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अनेकान्त
[वष ५
श्रीनगरचन्दजी नाहटा, मुनिकान्तिसागरजी और बा० इंच कम हो जायगा। इससे वीरसेवामन्दिरके सामने महावीरप्रसादजीके नाम खास तौरसे उल्लेखनीय हैं। नये-नये उत्तम ग्रंथों के प्रकाशनकी जो विशाल योजना श्राशा है ये सब सज्जन आगेको और भी अधिक है उसमें भारी सुविधा हो जायगी । अब अनेकान्त उत्साह एवं तत्परताके साथ अनेकान्तको अपना पूर्ण पत्र द्वारा महत्वके अप्रकाशित प्राचीन ग्रन्थोंको अनुसहयोग प्रदान करनेका ध्यान रक्खेगे, और दूमरे वादादिके साथ प्रकाशित करके कितने ही लुप्तप्राय सुलेखक भी उसे अपनी बहुमूल्य सेवाएँ अपेण करने एवं अलभ्य साहित्यके उद्धारका पूरा प्रयत्न किया की उदारता दिखलाएँगे।
जायगा और इस बातकी ओर विशेष ध्यान रक्खा इस वर्षके सम्पादनकालमें मुझमे जो भूले हुई
जायगा कि जो ग्रंथ प्रकाशित हो वह यथासंभव एक हों अथवा सम्पादकीय कर्तव्यके अनुरोधवश किये हो अंकमें पूरा हो जाय । इसीसे पत्रको मासिकक गये मेरे किसी भी कार्य-व्यवहारसे या टीका-टिप्पणी स्थानमें त्रैमासिकका रूप दिया जा रहा है, जिसकी से किसी भाईको कुछ कष्ट पहुँचा हो तो उसके लिये पृटसंख्या ग्रंथानुरूपसे कुछ घट-बढ़ रहने पर भी वर्ष मै हदयसे क्षमा-प्रार्थी है। क्योंकि मेरा लक्ष्य जानबभ भरमें ५०० के लगभग जरूर होगी। पत्र में प्रकाशित कर किमी को भी व्यर्थ कष्ट पहुँचानेका नही रहा है
ग्रन्थोकी पृष्ठसंख्या अलग-अलग रहेगी, जिससे वे और न सम्पादकीय कर्तव्यसे उपेक्षा धारण करना ही
पत्रके लेखीय भागमे अलग करके रख तथा स्वतंत्र मुझे कभी इष्ट रहा है।
रूपस उपयोगमें लाये जासकं । लेखीय भागमें महत्व
का गवेषणापूर्ण तात्विक, ऐतिहासिक तथा जीवनके २. अगले वर्षकी योजना
लिये उपयोगी साहित्य रहेगा। और इस तरह पत्रको गत किरणमें अनेकान्तके लिये जो चिन्ता व्यक्त सर्वोपयोगी तथा बार-बार पढ़ने योग्य बनानेका पूर्ण की गई थी और प्रेमी पाठकोंमे इस पत्रके जारी आयोजन किया जायगा। पहली किरण में पंचाध्यायी रखने न रखने आदिके विपय समस्याके हल करने के कर्ता कविवर राजमल्लजीका 'अध्यात्मकमलमातरूप सम्मति माँगी गई थी उसके उत्तर में पत्रको एड' नामका महत्वपूर्ण ग्रंथ सानुवाद प्रकाशित किया बन्द कर देनेकी तो किमीकी भी राय नहीं हुई- जायगा, जिम्की विज्ञप्ति टाइटल के चतुर्थ पेज पर दी अनेकोंने बन्द करनेकी आशंकामात्रपर भारी दुःख गई है। साथमें 'लोकविजययंत्र' नामके एक प्राकृत प्रकट किया है। इमसे पत्रको बन्द न करके जारी गाथाबद्ध प्राचीन ग्रंथको भी यंत्रमहित देनेका विचार रखनेका हा निश्चय किया गया है। रही मूल्य और है, जिससेसहज हीमें देश-विदेशके भविष्यका कितना
आकार-प्रकारादिकी बात, कागजकी भारी मॅहगाई ही परिज्ञान होसकेगा और जो बड़ा ही अपूर्वग्रन्थ है। एवं दुष्प्राप्ति, मरकारी आर्डर और तदनुमार पत्रोकी अगली किरणोंमें भद्रबाहु-निमित्तशास्त्र, मृत्युविज्ञान, मूल्यवृद्धिको देखते हुए बार्षिक मूल्य ३) २० के स्थान आयज्ञानतिलक (प्रश्नशास्त्र), और कविवर राजमल्ल पर ५) रु० स्थिर करना पड़ा है-हिन्दुस्तान जैम का ऐतिहासिक उल्लेखों के उदाहरणोंसे परिपूर्ण पिगल भारी संख्यामे प्रकाशित होने वाले पत्रों तकने २) रु० शास्त्र जैसे ग्रंथ भी यथावमा प्रकाशित किये जायेंगे। मासिके स्थान पर ३॥) रु० मासिक कर दिया है, और भी कितने ही महत्व के अप्रसिद्ध प्रार्चन ग्रन्थोंको माथ ही प्रकार छोटा करक पृष्टमंख्या भी घटा की ऐतिहामिक परिचयादिके साथ प्रकाशमे लानेका विचार है। अनेकान्तका आकार २०४३० साइज अटपेजीक है। आशा है इस नवीन योजनामें अनेकान्तके प्रेमी स्थानपर २०४२६ अठपेजी कर दिया है, जो लम्बाई पाठको तथा साहित्योहारके पुण्य कार्यमे दिलचस्पी में वर्तमान आकार जितना ही रहेगा, चौड़ाई में एक रखनेवाल मजनोंका पूरा सहयोग प्राप्त होगा।