाया जाता है। इधर व्यामिशानका विषय माना गया, सैकड़ों हजारों तोल है। अनेक जीव दूधको मिल्क, क्षीर, अविनाभाव-सबन्ध कोई चीन नोही, बम इसी कारण पयः, स्तन्य श्रादि शब्दोंसे जान रहे हैं। क्या केवलज्ञानी श्राप सच्चे है। वस्तुत: भगवान के प्राविनाभाष, शत्रु-मित्रभी उक्त विकल्पोंके साथ दूधको जान रहे हैं? कदाचित भाव, स्वस्वामी सम्बन्धये क्षण क्षण में बदलने वाले कांस्पत नहीं। वे न तो हिन्दी शब्द दूध लगा रहे हैन अग्रेजी मिल्क बहुरूपिया पोले सम्बन्ध भी शेय नहीं है। थोड़ी थोड़ी देर बईकी योजना कर रहे हैं। वे मब नयशान है-"यावन्तः मान कर पुन: कट मेंट देने वाले खिलाड़ी छोकरोंकी तोताशब्दास्तावन्तो नया:" सहारनपुरमें ८६ का सेर है, बम्बई में चस्म दोस्तीके गढन्त नातोको भगवान् पग्शिात नहीं करते २८ रुपये भरका से है। चन्दौमीमें ८८ तोलेका मेर है हैं। वहां छत्र है अतः लाया होना ही चाहिये ऐसे अनुमान कहीं८. या ७८ तोलेका सेर है। धी मनका ३६ सेर शान भी आपके ही पास हैं। होना चाहिये, भगवान् सेर तुलता है। सहारनपुरमें सैकड़ा श्राम एक सौ चारह क्या किया जाय, हो सकता, चांदी तेज हो जायगी ऐसा गिने जाते हैं। कहीं १२. का सैकड़ा है इत्यादि झंझटोंमें क्याल दौड़ता है। दो और दोचार होते है, ऐसे संभाव्यमान केवली नहीं पड़ते है जैसा कि विचार-विनमय व्यापारी जन उल्लेख्य विषयोको जो परसंग्रहनयसे सब सत् है, केवली नहीं करते रहते हैं। हाँ, ये विकल्पकशान भूठे या मच्चे या छूते हैं। अनुमेयल और व्यामिशानगम्यत्व धौंको भी कयली उभय, अनुभय यदि आपकी आत्मामें उपज गये हैं तो उन नहीं जान पाते हैं। हमें कोई अनुमानशान या व्यतिज्ञानको आपके शानोंको भगवान् जान लेंगे। वे उन शानोंके फोकस अपनी यात्मामें उपजावेगा उस शानको अवश्य जान विषयोंक झमेलेमें नहीं पड़ते हैं। हमारे सामने कपड़ेका जावेंगे। क्योंकि यह शान नो परोक्षशानी चैतन्य गुणकी एक थान रमवा है वे उम कपड़ेकी अशुद्ध द्रव्य, गुण, वास्तविक पर्याय है जो केवलीको जाननी ही है। पर्यायशक्तियां, पर्यायों और अविभागप्रतिच्छेदोको जान रहे यों तो केवली भगवान सब झूठे शानोको जान रहे है-प्रत्येक परमाणु तककी तीनों कालोंकी अवस्थाश्रोंका है। सीपको चान्दी समझे हुये मिथ्याज्ञानीके विपर्ययज्ञानको साक्षात् प्रत्यक्ष कर रहे हैं। किन्तु वह थान पाँच वर्ष प्रथम सर्वश अवश्य जानते हैं। कल्पनाशानोका भी या प्रत्यक्ष कर ५) रुपयका था, दो वर्ष प्रथम १०) में बिका था। अब रहे हैं परंतु उनके शेय अंशका नहीं। जैसा कि जज साहब १६)का भाव निकाला है दिल्ली में मृल्य १४).अह- चोर, हत्यारे, डाकू, व्यभिचारीके दोषोंका मात्र शान कर मदाबादमें १२॥) है यहाँ सहारनपुरमें ही दूसरा दुकानदार लेते हैं अन्तरा अनुभव नहीं। विषयका शान नहीं होते १५) रु. में देता है येही बजाज दूसरे ग्राहको अभी १५॥) हुये भी विषयीका ज्ञान हो सकता है। देखो "प्रमेयकमल में दे चुके हैं। केवली किस मूल्यको ठीक श्रा, तुम्ही बताओ? मार्तण्ड ७२ वां पत्र। जयपुरका रुपया १००) में, दीका १०)में, कोटाका १०)में, एक चौकी हमारे सामने रक्ली है। उसके त्रिकालबती अमेरिकाका डालर )में, यो जोधपुर, बीकानेर, कोलापुर, द्रव्य, गुण, पर्यायोंको केवली आमूलचूल मान रहे है। रूस, जर्मन, जापान प्रादि कहांके रुपयोंसे मूल्यकोमध्य केन्द्रित अनन्त पर्यायों में से एक एकके अनन्तानन्त अविभागप्रतिच्छेद करें? ये भाव (रेट)बहुत शीघ्र बदलते भी राते है। वस्तुत उनके शानमें अविकल मालक रहे है, किन्तु वह चौकी
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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