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________________ वीर-शासन-जयन्ती-महोत्सव और विशेषाङ्क इस वर्ष राजगृह (विहार) में होनेवाला वीरशासन- . पूरा समाचार नहीं मिला। कुछ बंगाली विद्वानोंका भी जयन्ती-महोत्सव अब बहुत निकट आ गया है। महावीर आप सहयोग प्राप्त कर रहे हैं, जिससे अनेकान्तके विशेषाश जयन्ती (चैत्रशुक्ल १३) से उसे कुल तीन महीने रह के लिये चोटीके जैन विद्वानोंके भी उत्तम लेखोंकी प्राप्ति जायेंगे। इस थोडेसे असेंमें हमें बहुत काम करने के लिये हो सके। गरज बाबु छोटेलालजी उत्सवको सफल बनाने हुए है और ये तभी सुसम्पन्न हो सकेंगे जब वीरशामनसे की धुनमें जी-जानसे लगे हुए हैं- दसरोंको भी इसी तरह प्रेम रखने वाले सभी सज्जन और खासकर जैन विजन लगना चाहिय । पाशा है हम महोत्सव-सम्बन्धी योजवीरशासनके प्रति अपने कर्तव्यको समझकर उसकी मेवाके नाचौंकी अनेकान्तकी अगली किरणा में प्रकाशित करने में लिये जी-जानसे जुट जाएँगे- बिना किसी प्रेरणा के स्वच्छा समर्थ हो सकेंगे। से महोत्सव-सम्बन्धी कार्योंमें हाथ बटानेके लिये भागे इधर अनेकान्तके विशेषाः 'चीरशासना' की विज्ञप्ति भाएंगे और अपनको अपनी रुचिके अनुसार सेवा कार्य के को पढ़ कर कितने ही विद्वानाने उम पर अपनी प्रयजना खिये पेश करेंगे। अकेला वीरसवामन्दिर कुछ नहीं कर व्यन की है और लेखों का वचन दिया-कुछने तो लेम्ब मकता-ऐसे महान कार्य सभीके सहयोग एवं मामूहिक भेज भी दिय है। परन्तु यह पूरी तौरस अभी तक मालूम शक्तिके प्रबल प्रयोगमे ही सम्पन्न हुथा करते हैं। जब यह नहीं हो सका कि कौन कौन मजान लेख लिख रहे हैं योगकी धावाज सुनाई पहनी है तब कामको उठाने वालों अथवा लिखनेका इरादा बने है। इसकी सूचना ना उन्हें का हदय भी उम्साहसे भर जाता है और वे बहुत कुछ कृपया शीघ्र ही दे देनी चाहिय, जिम कायंका ठाक. मादयका कार्य कर जाते हैं। अन्दाजा हो सके धार जो विषय न लिम्ब पा रहे हों उन बाब छोटेलालजी जैन रईम कलकत्ता. जो इस मही के लिम्बानकी योजना की जा सके। मवर्क प्रस्तावक और वीरवामन्दिरक प्रधान ही नहीं डा. वामदेवशरणजी अप्रवान्न एम. ए., क्युरेटर किन्तु उसके नाया है. श्राजकस्त उन्मवको सफल बनानके लखनऊ म्यूजियम श्राज कल रामनगर (Hign ) की लिये बड़ी बड़ी योजनाएं कर रहे हैं। वे इस महात्मवकी तरफ हारेपर है अत: उन्होंने सम्पादनमारको ट नमें यादगार और वीरशासनकी स्मृति एवं ठोम प्रचारकी दिशा असमर्थता व्यक्त करने हए लम्बनऊ. जाकर अपना लेख में कोई बड़ा महान कार्य कर जाना चाहते हैं। उन्हें ठाम अवश्य ही भेज देनकी स्वीकारता दी है और माथ ही काम पसन्द है और ठोम काममें ही समाजकी शकिका विशेषाङ्ककी विज्ञप्तिको पढ़ कर उमपर अपना हर्ष तथा व्यय करनेके वे इच्छुक हैं। अभी जन्होंने मुझे कलकत्ता कार्यकं साथ हार्दिक महानुभूति प्रकट की है डा० बुलवाया था और अपनी कुछ योजना बनलाई थीं, जिन्हें ए. एन. उपाध्य एम. ए. कोल्हापुर और प्रो. मालूम करक बड़ा प्रसन्नता हुई। वे मुझे साथ लेकर माह हीगलाल जी एम. ए. अमरावतीने सम्पादनमारको सहर्ष शान्तिप्रसादजीके पास डालमिया नगर गये थे-साहूजीने वकार किया है। सम्पादकमगइलम मुनि पुण्यविजयजी महयोगका पूरा वचन दिया है। बाबू निर्मल कुमारजीमे पाटन और पं. चरदामजी अहमदाबादकी योजना और मिन नेके लिये भी जाना चाहते थे परन्तु वे उस वक्त वहां की गई है, परन्तु मुनि पुग्यविजयजीने तो पाटन भण्हारों नहीं थे, बादको पत्रादिक द्वारा उनकं भी महयोगका की ग्रन्थसूचीका काम समाप्त न होने तक दूसरे किमी काम वचन मिल गया है। ये दोनों श्रीमान विहार प्रान्तकी को हाथमं न ले नेका संकल्प होने के कारण अपनी मजबूती हस्तियों है जहां उम्मच होने जारहा है। इसके सिवाय जाहिरकी और पं.बेचादाजीय अभीतक स्वीकारता प्राप्त सेठ गजराजजी मादिकी मलाहमे वे कलकत्ताके जैन न्या- नहीं हुई है। आशा है आप अपनी स्वीकारना शीघ्र पारियों का सहयोग प्राप्त करने के लिये एक मीटिंग भी करना भेजकर अनुगृहीत करेंगे। चाहते थे जो हो चुकी होगी। अभी तक अपनेको उसका (शेष टाइटिलके तीसरे पृष्टपर)
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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