SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विषय-सूची १ समन्तभद्रभारतीके कुछ नमूने-[सम्पादकीय पृ. १२१ ८ बुधजन सतसईपर एक दृष्टि-[माणिकचंद्र जैन बी.ए. १३८ २ जगत्गुरु 'अनेकान्त' १२२ मृत्युमहोत्सव-जमनालाल जैन वर्धा १४० अनेकान्त रसलहरी-[जुगलकिशोर मुख्तार १२३ १. ब्रह्मचर्य ही जीवन है-[चन्दगीराम विद्याथी १४३ ४ नयोका विश्लेषण-पं.वंशीधरजी व्याकरणाचार्य १२८ ११ सहयोगी जैन सत्यप्रकाशकी विचित्रसूझ-संपादकीय १४५ ५ जैनधर्मपर अजेन विद्वान-[शिवव्रतलाल वर्मन १३२ १२ पंडिता चन्दागाई-[4. कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर १४९ ६ जीवन-चरित्र-बा. माईदयाल मी. ए. १३३ १३ अनुकरणीय-व्यवस्थापक १५२ ७ पेड़ पौधोंके स जै वैज्ञानिकता-[पं.चैनसुखदासजी१३६ वीर-शासनका अर्धद्वय-सहस्राब्दि-महोत्सव वीर-शासनको-भ. महावीरके धर्मतीर्थको-प्रवर्तित हुए ढाई हजार वर्ष समाप्त होरहेहै, अत: ढाई हजार वर्षकी समाप्ति पर कृतज्ञ जनता और खासकर व जैनियोंके द्वारा वीर-शासनका 'मर्द्धद्वय-सहस्राग्दि-महोत्सव' मनाया जाना समुचित और न्ययायप्राप्त है। इसीसे योरसेवामन्दिर सरसावाने, श्रीमान् बाबुछोटेलालजी जैन रईस कलकत्साकी प्रेरणाको पाकर, इस महोत्सव मनानेका भारी प्रायोजन किया है। इस महोत्सबके लिये जो स्थान चुना गया है बह है 'राजगृह' तीर्थक्षेत्र। इस स्थानका कितना अधिक महत्व है यह तो स्वतंत्र लेखका विषय है, फिर भी यहां पर संक्षेप में इतना प्रकट किया जाता है (.) दिगम्बर सम्प्रदायकी रष्टिसे यह राजगृह वह स्थान है जहां सबसे पहले श्रावण कृष्ण प्रतिपदाको सूर्योदय समय वीर भगवानकी दिव्यध्वनि वाणी खिरी, उनके सर्वप्राणि-हितरूप 'सर्वोदय' शीर्थ की प्रवृत्ति हुई और उनके प्रधान गयधर गौतमके द्वारा उनकी दिन्य-वाणीकी उस द्वादशांग अतमें रचना की गई जो वर्तमानके सभी जैनागौंका माधारभूत है। किसी भी दिगम्बर ग्रन्थमें जहां उसके विषयावतारका निर्देश है वहां इसी स्थानके विपुवाचनादि पर्वत पर वीर भगवानका समवसरण माने और उसमें वीर-बाणीके अनुसार गौतम गणधरके द्वारा उस विषयके द्वारा प्रतिपादनका उल्लेख है। (२)शेताम्बर सम्प्रदायकी दृष्टिसे यह राजगृह वह स्थान है जहां वैशाख सुदि १.मीको होने वाले केवलज्ञानके अनन्तर ज्येष्ठ मास शुस्में ही भ. महावीर देशनाके लिये पहुंच गये थे, जहां वे ज्येष्ठ तथा प्रासाठ मास तक ही नहीं किन्तु वर्षाकाल (चातुर्मास्य)अन्त तक (कोई छह मास तक) स्थित रहे और इस भर्से में जहाँ बराबर उन की समवसरण सभा लगती रही और उसमें उनका धर्मोपदेश होता रहा, जिसके द्वारा हजारों लाखों प्राणियोंका उद्धार तथा कल्याण हुभा है। और जो मुनि कल्याणविजयके शब्दों में "महावीरके उपदेश और वर्षा-बास केन्द्रों में सबसे गया और प्रमुख केन्द्र था।" 'जहाँ महावीरका समवसरण दोसौसे अधिकवार होनेके उक्लेख जैनसूत्रोंमें पाये जाते हैं।' और इस लिये जहां वीरशासन विशेषरूपसे प्रवर्तित हुया है। अतः दोनों सम्प्रदायोंकी रष्टिसे राजगृह (राजगिर) वीरशासन-सम्बंधी महोत्सबके लिये सबसे अधिक उपयुक्त स्थान,जहाँकी प्राकृतिक शोभा भी देखते ही बनती है। महोत्सवकी प्रधान विधि श्रावणकृष्णप्रतिपदा है, जो उत्सर्पिणी प्रादि युगौंक भारम्भकी तिथी होनेके साथ साथ वर्षारम्भकी तिथि है-पसी तिथिसे पहले भारतवर्ष में वषका भारम्भ हुमा करता था, 'वर्ष' शब्द भी वर्षाकालसे अपने प्रारम्भका सूचक है। अतः यह तिथि अन्य प्रकारसे भीतिहास में अपना खास महत्व रखती है। महोत्सवको विशेष योजनाएँ भागामी किरणों में प्रकाशित होंगी। -अधिछाता 'वीरसेवामन्दिर'
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy