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________________ १६ अनेकान्त [वर्ष ६ श्रीमती चन्द्रवती ऋषभसैन जैनका सहयोग स्टार प्रेसके श्री घनश्यामसिंह और श्रीवास्तव प्रेसके बहुत महत्वपूर्ण रहा। उत्सवका प्रारम्भ ही वीरसेवामन्दिरसे श्री श्यामसुन्दरजी एवं काशीराम शर्मा 'प्रफुल्लित' का उन्होंने किया। अतिथियोंकी व्यवस्थामें भाग लेकर, संदेश __ उदार सहयोग समितिको न मिलता, तो उसके प्रकाशनोकी और शुभकामनामक संग्रहमें योगदे और इस अंक संपा- यह सुन्दर व्यवस्था निश्चय ही न रह पाती। दनमें भी श्रमदान कर महोत्सवकी सफलतामें उन्होंने पूरा और उस कर्मठ साथी खिये यहाँ क्या कहा जाये, भाग लिया। वे जैन समाजकी विभूति हैं और जैसा कि जिसके बिना यह प्रस्ताव एक काना ही रह जाती और श्री राजेन्द्रकुमार जीने अपनी बातचीत में कहा जैन समाजके परिषदमखपत्र 'वीर' के 'सम्पादकीय' की भाषामें) "जो लिये वे गर्वकी चीज़ है। सारे कार्यका केन्द्र बन कर रहा, जिसने दिनको दिन रातको श्री मंगलदेवजी शाखीदेहलीसे पधारकर उत्सव रात न समझा, अपनी पत्नीकी चिन्ताजनक रोग दशा और के कार्यों में पूरा योग दिया। वे हिन्दीके विद्वान, योग्य माईके विवाहकी परवाह न कर जो काममें जुटा रहा और पत्रकार और उत्साही कार्यकर्ता है, इस लिये विभित्र जिसने न पदकी चिन्ना की, न प्रतिष्ठाकी। हमारा भाशय दिशामें उनकी सेवाएं उत्सवको मिनीं। अपनी समाजके युवक रल, कर्मठ श्री कौशनप्रसाद जैन श्री पं०शंकरलालजी तो इसी कामके लिये सप्ताह मैनेजिंग डायरेक्टर भारत भायुर्वेदिक केमीकल्स लि. से पूर्व मधुरासे पधारे और छोटेसे बड़े तक सभी काम इतनी हैं। वे जैन समाजके तेजस्वी कार्यकर्ताहै। लोगोंने अनेकतहीनताले करते रहे कि उसकी जितनी प्रशंसा की जाये, बार अनुभव किया है कि उनमें एक बिजली और सहाकम है। सच तो यह है कि मेहमान होकर भी उन्होंने रनपुर जैसे स्थानमें यह सम्मान समारोह सफल कर ले अपने प्रेमसे मेजवानी पर कब्जा कर लिया था। जाना उन्हींकी शक्तिका फल था। कौशलप्रसादजीके कार्यने श्री प्रकाशचन्द्र शास्त्री, भारत मायुवैदिक केमीकल्स यह सिद्ध कर दिया है कि समाजकी वास्तविक शक्ति उसके लि. के प्रधान चिकित्सक और समाजके उत्साही कार्यकर्ता कार्यकर्ता हैं और यदि हम अपने समाजका नवनिर्माण है। रात-दिन उन्होंने इस उत्सवके लिये प्रयत्न किया। यह चाहें, तो हमें सबसे पहले कार्यकर्ताओंके संगठन पर ध्यान प्रयत्न इतना मूक था कि उन्हें उसमें खपजाना पड़ा देना चाहिये।" उत्सवके मानन्दसे भी उन्हें वंचित होना पड़ा। उनके इनके अतिरिक्त सैंकों भाइयों और बहनोंका वह सहकार्यको हम निकाम कह सकते हैं, जिन्होंने दिया ही दिया, योग अत्यन्त महत्वपूर्ण है, जो हार्दिक शुभकामनाओं, पाया कुछ नहीं, सिवाय उस भास्मिक भानन्दके. जो ऐसे मूक शुभ भावनाओंके रूपमें मिला। यह महोत्सव इन्हीं ही लोगोंके लिये निर्मित हुवा है। लोगोंका था, उन्होंने ही उसे सफल किया, हम और क्या श्री अखिलेश 'ध्रुव' भी एक कर्मठ युवक है, उसकी कहें। वौद धूप समितिका बल बन कर रही।
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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