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________________ संस्मरण और पत्र वे : एक प्रकाशकके रूपमें ( श्री काशीराम शर्मा 'प्रषुल्लित' ) की बात है। विकास प्रेस लिमिटेडके संचा- हमीं पर छोड-उसे सरमाया न मंगायें।इसलिये पहले लक श्री. विश्वम्भरप्रसाद शर्माने मुझे प्रेससे अपने फार्मका प्रफ ३-४ बार 'विकास'सम्पादक श्री 'प्रभाकर' जी कार्यालयमें बुलाकर कहा--'ये हिन्दी प्रसिद्ध खोजी लेखक के साथ देखकर हममे उन्हें भेजा, पर जब वह लौट कर पं. जुगल किशोर मुख्तार है। एक पुस्तक छगना चाहते भाया, तो बाल और नीमी करैक्शनोंसे रंगा हुमा और हैं। आपको टाइपोंका समन्वय दिखा दीजिये !" 'सावधानीसे ठीक-ठीक करैक्शन का दूसरा प्रफ भेजिये माम तौर पर प्रेसमें विद्वान लोग आते रहते थे और की हिदायतके साथ । मापने जो करैक्शन (संशोधन) वि.ये मेरा अनुभव था कि वे मुद्रण और थे. वे बड़े माके थे। कौन मात्रा प्रकाशनके सम्बन्धमें बहुत ही कम पूरी नहीं उठी.किस प्रचरकाकोना जानते हैं, इसलिये मैंने साधारण जरासा टूटा है, कौनसा कामा धिमा तथा टाहोंके संबन्धमें उन्हें बताया, हुमा,कहाँका रैश टाइपमे भिन्न पर शीघ्र ही मुझे मालूम होगया है. कौन केट गलत है, कम्पोज़ में कि ये वैसे वृद्ध विद्वान नहीं हैं। कहाँ स्पेस मेकम-अधिक है, कपमें टाइपौके नाम और विशेषताओंसे ही कहाँ ब्लैंक जग ठीक नहीं जेंचा, वे परिचित न थे, किस टाइपके इस तरहके बहुत बारीक, छोटेसाथ कौनसा टाइप फिट या अनफिट छोटे पर प्रेस-कलापूर्ण गम्भीर करैहै, इससे भी वे परिचित थे। उन मान किये गये थे । उस प्रफको टाइपके छपे फार्म देखकर ही हममे उपन्यासकी तरह रस - उन्होंने यह भी बताया कि कौन कर पढ़ा-बाकई ऐसा भयंकर टाइप कितना पुराना है। कागजोंके प्रफीडर हमने पहले न देखा था। साइज और भांजसे भी वे भली प्रत्येक कार्मकी यही गति हुई-जप्रकार परिचित थे। भापका प्रेसज्ञान तक भाप पूरी तरह सन्तुष्ट न होगये देखकर मुझे प्रसन्नता हुई और मैंने अपनेका भार न दिया और दुबारा अपनी शक्तिभर उन्हें सन्तुष्ट करने प्रक मोगा। का प्रयत्न किया। वे प्रत्येक बातको लेम्बक अपनी राजनैतिक सेवाचोंके पूरी तरह समझानेके लिये बात कह कर, फिर 'जी, कारण विकास प्रेसको भनेक संघर्षों में पवना पड़ा, इससे जी का मधुर सम्पुट बगाकर उसे दुहराते थे, नो पुस्तकके प्रकाशनमें और भी विलम्ब होगया । मुख्तार अत्यन्त ही मधुरताके साथ उनके प्रेममें सराबोर करनेके साहबने उसकी भूमिका प्रेसको नहीं बख्शा। हो, उसकी लिये बरबस उनकी ओर खींचता था । 'समाधितंत्र' का राजनैतिक सेवाओं के कारण विलम्बका उल्लेख जरूर किया। विकास प्रेसमें छपना ते होगया हम यह चाहते थे कि वे मुफ देखनेकी जिम्मेदारी 'बनेकान्त' का प्रकाशन जब सरसावेसे ही भारम्भ -- -
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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