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________________ ३५८ अनेकान्त [वर्ष ६ वृद्धावस्थामें भी आपकी गार लालसा कम नहीं हुई थी कविव.म है। क्या उनके कटानों और हाव भाव विनासोम केश सफेद होजाने पर भी चापका हृदय विलास कालिमासे ___ मन्न रहना ही कवि धर्म है? तुमने जिसकी प्रशंसा करने में काला ही बना था वृद्धावस्थाके कारण श्राप अपनी बास. अपमे अमुल्य समयको नष्ट कर दिया थांदा उनका सर्तम नामाकी पूर्ति करने में असमर्थ हो गए थे. युवती बालाएं तो देखो! नहीं! कवि कर्म महान उसके ऊपर जनताके सफेद बालोंको देख कर मापसे दूर भागती थीं इससे उद्धारका कठिन भार है कविता केवल मौज शौककी वस्तु मापकेहदयको जो कष्ट हुमा उसका वर्णन मापने निम्न नहीं है उस पर देश और समाजके उत्थानका कठिन उत्तरपचमें किया है। दायित्व है। केशव केशनि असकरी, जैसी भरि न कराय । यह था कविवर भगवतीदासजीकी कविताका मादर्श चन्द्रवदनि मृगलोचनी, बाबा कह मुरिजाय ॥ और उनकी अपूर्व पतित्रताका एक उदाहरण उनका लक्ष्य इसमे पापकी 'गार प्रियताका पूर्ण परिचय मिलता भारी निंदाकी ओर था किन्तु श्रादर्श पथभ्रष्ट हुए कविको है मापने रसिकोंका हृदय संतुष्ट करनेके लिए रसिकप्रिया उपदेश देना ही उनका उद्देश्य था। नामक एक ग्रन्थ बनाया था जिसमें नारीके नखशिख तक नारीको वह पवित्रता और महानताका प्रतिनिधि सभी अगोंकी अनेक तरह के अलंकारों और उपमाओं द्वारा समझते थे जमे वह केवल विनामका साधन नहीं मानते थे जी भरके प्रशंसा की है। किन्नु जब कोई उम पवित्र वस्तुको विलामकी ही सामग्री भैया भगवतीदासजीको उसकी एक प्रति प्राप्त हुई बना कर उसके गौरवमय शरीरको केवल धामना और भोग यी भैयाजी तो आदर्शवादी कवि थे उन्हें झूठी तथा कुत्सित विलायके साथ खिलवाद कराता है तब उनका पवित्र हृदय प्रशंसा कम पसन्द माती मापने उसके पृष्ट पर निम्न कचित चोट खाता है और वे उपकी भर्सना करते हुए जमका लिख कर उसे वापिस लौटादी। वास्तविक चित्र सामने रख देते हैं के निर्भय और सजग बड़ी नीति लघु नीति करत हैं वाय सरत बदबोय मरी। रहते हैं और सावधान करते हैं संसारको। फोदा भादि फुनगुनी मंदित, सकल वेह मनु रोगदरी। कवित्व शक्तिशोणित हा मांसमय मूरत, तापर रीफत घरी घरी। भैया भगवतीदासजी उन श्रेष्ट कवियोंमें से है जिनका ऐसी नारि निरखकर केशव ! 'रपिक-प्रिया' तुम कहाकरी? भाषा पर पूर्ण प्रभुत्व था मधुर कम्पनाओं अनूठी उक्तियाँसे केशव! तुमने सक प्रिया क्या की? तुम भ्रममें उनका काव्य मोतप्रोत हैमापने अपने काब्यकी धारा मानव.. भूल गए तुम मोह सागर में कितने नीचे उतर गए हो! जीवनके विशाल क्षेत्रमें बहाई है आपकं कायमें संमारकी कितनी अपत्य कल्पना करके तुमने अपने पापको ठगा मृगतृष्णा में पड़े हुए पथिकोंके लिए भारमशान और शांति है।भनेक भोलेभाले युवकोंके हृदयोंमें कुत्सित भावनाओं क मालभाल युवकाक हृदयाम कुत्सित भावनाथी का सुन्दर करना प्राप्त होता है। वासनाके दल दल में फंसे को प्रोत्साहित किया है झूठी प्रशंसा करके कविता देवीको हुए युवकों के लिए कर्तव्यका बोध होता है। कलंकित किया है" दुनियाकी मौज-शौक और मस्ती में पदे रहना ही भैयानीकी कवितामें कितनी सम्यता था संचारकी माया मानवका चरम उद्देश्य नहीं है किन्तु मानव-कर्तव्य इसमें में फंसे हुए मनुष्योंके लिए न रियोंके अमका अश्लील और भागे है। मानव जब दुनियाकी रंगरेलियोंमें ही कर्तव्य दंगये चित्रण करके उसकी और प्राकर्षित करने वाले की इति श्री मान बैठता है तब कवि हृदयको ठेस लगती कवियोंके प्रति उनका कैसा उपदेश था. कितनीकरणा थी वह अपना पवित्र संदेशा उसके पास भेजना चाहता है। उसके हृदयमें उन रंगारी कवियोंके प्रति ! लेकिन उसे ले कौन जाए ? उपयुक्त पात्र भी तो होना हाय ! केशव ! 'रसिक प्रिया तुम कहा करी!' चाहिए । वह सुमतिको अपना संदेशवाहक बनाते हैं और क्या नारियोंके प्रविन अङ्गों पर टि गड़ाए रहना ही अपना संदेश भेजते हैं। वह मनोरंजक संवाद साप सुनिए
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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