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________________ किरण] एक मुमाफिर २८३ x आँखोंमें सुखर्जी थी । पूरी रातका जागरण झलक मुझे आपसे दूर कर दिया! अच्छा, चलता हूँरहा था। नमस्ते गुप्त जीने अनबार मोड़ते हुए पूछा-'क्यों, और गुप्तजी कुछ बोल न सके । समझ ही नहीं पा रहे कुछ कहना चाहते हो?' थे कि माजरा क्या है ? 'जी ' और शंखर आँखोंसे ओझल ! गुप्तजीने उसकी ओर ताका, जिसका अर्थ था-- अचानक गुप्त जीके मुँहसे निकला-स्तीफा xx 'क्या ?? 'समझ रहे हो, मैं किसकी बात कह रहा हूँशेखरने दृद-स्वरमें पूछा- 'क्या आप मुझपर वही जो मेरी कोटरीके बराबर वाली कं.ठरीमें नयाविश्वास करते हैं? मुसाफिर पाया है न ? उसके साथ शायद उसकी गुप्तजीन संक्षेपमें कहा-- बहुत। औरत भी है बच्चा है, है न ? शेखरने जेबसे एक काराज निकालकर, गुप्तजीके सरायवालेन बात पकड़कर जल्दीसे कहा-'हाँ, हाथमें देते हुए कहा- 'तो इसपर दस्तखत कर हाँ समझ गया! अच्छा तो उन बाबूजीको यह खत दीजिए। सिफे यह देख लीजिये कि दस्तावेज नहीं, देना.."एँ?" एक चिठ्ठी है। लेकिन पढ़िए नहीं! मुझपर विश्वास शेखग्ने चिटी देते हए कहा-'हाँ, बस! इतना कीजिए गुप्तजी!! ही काम तो है।' गुप्तजी सैकिण्ड-भर रुके । शायद सोच लिया'आदमी दगाबाज नहीं मालूम पड़ता ।' और फिर शेखरने अपनी कोटरीमें सुनापति कह रहा बरौर श्रागा-पीछा किए जेवस 'पेन' निकाल कर था-'अरे, गुप्तजी मुझे फिर वापस बुला रहे हैं ! दस्तखत बना दिए ! वेतनमें भी बीस रुपयेकी तरक्की--श्रो हो ?' शेखरके मुँहपर प्रसन्नता खल उठी । पर, गुप्तजी स्त्री कह रही थी-'भगवान ! डूबती नैय्याको थे मंत्रमुग्ध ! कागज जेबमें रखता हुश्रा, शेखर किनारेसे लगा दिया-धन्य हो प्रभु!' बोला--'धन्यवाद ! शेखरका मन प्रसन्नतासे भर उठा। वह मुग्ध हो फिर दूसरा कागज निकालकर देते हुए शेखरने गुरगुनाने लगाहाथ मिलाया और मुस्कराकर कहा-'गुप्तजी! आप भगवान !बड़े अच्छे आदमी हैं। मुझे दुःख है कि किस्मतने 'भगवान किनारेसे लगादो मेरी नैय्या !! जैन विद्यापीठका आयोजन दानवीर साहु शान्तिप्रसादजी, डालमियानगर द्वारा काशीमें जैन विद्यापीठ (Jain acadimy) का आयोजन किया जा रहा है। इसमें संस्कृत प्राकृत अपभ्रंश तथा विभिन्न प्रान्तीय देशी भाषाओमें निबद्ध जैन साहित्यका मूल और यथासंभव हिन्दी अनुवादसहित प्रकाशन, विभिन्न भाषाओं में नव माहित्य निर्माण, सम्पादन शिक्षण, व्याख्यानमालायें, निबन्धप्रतियोगिता, भतरसूची आदि कार्यक्रम चालू होंगे। आवश्यकतानुसार जैनबोर्डिङ्ग स्थापन आदिका भी विचार है । उपयुक्त कार्यक्रमकी पूर्ति के लिये विशाल जैन लायब्रेरीका संघटन तथा रिसर्च विभागका भी आयोजन किया जा रहा है। सौ० रमारानीजी अध्यक्षा हैं। पं० महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्य, मूकिदेवी ग्रंथमालाके प्रधान सम्पादक दतथा कार्यालय मन्त्री नियुक्त किये गये हैं। उनने काशी जाकर आफिसका कार्य सम्भाल लिया है। -अयोध्याप्रसाद गोयलीय य ए
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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