________________
अनेकान्त
[वर्ष ६
परिश्रमाम्बुर्भयवीचिमालिनी स्वया स्वतृष्णा-सरिदार्य शोषिता ।
प्रसङ्ग-धर्मार्क-गभस्ति-तेजसा परं ततो निवृतिधाम तावकम् ॥ ३ ॥ 'जिसमें परिश्रमरूप जल भरा है और भय रूप तरंग-मालाएँ उठती हैं उस अपनी तृष्णा नदी को हे आर्य (अनन्तजित् ) ! आपने अपरिग्रह-रूप ग्रीष्मकालीन सूर्य की किरणों के तेजसे सुखा डाला है. इस लिये मापका निवृत्ति-तेज उत्कृष्ट है।'
(इस परसे स्पष्ट है कि तृष्णाको जीतनेका अमोघ उपाय अपरिग्रह व्रतका भलेप्रकार पालन है। पारग्रहके रहते तृष्णा उत्तरोत्तर बढ़ा करती है, जिससे उसका जीतना प्राय: नहीं बनता।)
सुहत्वयि श्रीसुभगत्वमश्नुते द्विषमस्वयि प्रत्ययवत प्रलीयते।
भवानुदासीनतमस्तयोरपि प्रभो! परं चित्रमिदं तवेहितम् ॥४॥ हे भगवन ! जो आपमें अनुराग-भक्तिभाव रखता है वह श्रोविशिष्ट सौभाग्यको-ज्ञानादि-लक्ष्मीके श्राधिपत्य श्रादिको-राप्त करता है और जो आपमें द्वेषभाव रखता है वह प्रत्ययकी तरह-व्याकरण शास्त्रमें प्रमिद्ध 'विप्' प्रत्ययके सम्गन अथवा क्षणस्थायी इन्द्रियजन्य ज्ञान के ममान-विलीन (नष्ट) होजाता है-नरकादिक. दुर्गनियोंमें जा पड़ता है। परन्तु थप अनुरागो (मित्र) और द्वेषा (शत्रु) दोनों में अत्यन्त उदासीन रहते हैंकिमीका नाश चाहते हैं और न किसीकी श्रीवृद्धि; फिर भी मित्र और शत्रु स्वयं ही उक्त फलको प्राप्त हो जाते है-, यह आपका ईहित-चरित्र-बड़ा ही विचित्र है-अद्भुत माहात्म्यको प्रगट करता अथवा गुप्त रहस्यका सूचक है।
स्वमीहशसताहश इत्ययं मम प्रलापलेशोऽल्पमतेमहामुने।।
अशेषमाहात्म्यमनीरयन्नपि शिवाय संस्पर्श इवाऽमृताम्बुधेः॥५॥ (हे भगवन् !) आप ऐसे हैं-वैसे हैं-श्रापक ये गुण हैं-बे गुण हैं-,इस प्रकार मुझ अल्पमतिका-यथाबत् गुणोंके परिज्ञान से रहित स्तोत का-यह-स्तुतिरूप थोड़ासा प्रलाप है। (तब क्या यह निष्फल होगा ? नहीं) अमृत समुद्र के अशेष माहात्म्यको न जानते और न कथन करते हुए भी जिस प्रकार उसका संस्पर्श कल्याण-कारक होता है उसी प्रकार हे महामुने! आपके अशेष माहात्म्यको न जानते और न कथन करते हुए भी मेरा यह थोडासा प्रलाप आपके गुणोंके संस्पर्शरूप होनेसे कल्याणका ही हेतु है।
जैन-साहित्यमें अनूठे प्रकाशन । सुप्रसिद्ध लेखक--श्री 'भगवत्' जैनकी मनोरंजक साहित्यिक कृतियाँ उस दिन [अतीतकी कहानियां]- चाँदनी
[अन्तरङ्गमें आलोक भरने वाली कविताएँ] मूल्य क्रमशः १) तथा ।।3) दोनों के लिए मय पोष्टेज पौने दो रुपये भेजने चाहिए। पयूषणके अवसरपर 'उसदिन' की यथाशक्ति प्रतियाँ अजैन विद्वानों, लायनेरियों और शिक्षा-संस्थानोंको भिजवाइये
पता- व्यवस्थापक 'भगवत् भवन' पो० ऐत्मादपुर (आगरा)