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________________ भनेकान्तको महायता १०) श्रीमती चमेली देवी धर्मपत्नी स्व. भाई रामप्रसाद गत किरण १०.११में प्रकाशित सहायताके वाद १.६) जी जैन श्रोवरसियर, सरसावा, हाल एटा। रु. की निम्न सहायता प्राप्त हुई है, जिसके लिये दातार १०) बा. विश्वंभरदासजी जैन गार्गीय झांसी (पौत्र महाशय धन्यवादके पात्र हैं : जि० कान्तिप्रसाद के विवाहकी खुशीमें)। ५०) बा. जयभगवानजी वकील मादि जैन पंचान पानी- १) चौ० दर्शनलाल जीयालाल जी जैन, सुलतानपुर जि. पत, मध्ये सौ रुपयेकी स्वीकृत सहायताफे बाकी रहे सहारनपुर । हुए। इस रकममे २०) रु० ला. सूरतराय रघुबर. २) श्रीमती हीरादेवी सुपुत्री बा. रघुबरदयाल जी जैन, दयालजी जैन श्राडती मर्चेट व कमीशन एजेण्ट करोल बाग, देहली। पानीपतकी ओरसे हैं। २) ला. भागमलदास रामचन्द्रदासजी जैन, मुजफ्फरनगर १५) संठ कल्याणमल जी गोधा, उज्जैन और सेठ बैजनाथ (पुत्र विवाहगी खुशीम)। जी बडजात्या, मुजफ्फरनगर (चि. पुत्र नरेन्द्रकुमार २) ला. गोविन्दराय श्रीचन्दजी जैन, बडका-बधीत जि. और चि० पुत्री शान्तिदेवीके विवाहकी खुशीमें)। मेरट (पुत्र विवाहकी खुशीमें)। ११) ला०ब.बलाल श्यामलालजी जैन श्राइती, खतौलीजि०१) श्रीमती चान्दवाई धर्मपत्नी बा. चन्दूलाल जी जैन मुजफ्फरनगर (चि. श्यामलालके विवाहको खुशीमे)। अब्दुल्लापुर जि. अम्बाना (लायबेरीके लिये) १०) ला. मुन्नालाल भगवानदास पर्राफ. क्लाथमर्चेन्ट अधिनाता 'वीरसेवामन्दिर' ललितपुर (दो पुत्रियों के विवाहकी खुशी में)। ५) शाह सौभाग्यचंद कालीदासजी जैन, पो.डबका बडौदा) विलम्बका कारण ५) ला• मित्तरसेन मामचन्दजी जैन, देवन्द जि. सहा. ___ कागजके न मिलने, सम्पादकजीके अम्वस्थ रहने और नपुर (पितामहीके देहावसानपर निकाले हुए ६०१) दो बडे तरयार लेखोंके कानपुरके परिषद् अधिवेशनमें चोरी के दानये )। चले जाने तथा फिरसे उनके लिखाये जाने श्रादिके कारण ४) ला. नन्दुमल (फर्म हीरालाल नन्दमन) और ला. इस किरणके प्रकाशनमें असाधारण विलम्ब हो गया है, कुन्दनलाल (फर्म उमरावसिंह रतनलाल) देहली जिपका हमे खेद है ! अाशा है इस मजबरीके लिये पाठक (ध नेमचंद और पुत्री दर्शनमालाके विवाहकी वशी क्षमा करेंगे।" .. . -प्रकाशक. में), मार्फत बा० पन्नालाल जैन अग्रवाल देहली। अध्यात्मकमलमातण्डकामानुवाद प्रकाशन ५) ला० शिखर चन्दजी जैन अफजलगढ़ जि. बिजनौर यह ग्रन्थरन उन विद्वहर कविराजमल्लकी कृति है जो (चि. पुत्र राजेन्द्रकुमारके विवाहकी खुशी में)। चलायी और लाटी संहिता जैसे ग्रन्थोंके प्रसिद्ध ग्रन्थ२) ला० भोलामाथ कामताप्रसादजी जैन सरधना जि. कार और इस लिये इसके महत्व-सम्बन्धमें अधिक मेरठ (चि. कामताप्रसादके विवाहकी खुशी में)। कुछ भी कहने की जरूरत नहीं है। जिन मजनोंने पंचाध्याव्यवस्थापक 'अनेकान्न' यीको देखा है वे कविचरकी युनि-पुरस्सर चमत्कृत लेखनीमे भले प्रकार परिचित हैं। फिर भी यहां इतना कह देना ही वीरसेवामन्दिरको महायता पर्याप्त होगा कि इस१०५पद्यात्मक कृजे में अध्यामसमुद्रको बहे अनेकान्तकी गत किरण नं० ८- में प्रकाशित सहा- कौशल के साथ बन्द किया गया है। पाठक इसके अध्ययन यताके बाद वीरसेवामन्दिर सरसावाको जो नई सहायता से बड़े-बड़े अध्यागम ग्रंथोंको मथकर निकाले हुए नवनीत प्राप्त हुई है वह निम्न प्रकार है, और इसके लिये दातार का रसास्वादन करेंगे । वीरसेवामन्दिग्ने अनेकान्तके छठे महाशय धन्यवाद के पात्र हैं: वर्षकी प्रथम किग्यमे इस पूरे ग्रंथको अनुवाद तथा प्रस्ता११) ला० शीतलप्रमाद गिरनारीलालजी जैन, चकरीता वनादिके साथ दे देनेका निश्चय किया है। आशा है भादों जि० देहरादून (चि. महावीरप्रसादके विवाहकी खुशी सदीमें अनेकान्तकी नई योजनाके साथ यह ग्रंथ पाठवोंके में लायब्रेके लिये)। हाथों में पहुंचकर उन्हें पानन्दित करेगा। -अधिष्ठाता
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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