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________________ सम्पादककी ओरसे - यह अङ्क पपर एक विशद मालोचनात्मक लेख म लिख सका। दुसरे अनेक विद्वानोंपे मैंने ऐसी प्रार्थना की, पर सफलाना श्री जुगलकिशोर सम्मान समारोहकी सूचना प्रकाशित न मिली। फिर भी पण्डितजीके कायंका महत्व स्पट हमारे होते ही जब देशभर विद्वानों की शुभकामनाएँ भाने लगी, पाठक समझ सकें. ऐसी सामग्रीस में है। तो मनमें पाया कि इन सबका एक स्थानपर संग्रह हो जाये और इस दृष्टिमं 'श्रनेकान्त' का एक विशेषाङ्क प्रका- कागजके इस अकालमें सन्देशी शुभकामनाओं और शित गनेकी बात मनमें पाई। 'अनेकामत' के व्यवस्थापक टिमियोंको ज्योकात्यों बना सम्भव था इसलिये उस श्री कौशलप्रसादजीने इसे पसन्द किया और सम्मान में काट छांट करनी पड़ी। यह काम कठिन भी था. दुस्खद समारोहकी सूचना साथ इमकी भी विज्ञप्ति दिसम्बरके भी था हरेककी हरेक पंकि.में पण्डितजीके प्रति प्रेम भरा था अङ्कम देदी। जब उनका प्रफ पण्डितजीके पास पहुंचा तो पर मेरे लिये भी मज़बूरी थी. यह जानकर व सब भाई कुछ न पूछिये । बहुन नागज़ हुए और उन दोनों विज्ञ. मुझे क्षमा करेंगे, ऐसी भाशा है। पब साथियोंकी सद्धाप्तियोंपर लाल कलम फेरनी । साथ ही यह हुक्म कि बनाम समृद्ध यह समारोह-प्रतः हममें अपनोंको जाननेअनेकान्तमें इस समारोह के सम्बन्धमें कुछ नहीं छप माननी प्रवृत्तिले यही मेरी भावना है। सकता। हाँ मुझे मम्पादकीये हटा दीजिये और फिर चाहे जो छापिये । हम दोनों परमावा गये, पर कौशल- अनुमान प्रसाद की सारी तर्कशक्ति फेल होगई । अन्त में मैंने पिछले अगम्न मान्दोलनमें जब जेल गया तो अपनी अपना ब्रह्मास्त्र निकाला-'बालक' का 'जयन्ती-धंक', पानीकी मायके कारगा मनमें कुछ उत्साहन था. इसलिये जो बालक सम्पादक श्री रामलोचनशरण बिहारीजी की वहाँ का अधिकांश समय इस बार चिन्तन में ही बीता। स्वर्ण जयन्ती पर निकाला गया था। इस पर भी प्रापने एक सप्ताह मौन रहकर मैंने अपने जीवनकी अबतककी हो न की. बस चुप होगये और इस प्रकार इसके सम्पादन भूलोपर विचार किया और एक सप्ताहमें ऐसे कार्योंकी सूची का उत्तरदायित्व मुझ पर भागया। बनाई, जिन्हें अवश्य करना चाहिये। इस सूचीमें सबसे इस उत्तरदायित्व निर्वाह में मुझे कितनी सफलता निर्मल मोहिनी सफलता पहली बात यह थी कि महारनपुर जिलेके चार महान मिली, यह विद्वान पाठक बनलायेंगे । मैं इतना ही कह । जीवन-माधोंका सार्वजनिक सम्मान हो । श्री बाबू सकता है कि इसे उपयोगी बनानमें अपनी शक्तिभर मैंने सूरजभानजी वकील, श्री पं. जुगल किशोर मुख्तार श्री मेहनत की और मेरा विश्वास है कि इसमें पाठकोंको न स्वामी सत्यदेवजी परिव्राजक और श्री पं० नरदेवजी शाखी केवल सम्मान समारोह का दर्शनानंद मिलेगा, पण्डितजीके वेदतीथ, ये वे चार साधक हैं। जोवन-कार्यकी एक झांकी भी वे पायेंगे। भगवानको कृपा और साथियोंके सहयोगसे एक काम इसी बीच हिन्दी-साहित्य सम्मेलनको स्थायी समिति पूर्ण हुमा-यह श्री जुगलकिशोर-सम्मान-समारोह! यह ने सभापतिके निर्वाचनको अनियमित घोषित करनेका वह जितना सफल हुआ, वह कल्पनातीत है, पर उसका रावणी निर्णय कर दिया, जिससे मारा हिन्दी-संसार सुब्ध वास्तविक श्रेय, पब माथियोंका मम्मान करते हुए भी, हो उठा और मुझे उसके विरुख भामरण अनशनकी मुझे लगता है कि पण्डितजीकी जीवनव्यापी तपश्चर्याकोही घोषणा करनी पड़ी पर मेरा अधिकांश समय उसमें है। भाई कौशलप्रसादजीके साथ जब यह प्रस्ताव पण्डित लग रहा है, इस कारण मैं इस अवमें पण्डितजीके साहि- जीके सामने मैंने पखा, तो उन्होंने इसका विरोध किया
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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