SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५० अनेकान्त [ वर्ष ५ कि श्वेताम्बर समाजकी अपेक्षा दिगम्बर समाजका प्रयत्न इस ओर बहुत ही कम है । में प्रकाशित किया है । डा० पिटर्सन, वूल्हर, किल्हर्न, भण्डारकर, आदिको रिपोर्ट विविध ग्रन्थ संग्रहालयों को सूचिये, जैन ग्रन्थों की स्वतन्त्र सूचियां जैसे संस्कृतकालेज कलकत्ता, भण्डारकर इन्स्टयूट पूना, जेसलमेर अ. र पाटणके भण्डारोका सूचियां, जन गूर्जर कवियों भाग १-२-३ इस कथन के महत्वपूर्ण निदर्शन हैं । स्वतन्त्र रूप से भा श्वेताम्बर समाजकी ओर से दो प्रशतिसंग्रह छप चुके हैं । जिनमसे देशविरति धर्माधक समाजको आरसे प्रकाशित श्री प्रशन्तिसंग्रहम ताड़पत्र एवं काग़ज़ पर लिखित लग्भग १५०० पुस्तक के पुष्पिका-लेख प्रगट हो चुके है । र सिंधी जैन ग्रन्थमाला मे प्रकाशित मुनिजिनविजय जी सम्पादित 'जैनपुस्तकप्रशस्तिसंग्रह मे ५४४ महत्त्वपूर्ण प्राचीन पुष्पिकालेख छप चुके है । यह प्रन्थ शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला । मुनिजीका विचार इसका दूसरा भाग भी प्रकाशित करनका है। इन प्रकाशित प्रशस्तियों से कई कई प्रशस्तियाँ तो ४०-५० श्लोको तक की है जो काव्यकी दृष्टिसे भी बड़ी सुन्दर हैं, जिन्हे हम खण्ड काव्य भी कह सकते है। प्रकाशित प्रशस्तियों में हमारी संग्रहीत करीब ३०००, स्वर्गीय बाबू पूर्णचन्दजी नाइटा संग्रहात २०००, श्री विजयेन्द्र सूरिजी संग्रहीत लगभग १०००, श्री हरिसागर सूरि संग्रहीत ग्रन्थ रचना प्रशस्ति करीब १००, इसी प्रकार अन्य विद्वानोके पास भी हज़ारो प्रशस्तियां संग्रहित है । हम नहीं कह सकते कि दिगम्बर विद्वानांमंसे किस किसने कितनी प्रशस्तियोका संग्रह किया हूँ पर प्रकाशित रूपसे तो हमारे सामने केवल निम्नोक्त ३ ग्रन्थ ही दृष्टिगोचर होते हैं: १- रायबहादुर होरालाल सम्पादित Catalogue of Sanskrit and Prakrit manuscripts के पृष्ठ ७१७ से ७६८ में । २- श्री ऐल्क पन्नालाल दिगम्बर जैन सरस्वती भवन बम्बईकी रिपोर्टों में । ३ - जैन सिद्धान्त भवन, आरा से प्रकाश्यमान जैन सिद्धान्त भास्कर में | इससे पाठकोको सहज ही में अनुमान जायगा अब हम नमूने स्वरूप बोकानेरके श्री जिनचारित्र सूरि ज्ञानभण्डारस्थ दिगम्बर गुणभद्रकृत धनदचरित्रका पुष्पिकालेख नीचे देते हैं जिससे पाठकों को प्रशस्ति संग्रह के महत्त्वका थोडासा आभास मिलजायगा। धनदचरित्रको लेखन प्रशस्तिः (१) सम्बत १५२१ वर्षे अश्विनी बदि ६ गुरुवासरे पुस्तक लिखितं बहुद्रव्यपुरे आलमखानराज्यप्रवर्तमाने श्री काष्ठासंघ माथुरान्वये पुष्कर भट्टारक श्री हेमकीर्तिदेवा तत्पट्टे भट्टारक श्री कुमारसेनदेवाः तत्पट्टे भट्टारक श्री हेमचन्द्र देवाः तदाम्न्याये । ( २ ) अथ संवत्स स्मिन श्रीनृपविक्रमादित्य राज्य मं० १५६० वर्षे मार्गशिर सुदि ११ दिने वृहस्पतिवारे अश्विनी नक्षत्रे परिधजोगे श्री कुरूजांगलदेशे मुलितान मुगल काबली हमायुज्यमाने श्री काष्टसंघे माथुरान्वये पुष्करगणे भट्टारक श्री मलयकीर्ति देवान तत्पट्टे भट्टारक श्री गुणभद्रसूरि देवान तस्य शिष्य मुनि धर्मदास तभ्य आम्नाये अप्रोत वंश भूषण गर्गगोत्र दहीरपुरवा तव्य श्रावकाचार विचारकविधान मा० डालू तत्य भार्या शीलशालिनी गुणमालिनी विनयवागेश्वरी साध्वी जालपही त पुत्र रत्नत्रय धर्म इव ३ सा० रामचन्द्र कर्मचन्द्र तस्य भार्या देइ द्वितीय पु० सा० कर्मचन्द्र त० भा० सा० हाल ३ पुत्र सा० माडणु तम्य भा० शीलो तोयतरंगिणी सा० कल्हणही तस्य पु० द्वौ प्र० राजसभा श्रृंगार हारान सा० हसू तस्य भार्या टाकरही तस्य पु० धर्मानुरक्त श्रावकाचारदक्ष चतुर्विध दानदायक सा० भीखा तम्य भार्या साध्वी बालाही । हांसू द्वि पुत्रो सा० जेटा तस्य भार्या सर्वगुणालंकृत साध्वी लूगाही तम्य पुत्र चिरंजीवि भारथी चन्दु माडण हि पु० सहसू तय भार्या सा० डुगरही एतेषां मध्ये सर्वज्ञ ध्वनिनिर्गत जीवादि षडद्रव्य श्रद्धायें सा० हासू तस्य पुत्रेण इदं धनदचरित्रं अन्य पुमान हस्तात् गृहीय छुडाई मोल लेई दीनी ब्रह्म० धर्मदासस्य प्रदत्तं पठनार्थम् ।
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy