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अनेकान्त
[वर्ष ६
में होगा।
और जब हमने ज़िद की, तो आप बोले कि अच्छा नुम दादा भाई हैं. इसमें सन्देह नहीं पर हिन्दीके वे आदिम करो पर इस तरह करो कि मुझे उसमे पाना न पड़े। पत्रका में है. यह भी हम नहीं भुला सकते. इसलिये उन हमने हंसकर पूछा -क्यों ? तो बोले-वहाँ और क्या की हीरक जयन्ती में जैनसमाजके साथ सारा हिन्दी संसार होगा, बम नुम मेरी झूठी सभी तारीफ करांगे और अपनी भाग लेगा, यह असन्दिग्ध है। तारीफ सुननेमे नीच गोत्रका बन्ध लगता है। बड़ी यह जयन्ती कहां मनाई जाये यह भी एक प्रश्न है, मुश्किलमे आप उसमें पानेको राजी हुए। वास्तवमें इस उनका कार्यक्षेत्र देवबन्द रहा है, वहाँ यह उत्सव हो, यह निस्पृह साधनाके बलने ही कल्पनाके हम बीजको यह मेरी इच्छा है. देहलीके केन्द्र में हो, यह भी एक प्रस्ताव भारत व्यापी विशाल रूप दे दिया।
है और क्योंकि बाबृजी आजकल प्रयागमें हैं. बीमार है इस उत्सवको कई अपनी विशेषताएँ थी। यह पण्डित एव वहीं हो. यह हमग प्रस्ताव है। जो निर्णय होगा, जीके अपने जिले में मनाया गया, उन लोगोंने भी उसमें पत्रों में उसकी घोषणा की जायेगी। श्रद्धासे भाग लिया, जो कभी विचारभेदके कारण पण्डित
श्री नरदेव शास्त्र वेदतीर्थका निवास क्षेत्र सहारनपुर जीके विरोधी रहे थे, जनसमाजकी परिषद, महामभा और जिला रहा और राजनैतिक कार्यक्षेत्र देहरादन। इन दोनाम संघ सभी संस्थाओंका इसमें प्रतिनिधित्व रहा, देश भरके
___ कहां हो? अब तककी बातचीतका परिणाम यह दिखाई विद्वानों, प्रमुख पत्रकारोंने सन्देश भेजे, और रायसाहब
क देता है कि इन गर्मियों में यह समारोह देहरादून या मंसूरी लाजा प्रद्युमनकुमारजी इसके स्वागताध्यक्ष हुए, जिन्होंने १५-१६ वर्ष पहले अपने मन्दिरमें पण्डितजीके 'धवल' ग्रन्थ पढ़नेपर पाबन्दी लगाई थी। इस घटनाने प्रयम्न
श्री स्वामी सत्यदेवजी पंचपुरीके होगये हैं, इसलिये कुमारजीका चरित्र प्रकट किया, युगक परिवर्तनकी घोषणा
उनके सम्मान महोत्सवका सौभाग्य हरद्वारको ही मिलेगा, की और परिडतजीके कार्यकी महत्ता और व्यापकता पर
यह निश्चित है। भी प्रकाश डा। इससे भी बढ़कर अपने वयोवृद्ध विद्वानों इस प्रकार प्राशा है इस वर्ष में ये तीनों महोत्सव का सम्मान करनेकी प्रवृत्तिकी इससे प्रेरणामिली । फलत: विशाल रूपमें देखनेका हमें अवसर मिलेगा, पर तब भी विद्धदर श्री माथूरामजी प्रेमीको अभिनन्दनम्रन्थ देनेका इस संकल्पका अथ ही होगा इति नहीं क्योंकि देश भग्में प्रस्ताव और 'वीर' के विशेषांकोंकी शृङ्खला अाज हमारे अनेक हिन्दी सेवक ऐसे हैं, जिन्होंने अपना जीवन साहित्य सामने है।
साधनामें लगा दिया, पर जिनकी हमने एक दिन भी पूजा इस प्रकार यह अनुष्ठान सम्पूर्ण स्वरूप में सफल हुआ.
न की। मेरा सदैव शिवसंकल्पमें विश्वास रहा है और इस सफ- सर्वश्री जगन्नाथप्रसादजी 'भानु'.पं० लषमणानारायण खताने उसे और भी रद कर दिया है।
गर्दे, पं.खचमीधर वाजपेयी, सेठ कन्हैयालाल पोद्दार, पं. यह प्रारम्भ
लोचनप्रसाद जी पाण्डेय, स्वा. भवानीदयाल संन्यासी जेलके उस पवित्र वातावरण में जिन चार सम्मान पं.मावरमल शर्मा, पं. हनूमान शर्मा, पं. देवीदत्त शुक्ल समारोहोंकी बात मनमें पाई थी, उनमें एक यह हो गया, मा. गोपालरामजी गहमटी. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी पर तीन अभी शेष हैं, इसीलिये मैं कहता हूं, यह प्रारम्भ श्री रमाशंकर अवस्थी, बा. मूलचन्द अग्रवाल पं. कृष्णहै, इति नहीं। हमारे साथी यह जानकर प्रसन्न होंगे कि बिहारी मिश्र, सनेहाजी, पं. रूपनारायण पाण्डेय आदि शेषनीन समारोहोंके मनानेका कार्य भी प्रारम्भ होगया है। मादि ऐसे अनेक विद्वान साधक हैं, अपने अपने स्थानमें
वयोवृद्ध श्री बाबू सूरजभानजी अब ७५ वर्षके होगये जिगके यथाविधि सम्मान समारोह मनाये जानेकी व्यवस्था है और उनकी हीरक जयन्ती मनानेका प्रस्ताव बहुतसे होनी चाहिये । मुझे भाशा है विभिन्न स्थानोंमें शीघ्र ही लोगोंने पसन्द किया। बाबू सूरजभानजी जैन जागरणके विभिन्न समारोहोंके मनाये जानेकी तैयारी प्रारम्भ होगी।