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________________ अनेकान्त [वर्ष ५ परन्तु इसके विरुद्ध कुछ लोगोंने यह कहने तकका शताब्दीके लगभगकी या उसके बादकी रचना मानते हैं। माहस किया है कि संस्कृतसे प्राकृतमें अनुवाद किया गया क्योंकि उसमें दीनार' शब्दका और ज्योतिषशास्त्रसम्बन्धी है। परन्तु मेरी समझमें वह कोरा साहस ही है। प्राकृतमे कुछ ग्रीक शब्दोंका उपयोग किया गया है। स्वर्गस्थ दी. तो संस्कृतमें बीसी ग्रन्थोके अनुवाद हुए हैं बल्कि साराका ब. केशवलाल ध्र बने तो उसे और भी अब चीन कहा सारा प्राचीन जैनसाहित्य ही प्राकृतमें लिखा गया था। भग- है। वे छन्दांके क्रम-विकास के इतिहासके विशेषज्ञ माने जाते वान महावीरकी दिव्यध्वनि भी अर्धमागधी प्राकृतमें ही हुई थे। इस ग्रन्थ के प्रत्येक उद्देसक अन्तमें जो गाहिणी, शरम थी। संस्कृतमें ग्रन्थ-रचना करनेकी ओर तो जैनाचार्योंका श्रादि छन्दोंका उपयोग किया गया है, वह उनकी समझमें ध्यान बहुत पीछे गया है और संस्कृतसे प्राकृतमें अनुवाद अर्वाचीन है । गीतिमे यमक और सगन्तम विमल' शब्द किये जानेका तो शायद एक भी उदाहरण नहीं है। का पाना भी उनकी दृष्टिम अवाचीनताका द्योतक है । परन्तु इसके सिवाय प्राकृत पउमचरियकी रचना कितनी हमें इन दलीलोमें कुछ अधिक सार नहीं दीखता । ये सुंदर. स्वाभाविक और आडम्बररहित है, उतनी संस्कृत अधिव तर ऐसे अनुमान हैं जिनपर बहुत भरोसा नहीं रक्खा पद्मचरितकी नहीं है जहाँ जहाँ वह शुन्द्व अनुवाद है, वहाँ जा सकता, ये गलत भी हो सकते हैं और जब स्वयं ग्रंथतो खैर ठीक है, परन्तु जहां पल्लवित किया गया है वहाँ कर्ता अपना समय दे रहा है, तब अविश्वास करनेका कोई अनावश्यक रूपसे बोझिल हो गया है। उदाहरणके लिए कारण भी तो नहीं दीखता। इसके सवाय डा. विंटरनीज़, अंजना और पवनंजयके समागमको ले लीजिए । प्राकृतमें डा. लायमन, श्रादि विद्वान वीर नि० ५३० को ही पउमकेवल चार पाँच प्रार्या छन्दोंमें ही इस प्रसंगको सुन्दर चरियकी रचनाकाल मानते हैं । न माननेका रनकी समझमें ढंगने कह दिया गया है. परन्तु संस्कृतमें बाईस पद्य लिखे काई कारण नहा है। गये हैं और बड़े विस्तारमे श्रालिंगन-पीडन, चुम्बन, दशन रामकथाकी विभिन्न धागएँ छद, नीवी-विमोचन, सीफार श्रादि काम-कलायें चित्रित रामकथा भारतवर्षकी सबसे अधिक लावयि क्या है की गई हैं जो अश्लीलताकी सीमा तक पहुँच गई हैं। और इसपर विपुल साहित्य निर्माण किया गया है। हिन्दू, पउमचरियके रचनाकाल बौद्ध और जैन इन तीनों ही प्राचीन सम्प्रदायोमे यह कथा अपने अपने ढंगम लिखी गई है और तीनों ही सम्प्रदायविमलसूरिने स्वयं पउमचरियकी रचनाका समय वीर वालोंने रामको अपना अपना महापुरुष माना है। नि० सं० ५३० (वि० ६०) दिया है, परन्तु कुछ विद्वानों अभी तक अधिकाश विद्वानोंका मत यह है कि इस मे इसमें सन्देह किया है । डा. हर्मन जाकोबी उसकी भाषा कथाको सबसे पहले बाल्मीकि मुनिने लिखा और संस्कृतका और रचना-शैली परसे अनुमान करते हैं कि वह ईसाकी सबसे पहला महाकाव्य (आदि काव्य) वाल्मीकि रामायण चौथी पाँचवीं शताब्दीसे पहलेका नहीं हो सकता । डा. है। उसके बाद यह कथा महाभारत, ब्रह्मपुराणा, पद्मपुराण, कीय,' डा. वुलनर भी उसे ईसाकी तीसरी अमिपुराण श्रादि सभी पुराणोमे थोड़े थोडे हेर फेरके साथ १ उदाहरणार्थ भगवती आगधना और पंचमंग्रहके अमित- संक्षेपमें लिपिबद्ध की गई है। इसके सवाय अध्यात्म गतिसू रिकृत संस्कृत अनुवाद, देवसेनके भावसंग्रहका रामायण, श्रानन्द-रामायण, अद्भुत-रामायण श्रादि नामसे वामदेवकृत संस्कृत अनुवाद, अमरकीतिके 'छक्कमोवाएम' भी कई रामायण-ग्रन्थ लिखे गये। बृहत्तर भारतके जावा, का संस्कृत 'पटकर्मोपदेश-माला' नामक अनुवाद, सर्व- सुमात्रा श्रादि देशोंके साहित्यमें भी इसका अनेक रूपान्तरों नन्दिके लोकविभागका सिइम रिकृत संस्कृत अनुवाद,आदि। के साथ विस्तार हुश्रा । २ 'एन्माइक्लोपिडिया लाफ रिलीन एण्ड एथिक्स' भाग अद्भुत-रामायणमें सीताकी उत्पत्तिकी कथा सबसे ७, पृ० ४३.७ और 'माडर्न रिव्यू' दिसम्बर सन् १६१४। निराली है। उसमें लिखा है कि दण्डकारण्यमें गृसमद ३ कथका संस्कृत साहित्यका इतिहास। ४ इन्ट्रोडक्शन टु प्राकृत। नामके एक ऋषि थे। उनकी स्त्रीने प्रार्थना की कि मेरे गर्भ
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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