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________________ * ॐ अहम् - स्वतत्त्व-सं तत्व-प्रकाशव वार्षिक मूल्य ४) ० एक किरण का मूल्य -) नीतिविरोधचसीलोकव्यवहारवर्तकसम्यक् । परमागमस्यबीज भुबनेकगुरुर्जयत्यनेकान्तः॥ मार्च वर्प ६.किरगा वीरसेवामन्दिर, (समन्तभद्राश्रम) सरमावा जिला महारनपुर चैत्रशुषण, वीरनिर्वाण संवत २४७०, विक्रम सं. २००१ १६४४ समन्तभद्र-भारतीके कुछ नमूने ' [ १६ ] श्रीमल्लि-जिन-स्तोत्र यस्य महर्षेः सकल-पदार्थ-प्रत्यवोधः समजनि साक्षात् । साऽमर-मयं जगदपि सर्व प्राञ्जलि-भूत्वा प्रणिपतति म्म ॥१॥ 'जिन महर्षि-मल्लिजिनके मकल पदार्थोंका प्रत्यनाध-नीवादि-मंपूर्ण पदाथोंको बोरसे अशेषविशेषको लिये हुए जाननेवाला परिज्ञान (केवलजान)-साक्षान (हन्द्रिय-श्रुनादि-निरपेन प्रत्यक्ष रूपमे उत्पन्न हुआ, (और इसलिये) जिन्हें देवों तथा मर्त्य जनोंके माथ सारे ही जगतने हाथ जोड़कर नमस्कार किया,(उन मल्लिजिनकी मैंने शरण ली है।) यस्य च मूर्तिः कनकमयीव स्वस्फूदाभा-कृत-परिवेषा। बागपि तत्त्वं कथयितुकामा स्यास्पदपूर्वा रमयनि साधून ॥२॥ जिनकी मूर्ति-शरीराकृति-सुवर्णनिर्मित-जमी है और अपनी म्फुगयमान श्राभाम परिमण्डल किये हप है-संपूर्ण शरीरको ध्यान करने वाला भामंडल बनाये हुए है-, वाणी भी जिनकी 'स्यात' पदपूर्वक यथावन
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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