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________________ किरण ] गोत्र-विचार २११ मालूम हो कि इस विषय में सार्थसिद्धि चादि और . यहां बन्ध्यपर्याप्सक मनुष्योंका विचार करना ही त्रिलोक-प्रज्ञप्ति मादिमें दो मत नहीं हैं। विवक्षाभेदसे निष्फल है। यह सब व्यवस्था तो गर्भज मनुष्यों की अपेक्षा सर्वार्थसिद्धि प्रादि में दो प्रकार म्लेच्छ और त्रिलोक-प्राप्ति से की गई है। ये तो केवल मनुष्यगसि सम्बन्धी कर्मक आदिमें तीन प्रकारके म्लेच्छ बतलाये हैं। उदयसे मनुष्य कहे जाते हैं। हम समझते हैं कि मनुष्योंके दो भेद किस प्राधारसे किन्तु यहां एक बातका निर्देश कर देना और इष्ट किये गये हैं इसका कथन इस उपर्युक्त पमाधानसे हो जाता मालूम होता है। यह बात यह है कि त्रिलोक-प्राप्ति और है, अतः इसका हम अलगसे विचार नहीं करते हैं। तात्पर्य जीवकाण्डमें बताया है कि प्रार्यखण्डके मनुष्योंके शरीरों यह है कि भगवान् भादिनाथने षट्कर्मके अनुसार कर्मस में ही लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्य होते हैं म्लेच्छण्डके मनुष्यों जिस वर्णव्यवस्थाका प्रारम्भ करके उसके अनुसार समाज के शरीरों में नहीं। इसका अभिप्राय तो यही मालूम होता रचना की थी उसके अनुसार वर्तन करने वाला मनुष्य है कि म्लेच्छरूण्डोंमें भी लब्ध्यपर्याप्तक तिथंच और मनुसमुदाय मार्य कहलाया और शेष अनार्य कहलाया। भोग- प्य उत्पम नहीं होते। पर इस सम्बन्धमें जब तक पूरे भूमि और कुभोगभूमिमें यद्यपि यह व्यवस्था नहीं हैं पर प्रमाण नहीं मिल जाते तब तक किसी एक निर्णय पर यहांके सारूप्य वर्तनसे वहाँ भार्य म्बेच्छ विभाग मान पहुंचना कठिन है। लिया गया है। . आवश्यकता मूर्तिदेवी अन्धमाल में निम्नलिखित ग्रंथ प्रकाशित करनेकी योजना की जा रहीहै: (१) राजवार्तिक (अकलंकदेव) (२) सिधिविनिश्चयटीका ( मूल अकलंक टीका अनन्तवीर्य) (३)न्यायविनिश्चय विवरण (मूल प्रकलंक टीका वादिराजसूर ) (५) अमोघवृत्ति (५) शाकटायनन्यास (६) जैनेन्द्र महावृत्ति (७) शब्दाम्भोजभास्कर () लोक विभाग (6) त्रिभंगीसार (१०) दशभक्ति (वर्धमान) (1) तत्वार्थ-तात्पर्य वृत्ति (श्रुतसागर) (१२) रत्नकरण्ड (अपनश श्रीवन्द) चादि। रमागौरव माता (हिन्दी) का कार्यक्रम शीघ्र ही प्रकाशित होगा। इसी तरह कनक, तामिन सीरीज, इंगलिश सीरीज, जैन पुरातत्व सीरीजके लिये योग्य सम्पादकोंका चुनाव किया जा रहा है। आवश्यकता-ऐसे विद्वानोंकी, जिमने सम्पादन संशोधन अनुवाद बारिक क्षेत्र में कार्य किया हो, अथवा इस क्षेत्रमें दिलचस्पीसे कार्य करनेकी इच्छा रखते हों। अपनी योग्यता प्रादिके विवरण के साथ पत्र लिखें। वेतन योग्यतानुसार उतना अवश्य दिया जायगा जिससे वे साधारणतया निराकुल होकर कार्य कर सके एकेडेमोकी मुख्य कार्यालय काशीमें है। अतः नियमित माफिपके कार्यके बाद उन्हें अपनी योग्यता बढ़ानेका सुअवसर है। जो विद्वान वैतनिक कार्य न करके अन्य प्रकारसे पारिश्रमिक लेकर या अवैतनिक ही इस साहित्य यज्ञमें अपना सहयोग देना चाहते हैं वे भी कृपया सूचित करें। . भंडाराध्याय और भंडारोंसे परिचय रखने वाले महानुभाष प्राचीन संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश या देशी भाषाओं में निषद्ध उन अन्योंकी सूचना देनेकी कृपा करें जो अभी तक प्रकाशित है। नवीन साहित्य निर्माणमें रुचि रखने वाले विद्वज्जन अपनी कार्यकी दिशा लिखनेकी कृपा करें ताकि उन्हें अपेक्षित सहयोग दिया जा सके और उनके साहित्य प्रकाशनकी व्यवस्था की जाय। पत्रव्यवहारका पता-पं. महेन्द्रकुमार शास्त्री, न्यायाचार्य कार्यालय मंत्री श्रीजैन विद्यापीठ भदैनीघाट बनारस
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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