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________________ अनेकान्त [वर्ष ६ हमारे कर्णधार जैसे मुकभावसे हमने यह घोषणा की है कि हम सच कि मेरे डूबने की तो कोई बात नहीं, पर किसी तरह भी यही चाहते हैं कि वे अनमोल रत्न संसारक गले आप का जीवन बचना चाहिये । अरस्तू ने कहा-मैं का हार बनें, यों ही उपेक्षा कारण नष्ट न हों। उनके एक फकीर हूँ, मेरे जीवनका क्या मूल्य? तुम सम्राट द्वारा हममें इस भावना का जागरण हुआ यह उनका हो, जीवन तो तुम्हारा बचना चाहिये । इस पर सच्चा सम्मान है और उन विद्वान महानुभाव श्रीमान् सम्राट मिकन्दरने जो उत्तर दिया, वह बहुत ही महमाननीय ५० जुगलकिशोर मुख्तार महादयके प्रति त्वपूर्ण है। उमने कहा-महाराज, पाप जीवित रहे, अपना यही सम्मान, भावनाओंका यही अभिनन्दन तो मेरे जैसे कई सिकन्दरोंको फिरस बना देंगे. पर प्रकट करनके लिये हम यहां एकत्रित हुए हैं। मेरे जैसे हजार सिक-दर भी रहें, तो वे मिलकर एक अरस्तू नहीं बना मकते! मुख्तार साहब का कार्य सम्राट सिकन्दरका यह उत्तर विचारक विद्वानों पिछले ३०-३५ वर्षों में पणि त जुगलकिशोर जी का हमारे समाजके जीवनमें क्या महत्व है, उसपर ने जो कार्य किया, वह बहुत बड़ा है । उन्हें अपने बहुत सुन्दर प्रकाश डालता है और इस प्रकाशकी छाया कार्यन जिन कठिनाइयोंका सामना करना पड़ा वे में हम मुख्तार महोदयके कार्यका महत्व समझ सकते हैं। साधारण नहीं हैं । आज तो जैन साहित्यका बहुत सा प्रकाशन हो गया है, अनेक भण्डारों की सूचियां बन गई है, और यह पता लगाना सरल हो गया है कि कौन वस्तु कहां है, पर तब बहुत कुछ अन्धकार में अब तक मैंने जो कुछ निवेदन किया, उससे था और यह अन्धकार इतना घना था कि इसे भेद यह स्पष्ट है कि आजके उत्सवका एक विशेष महत्व है। कर, भीतरका रहस्य पाना दुलेभ था। वे अपनी अन इस प्रकारके उत्सव संसारकी सभी जीवित जातियां थक शक्ति के साथ इस क्षेत्र में आये और आज जो मनाया करती हैं। एक अंग्रेज विद्वानका कथन है कि चारों ओर इस दिशामें प्रकाश हमें दिखाई देता जो जातियां अपने विद्वान विचारकोंका टीक २ मान है उसके निर्माणकी नींव रक्खी । आज उसका नहीं करतीं, उनका बुद्धि-विकास क्षीण हो जाता है; फल, एक बहुमूल्य धरोहरके रूपमें हमारे सामने है। उसमें स्वप्नदर्शी प्रतिभाशालियोंका उत्पन्न होना बन्द विचारकों-विद्वानों ने ही सदैव जातियों के हो जाता है और इस प्रकार धीरे २ वह जाति नष्ट जीवनका निर्माण और उसकी रक्षा की है। जो हो जाती है। कार्य करने में बड़ी बड़ी राजसत्ताएँ असफल रहीं, वे कुछ उत्साही मित्रोंने यहाँ इस प्रकारके महत्वपूर्ण कार्य विचारकोंने किये हैं। यही कारण है कि सदा उत्सवकी योजना तो कर दी पर हमारे सामने मुख्य राजसत्ता और धनवता दोनोंने ही विचारकों के प्रश्न यह था कि कर्णधार किसे चुनें, जिसका नेतृत्व चरणों में अपना मस्तक झुकाया है। कहते हैं एक बार इस आयोजनको यथोचित रूपमें सफल कर सके। महान सम्राट सिकन्दर और विचारक शिरोमणि हम सबका ध्यान श्रीमान् राजेन्द्रकुमार जीकी ओर गया अरस्तु साथ साथ नाँवपर घूम रहे थे। नाव खतरेमें और उनकी व्यस्तता एवं कार्यों के भार को देखते हुए पड़गई, तो सिकन्दर इधर उधर देखने लगे। महात्मा भी हमने उनसे शर्थना की। उनकी यह कृपा है कि अरस्तू ने पूछा-सिकन्दर, किस चिन्तामें हैं ? तो उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया और आज वे यहां उसने उत्तर दिया कि महाराज, मैं यह सोच रहा हूँ हमारे मध्यमें हैं। उनके सम्बन्धमें कुछ कहना एक
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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