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________________ १४२ अनकान्त [वर्ष ६ शत्रुमा व्यवहार न करे। लिए पंडितोंकी, याद की जाती है और तदनुमार भावी कार्य कविवर सूरचंदजीके समाधिमग्णसे हमें अनेक महत्त्व के परिणामका निष्कर्ष मीचा जाता है। लेकिन आश्चर्य है पूर्ण शिक्षाएं प्रास होती है, उपदेश उपलब्ध होना है और कि मृत्यु के अवसर पर हम शकुनोंका मानों त्यागपत्र दे चुके और उसके प्रति सद्भावनाएं जाग्रत होती है। जीवन में होते हैं। कितनी सूक्ष्म सूझ है उमकी कि वह मृत्युके समय साइस, वीरता और स्यागका प्रादुर्भाव प्रखररूपसे प्रस्फुटित भी शकुन देखने के लिए निमन्त्रण दे रहा है। उसके होताहै। विचारम 'समाधिभरण' सुन्दर और अति शुभ शकुन है। उनके समाधिमरणको पढ़नेसे ज्ञान होताहै। इस भूतल यह कहाँका न्याय कि हम जब दूमग मकान बदलते हैं तो पर ऐम २ शूग्बीर संत, राजा और मुान होगएहैं जिन्हें शकुन देखते है, कहीं दूमर गांव जाते हैं तो शुभाशुभ पानीमें पेलागया सिरपर अग्नि सुलगाई गई, तप्त अंगार देखते हैं परन्तु जब परगताको अर्थात् महान् नगर में जाते सपशलो बेड़ियाँ पहनाई गई, जिनके शरीरको व्याघ्रो, हैं हैं, दूर्मरे मकान अर्थात् शरीर में जाते हैं तो तनिक भी शूरों और सिंहाने निर्दयतापूर्वक प्रग्ने कलेवरका | कलेवा खयाल नहीं करते। वह इमं उलाहना देते हुए हमें अपने बनाया, परंतु उन धीर-वीरोंने उससमयभी संक्लेश परिमाणों कतन्य पर आरूढ़ होने के लिए जो कुछ कर रहा, वह को जन्म नहीं दिया और 'चौबागधन" का श्राश्रय प्रहण उसाक मुग्वस सुनिए भार श्रानन्दका रस लाटयकिया, तब फिर माग जीवनती उनसे कई गुना निष्कंटक "मात-पितादिक और कुटुम सब, जीके शकुन बनावें । है, पाजतो अंग्रेजों का राज्यहै-चारों ओर सुशासन (1) हल्दी, धनिया, पुङ्गी अक्षत, दूध दही फल खावें ॥ की पुकार है, अत: हमारे जीवन में ऐसा कौनमा दुःख है एक ग्राम जाने के कारण, करें शुभाशुभ सारे । जिससे हम मृत्युसे भयभीत हो करुणाकन्दन करें। इसीलिए ___"जब परगतिको करत पयानो, तब नहीं सोचो प्यारे । कवि उन महान आत्माओके कष्टोको प्रकट कर प्रत्येक छन्द उस समय तो हमें रोना नहीं चाहिए, यह तो हँसनेका के अन्त में कहता है समय होता है। क्योंकि उस समय हमारे कुटुम्बीको मलीन "तो तुमरे जिय कौन दुःख है मृत्यु महोत्सव वारी।" मकानकी जगह नूतन महल नसीब हनेका अवसर उपलब्ध अन्तमें हम पाठकों का अधिक समय न लेकर, केबल होता है। इसी लिए कवि जिसकी मृत्यु हो रही है उसे एक बातकी और जो कविवर सूरचन्दजीकी विचक्षण सूक्ष्म सम्बांधन कर रहा है, जिसे पढ़कर हमें भी सचेत और सावसूझ है ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं। सम्भव है जिससे धान हो जाना चाहिएपाठकोके हृदय पर कुछ प्रभाव पड़े और मृत्युके प्रति सहा- “सर्व कुटुम्ब जब शेवन लागै, तोहि रुलावें सारे। तुभूति प्रस्फुरित हो, जीवन में साहस, उत्साह और 'नूतन' ये अपशकुन करें सुन तोको, तू यो क्यों न विचार ॥" निर्माणकी भाषनाका संचार हो ताकि समाज, जाति और अन्त में एक बात और, और बस । इमारी उन पाठको देशका कल्याण हो; क्योंकि यह सुस्पष्ट है कि किसी भी एवं हिन्दासाहित्यके मर्मज्ञों-समालोचकों एवं कल्याणेच्छुयो कल्याण या उद्धारक लिए त्याग, चारता बार बालदानको से विनीत प्रार्थना है कि वे उक्त कविवरकी रचनाएँ एक अत्यन्त आवश्यकता होती है। बार अवश्य पढ़ें और उसमें जो तत्त्व दो, सार हो, रहस्य हम निरन्तर देखते हैं और अनुभव करते हैं कि जब दो, जनताके सन्मुख रखें। हिन्दीसाहित्य में ऐसी ही रचनाओं से हमारा जन्म होता है हमारे जीवन में शकुन-अपशकुनोंको की भाजपावश्यकता है न कि रीतिकुलीन उद्दाम काममहत्वपूर्ण स्थान-ग्रासन प्राप्त है बात-बात में शकुन देखनेके पिपासा मूलक तारिक रचनाओं की।
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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