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वरदत्तकी निर्वाण-भूमि और वराङ्गके निर्वाणपर विचार
(ले०-६० दीपचंद जैन पांड्या) दिगम्बर जैन सम्प्रदायक सैकड़ो तीर्थस्थान है, परन्तु पुरसे वरदत्त, वराग और मागरदत्त श्रादि सादेतीन कोड़ि वे कौन कौनसे है और कहो कहाँ है तथा वे तीर्थस्थान मुनि मोक्ष गये हैं। परन्तु यह किस श्राधारपर लिखा गया कबसे और क्यो माने जाने लगे, इम विषयको स्पष्ट करके है वह अभी अंधकार मे है । हरिवंशपुराण और उत्तरपुराण बतलाने वाली अभी तक ऐमी कोई भी प्रामाणिक मामग्री में भगवान् नेमिनाथके प्रधान गणकर वरदत्तके केवली नही जुटाई गई हैं जिममे तविषयक ममी समस्या और होनेका तो उल्लेख मिलता है पर उनके मुक्ति स्थानका शंकाएँ हल होजायें। श्री पं० नाथुगमजी प्रेमी और प्रो. निर्देश वहो भी नही मिलता । इमलिये यह जिज्ञासा ज्योकी हीरालालजीने 'जैनमिद्धान्त भास्कर' भाग ५ की किरण ४ मे त्यो बनी रहती है कि वरदत्तकी निर्वाण-भूमि कौनसी है ? और "अनेकान्त' वर्ष का किरण ६-७ में इमार तीर्थक्षेत्र' श्रीजटामिहनदि अाचार्यका वरॉगचरित' इम ममस्याके और 'दक्षिणके तीर्थक्षेत्र' शीर्षक लेग्वप्रगट किये हैं, जिनमे हल करनेका स्वास प्राचीन श्राधार कहा जा सकता है; कई क्षेत्रो र ऐतिहामिक विवेचन करके अच्छा प्रकाश डाला क्योंकि इसमें निर्वाणकाण्ड-निर्दिष्ट वग्दत्त और वरॉग है। अस्तु, मैं इम लेखमे वरदनऋषिकी निर्वाण भूमि कोनी आदिकी घटनाओंका विस्तार उल्लेग्व पाया जाता है। परन्तु है और वह कहो है तथा वगेंगगजाका निर्वाण हुआ या कि इस चरितका कथन निर्वाणकाडसे बहुत कुछ भिन्न है। नहीं, इन दोनों विषयोपर यत्किचित्प्रकाश डालना चाहता हूँ। इम संस्कृत ग्रन्थके अनुसार केवल वरदत्तका ही निर्वाण हुश्रा
दिगम्बर जैन मम्प्रदायम तीर्थक्षेत्रोक परिचायक ढो वगेगका नही, तथा वरदत्त की निर्वाणभूमि मणिमान् प्राचीन पाठ उपलब्ध होते है-१ प्राकृत निर्वाणकाण्ड, पर्वत है, नारवर नगर नहीं है। वरॉगचरितके उल्लेख इस २ मंस्कृन निर्वाणभक्ति। इमके सिवाय गणभद्रकी तीर्था- प्रकार हैं:र्चनचंद्रिका' और उदयकीर्तिका नित्यंकरतित्थ' भी उप- .
(१) २१ वे सर्गके २६वे पद्यसे लेकर ३१ तकके पद्यों लब्ध होते हैं । हिंदी भाषामे कविवर भगवतीदामका निर्वाण
मे यह बतलाया गया है कि वरागनरेशने अपनी जन्मभूमि काण्ड भापा नामका पाठ मिलता है। यह भाषा-पाठ
उत्तमपुरको छोड़कर आनर्तपुरको गजधानी बनाया था। सर्वत्र प्रचलित होने के कारण मर्वमाधारणका विषय है।
अाननपुरका उल्लेख इस प्रकार है:इसे एक प्रकारस 'प्राकृन निर्वाणकाड का अनुवाद या
सरस्वती नामनदीविश्रुतामणिप्रभावान्मणिमान्महागिरिः। रूगन्तर कह मकत है । प्राकृत निर्वाणकाडको छोड़कर
तयोर्नदीपवंतयोर्यदन्तरे बभूव चानर्तपुरं पुरातनम् ॥२८॥ इन मभी पाठामे वरदनऋप कहोसे मोक्ष गये, यह कही पुरा
ही पुरा यदुना विहगेन्द्रवाहनो जनार्दनः कालियनागमर्दनः । भी सष्ट उल्लेख नहीं मिलता। प्राकृत नि० काण्डम जी रणे जरासन्धमभीनिहित्य यार्तवार्तपुरं ततोऽभवत् ॥२६॥ इस विषयकी गाथा पाई जाती है और जिममें वगंगके भी अर्थात् सरस्वती नामकी नदी और मणिमान् नामका निर्वाणका उल्लेख है वह इस प्रकार है:
महापर्वत मणियोंके प्रभावसे प्रसिद्ध है। इन नदी और वरदत्तो य वरंगो सायरदत्तो य तारवर नयरे
पर्वत दोनोके मध्य में जो पुराना बानर्तपुर बसा हुआ था वहाँ बाहुट्ठय कोडीनो णिव्वाशगया समो तेसिं ॥शा
पहले गरुडवाहन, कालियनागमदो यदुवंशीय जनार्दनश्रीकृष्ण भाषा निर्वाणकाण्डमे इसका जो रूपान्तर दिया है,
ने जरासन्धको रणमें मारकर निर्भय होकर नृत्य किया था, वह इमप्रकार है :
इसी कारण इस नगरका नाम अानर्तपुर प्रसिद्ध हुआ। वरदत्त राय रु इंद मुनिंद । सायरदत्त भादि गुणद॥ .. (V
(२) २६वें सर्गके ७५ मे ५८ तकके पद्योंसे पाया जाता नगर तारवर मुनि हुटकोहि । वही भावसहित कर जोदि ।। १ यह प्रन्थ प्रो. ए. एन. उपाध्याय द्वारा सुसंपादित होकर
इस परसे यह जाना जाता है कि तारवर-तारपुर-ताग- बम्बईसे माणिकचन्द्र ग्रन्यमालामें प्रकाशित हुआ है।