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________________ किरण १-२] हृदय-द्रावक दो चित्र नहीं कह सकी कि ऐमी शादी मुझे नहीं चाहिए ! इस में खड़ा है। शादी की चिता मे अपनी प्यारो मॉक सारे जेवर एक वह प्रतीक्षा भी अब अधिक लम्बी नहीं। लड़की एक कर होम जाते मै नही देख सकूगी ! जबकि वालोने तो तुम्हारे पिताजोको बहुत दिन पहलेसे ही माता-पिता संच रहे होगे-"लड़की सयानो होगई, परेशान कर रखा है ! अ.र अब तो तुमने बी०१० सखियोंसे शादोको बाते करती होगी !” तुमने उनकी पास भा कर लिया ! अब क्या दर ह ? बस इतना धारणाको मुटलानेकाछ भी प्रयत्न नही किया ! ऐसा हो न कि तुम्हारे पिताजी चाहते है कि शादी होते ही भीपण श्राघात चुपचाप सहलनको क्षमता रखने वालो नव-वधूको लेकर विलायत जानेका खच पहलस ही भारतोय हिन्दू-बालाम आजन्म ब्रह्मचारिणी रहकर लड़कीवाला दे दे जोवन-यापन करनेको शक्ति नहीं है ! भला कौन कह दसियो अभागी युवनियो के पिता प्रा लिये सकता है? हुए तुम्हारे पिताजाक द्वारपर आकर निराश हो ल.ट ___मर उपरको स्टाअो बाल ! अब वह समय गया। गये। परन्तु तुम्हे इमस क्या? तुम्हारे लिए दिन धनक लालुपो इन “पुत्रों के भाग्यवान पिताश्री" को भर आमोद-प्रमोदक कार्य कानसे कम है ? जा इन जरा बनाओ तो मही कि अभागी "पुत्रियो के भाग्य- व्यर्थकी बातोंमे मराज-पच्ची करते फिरो ! सुबह हीन पिता" भी इसा संसारमं रहते है ! स्नानकर, चाय पो, थोड़ो देर नाविल पर नेम ही अधिक की आवश्यकता नहीं । बस, एक ही-मरो कालिजका समय हो जाता है। लाटते ही ब्याटकर बेटी, बस तुम ह। कापी हो। रग-कुण्डम चण्डीको रेकट हाथमे ले मित्रों के माथ टेनिम खलने जाना नाई हुँकार करती हुई गिरने वाली रक वीर-बाला अ.र अपने क्लवकी नई मम्पर मिमक श्राग्रह पर चुपचाप सिमक सम्मककर घुलने वाली निरह (भला उनका श्राग्रह कोई फैसे बाल सकता है !) कन्याओस अधिक मूल्यवान है ! प्रायः प्रतिदिन सिनेमा जाना तुमको पड़ता है। और उठो ! जो भारा मत कर न जाने कितनी मंलग्नता है तुम्हारी ? उम ओर देखने की ताननिकमीपुर नतुमको नहीं मिलती ? हां, उसी अंर जहां म्लान-मुम्बी कुम्हलाये कमलमी तुम्हारी बड़ी बहिन अपनी श्रायुका एक-क मदान्ध युवक ! इस प्रकार विलायती सेन्ट लगे दिन बढ़ते देखकर सिहर उठती है। एक दिन परदे रेशमी रुमालका हवाम उडालते कहाँ जा रहे हो? के पीछे खड़ो एक लड़को-वालपे पिताजीको मांगांका तुम्हारे मुखपर विजयोल्लासकी भाभा है, प्रॉखोंमें विशद विवेचन मन रही थी। पिताजी कह रहे थेचमक हं श्रर धनियाम गर्मरक्त आनन्दका संचार "मेरे तो एक ही ल का है । इमीकी शादीम ले-देकर कर रहा है ! पॉव भी धरतीपर पड़ते मालूम नही मनकी निकालना चाहता है। मोटरकार तो मै न होते! .. लेता परन्तु विगतरीके मब आदमियोको मालूम हो आग्विर क्यो न हो ? धनी मॉ-बापके इकलौते गया है कि कार लेकर ही मै अपने लड़की शादी लड़क! सुन्दर सुगठित देह · 'अर तिसपर अभी करूंगा। अतः अब न लेकर मैं अपनी बेइज्जती नहीं बिन ब्याहे !! कराना चाहता । बम, जनाव । अधिक बात में नहीं भविष्य की प्राची में भाग्योदयके सुन्दर रंग देख करना चाहता। यदि श्रापको स्वीकार हो तो..." कर तुम्हारा हृदय पुलकित हो उठता है। लगता है इतना ही सुन पाई थी कि तुमने पहुंचकर उसको मानों जगतके सकल पदार्थ, जो भाग्य-हीन नर नहीं लताड़ दिया था-"यहाँ क्या सुन रही है ? मवेरे पा सकेंगे, भविष्य अपने हाथों में लिए तुम्हारी प्रतीता जो दिया था उस कोटमे अभी तक बटन नही टॉके युवकम..
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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