SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवनका रिकार्ड -- पथ-चिन्ह ( भी कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' ) मंगसिर सुद्दि एकादशी सम्वत १६३४ ! वर्ष के ३६५ दिनों में वह भी एक दिन था । उस दिन भी प्रभात के अनन्तर सन्ध्याका आगमन हुआ था और तब निशा रानीने अपना काला अांचल पमार सबको अपनी गोद में ले लिया था । यह कोई खास बान न थी, पर हाँ, एक खास बात थी जिसके कारण राष्ट्रभारतीके इस पत्रकार को उसका उल्लेम्ब यहाँ करना पड़ेगा। उस दिन सरमात्रा ( सहारनपुर) में श्री चौधरी नत्थूमल जैन श्रमवाल और श्रीमती भोईदेवी जैन श्रमवाल के घर में एक बालकने जन्म ग्रहण किया था । बुद्ध और घसीटा, अल्लादिया और विल्सन, सबके अन्योका रिकार्ड म्यूनिसिपल रखती है, ऐसे भी हैं, जिनके जन्मका रिकार्ड राष्ट्र और जातियोंके इतिहास प्यारसे अपनी गोद में सुरक्षित रखते हैं। यह बालक भी ऐसा ही था - जुगलकिशोर ! उसीकी जीवन-प्रगति के पथचिन्हों का एक संक्षिप्त लेखा मुझे यहाँ देना है। साथमें जैन शास्त्र भी धार्मिक भाव से पढ़ते थे, पर पढ़नेका शौक देखिये कि इन सबके साथ आपने उस समय के पोस्टमास्टर श्री बालमुकुन्द से अपने फालतू समय में अंग्रेजीकी प्राइमर भी पढ़ली । मास्टर जगन्नाथजी बाहरसे बुलाये गये और अंगरेजी का एक नया स्कूल खुला। अपने इम स्कूलकी ओर लड़कों को आकर्षित करनेके लिये आपने एक कविता लिखी, जिसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ इस प्रकार थीं नया इस्कूल यह जारी हुआ है, चलो, लड़को पढ़ो, अच्छा समा है, जमाथन दसवीं से है पाँचवी तक, पढ़ाई सर-बसर कायम है अब तक। कविता लिखने की यह प्रवृत्ति आपमें कहाँसे आई ? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है क्योंकि उस समय एक तो सारे देशमें ही ऐसा साहित्यिक वातावरण न था, फिर सरसावा तो बहुत ही पिछड़ी हुई जगह थी। मुझे ऐसा लगता है कि श्रा में जन्मजात जो प्रचार-प्रतिभा थी उसने श्रापको प्रेरणा दी 'चलो लड़को, पढ़ो, अच्छा समा है ! और आपकी आरम्भिक उर्दू शिक्षा इस 'कविता' के शब्द संगठनमें •हायक हुई 'पढ़ाई सर-ब-मर कायम है अबतक' | उस दिन कौन जानता था यही बालक भविष्य में 'मेरी भावना' का लेखक और 'वीरसेनामन्दिर' का संस्थापक होने को है । पहला मोर्चा साहित्य-मन्दिरके द्वार पर "अरे तुम पहले पढ़लो, फिर जुगलकिशोर जम गया, तो रह जाओगे !" यह मकनबके मुंशीजीका दैनिक ऐलान था । ५ वर्ष की उम्र में उर्दू-फारसीकी शिक्षा श्रारम्भ । ब्रहन अच्छा और परिश्रमी । पढ़ने का यह हाल कि २०-२० पत्रों का रोज सबक । शुरुमें पढ़ने बैठ गयें, तो मुशीका सारा समय 'लें और दूसरे लड़कोंका सबक नदारद । पाँचवी कनास तक इस स्कूल में पढ़ कर आप गवर्नमेयट हाईस्कूल और 'दूसरी' (आज कलकी ६ वीं) क्लास पास करने गुलिस्तां बोस्तां पढ़ते-पढ़ते आपकी शादी होगई और इम आपने प्राईवेट पास किया, १३-१४ वर्षकी उम्र में आप गृहस्थी होगये । तक यहां पढ़ते रहे । इसकी भी एक कहानी है। जैन शास्त्रका श्राप प्रतिदिन राठ करते थे और उस १ उस समयके स्कूल दसवीं क्लास से प्रारम्भ होते थे और पहलीमें इन्ड्रेस होता था । उन्हीं दिनो सरसावा में हकीम उग्रसेनने एक पाठशाला खोली । आप उसमें हिन्दी पढ़ने लगे और संस्कृत भी । -
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy