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________________ * ॐ अहम् * तत्व-प्रकार वार्षिक मूल्य ४) ० (Auttinkaja नीतिविरोषवतालोकव्यवहारवर्तक-सम्मा। परमागमस्यबीज भुवनेकगुरुर्जयत्यानेकान्तः। अप्रेल वर्ष ६ किरण वीरसेवामन्दिर, (समन्तभद्राश्रम) सरसावा जिला सहारनपुर वैशाखशुक्ल, वीरनिर्वाण संवत् २४७०, विक्रम सं० २०.. ११४४ समन्तभद्र-भारतीके कुछ नमूने श्रीमुनिसुव्रत-जिन-स्तोत्र अधिगत-मुनि-सुव्रत-स्थिति,निवृषभो मुनिसुव्रतोऽनघः । मुनि-परिषदि निवेभो भवानपरिषत्परिवोतसोमवत ॥१॥ 'मुनियों के सुव्रतोंकी-मूलोत्तर गुगणोंका--स्थतिको अधिगत करने वाल-उसे भले प्रकार जानने वाले ही नहीं किन्तु स्वतःके पाचरण-द्वारा अधिकृत करने वाले -(और इस लिए) 'मुनि-सुव्रत' इस अन्वर्थ संज्ञाक धारक हे निष्पाप (पानिकर्म-चतुष्टयरूप पापसे रहित) मुनिराज ! श्राप मुनियोंकी परिषद्म-गणधराांद जानियो की मभा (समवमरण) में-उसी प्रकार शोभाको प्राप्त हुए हैं जिस प्रकार कि नक्षत्रों के मूहस परिवेग्रिन चन्द्रमा शोभाको प्राप्त होता है।' परिणतशिखिकएठरागया कृतमद-निग्रह-विग्रहाऽऽभया । लव जिन तपसः प्रसूतया ग्रहपरिवेषरुव शोभितम् ॥ २॥ 'मद-मदन अथवा अहंकारके निप्रहकारक-निरोधहचक-शरीरके धारक हे मुनिमवत जिन : आपका शरीर तपसे उत्पन्न हुई तरुण-मोरके कण्ठवर्ण-जैसी आभामे उमी प्रकार शोभित हुश्रा है ज़िम प्रकार कि प्रहपरिवेषकी-चन्द्रमाके परिमण्डलकी-दीप्ति शोभती है।'
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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