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________________ १८६ अनेकान्त [वर्ष ६ भाचार्य कुन्दकुन्द और स्वामी समन्तभद्र साकी छटी दिगम्बर परम्पराका महान सेवक भी मानता है। मेरी शताब्दीसे पावके, अत: इस भाचारसे विगम्बर-साहित्य हार्दिक भावना है कि वे दीर्घजीवी होकर इससे भी अधिक को वाम्बर-साहित्यसे प्राचीन नहीं माना जा सकता। रूपमें अपने ध्येयका प्रचार करें और उनकी समन्तभद्र दिगम्बर विद्वानोंने श्वेताम्बर विद्वानोंकी तीनों ही भक्तिके प्रभावसे उनको वैसी ही सफलता प्राप्त हो। प्राचार्योंके सम्बन्धमें इस धारणाको निमूल कर दिया है यह चर्चा एक ऐतिहामिक चर्चा है और इसको सिलऔर अपने कथानका प्रबल प्रमाणों द्वारा समर्थन किया सिलेसे लिखने के लिए सैंकों पेज चाहिये इसको में कभी ोिगोंने यह कार्य किया है उनको मैं दिगम्बर दसरे ही समय लिखना चाहता है, किन्तु अभी मुझे मेरे परम्पराका परम सेवक स्वीकार करता हूं।इन विद्वानोंसे मित्र प्रभाकरजीका पत्र मिला कि इसको अभी लिखो मेरा जिन्होंने इस कार्यके लिए अथक प्रयत्न किया है तथा कर व्यक्तिगत अनुरोध है। लाचार हो गया और संक्षेपसे बतौर रहे हैं। श्री मुख्तार साहबका स्थान महत्वपूर्ण है। इस नोटके इसको लिख दिया है: प्राशा है भनेकान्तके पाठक प्रकार जहाँ मैं मुख्तार साहबको ऐतिहासिक, साहित्यिक, इन पंक्तियोंसे मुख्तार साहबके इस दिशाके व्यक्तित्वको मालोचक और दार्शनिकके रूपमें पाता हूं. वहीं मैं उनको मांक सकेंगे। अद्धाचे की है, इसे हम दो मिनट विचारें, तो अखिल जैनसमाजमें श्री बा. छोटेलालजी जैन कलकत्ता हमें एक भी ऐसा महात्मा न मिलेगा। मैं तो उन्हें निस्पृह ज्ञान-तापस पंडित जुगलकिशोरजीने जिला सहारनपुर तपस्थी समझता है। में जन्म अवश्य बिया। पर मुख्तार साहब अखिल मैंऋषितुल्य शान्त अत्यन्त सरल उनके व्यक्तित्वके प्रति जैन समाजकी विभूति है। जैनों में जो पोपडम प्रचलित हो इस शुभ अवसर पर हार्दिक अभिनन्दन ही नहीं किन्तु चुका था उससे लोगोंको सावधान कर उनके श्रद्धानमें बलि. प्रान्तरिक श्रद्धार्ष अर्पण करता हूँ। उता मापने ही उत्पत की। ऐतिहासिक साहित्य जगत भापका अशी। भापके अनुसंधानमें मौलिकता है। हमारे गर्व साहित्यमें मापने एक नूतन युग ला दिया है। जैनसमाजमें इतिहासके प्रति अभिरुचिमापनेही उत्पन की है। जैन श्री दुलारेलाल भार्गव, लखनऊ साहित्य मनमोल रलोकी परख मापने कीमले पं. जुगलकिशोरजीका साहित्यिक मध्यवसाय महत्व- ' साहेबने कहा कि "मनुष्य शेक्सपियर, मनुष्य शेती पूर्ण है और जीवन प्रादर्श । इत्यादि माल्या भ्रमात्मक है क्योंकि मनुष्य जो हमारे देशमें ऐसे साहित्य-सेवक हैं, यह गर्वकी बात है। लिखता है, उसकी व्यक्तिसत्ता उससे अलग हो नहीं सकती" रचनाके मध्य में ही युगवीरजीवा सम्पूर्ण परिचय मिताजाता है। युगवीरजीकी प्रतिभाकी मालोचना मेरा अभिनन्दन भन्यों हस्तिदर्शनकी तरह असम्पूर्ण है। जैन समाज पाप प्रो० श्री धर्मेन्द्रनाथ शास्त्री, तर्कशिरोमणि, एम० ए० का कृतज्ञहै और सदा ऋणीहै-मातृ अणकी तरह जो व्यक्ति स्थायी साहित्य-रचनाके द्वारा समयकी पहभपरिशोध। जिस महामाने सारा जीवन और सैकतस्थली पर अपने चरण-चिन्ह छोर जाते है, उनमेंसे सारी सम्पत्ति ही नहीं किन्तु जीवनकी साधारण भाव. मन्यतम श्री जुगलकिशोरजीका मैं उनकी ६० वीं वर्ष गांठ श्वकताओं सककी अवहेलना करते हुए जैन साहित्यकी सेवा केशुभ अवसर पर हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ।
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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