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________________ अनेकान्तका द्विवार्षिक हिसाब वीरसेवामन्दिरसे अनेकान्तका प्रकाशन प्रारम्भ हुए दो तक उन्नति ही कर सका है जिस हद तक उन्नति करना उसे वर्ष हो चुके। इन दो वर्षों में अनेकान्तका चौथा और इष्ट था-घाटेकी श्राशंका उसे बराबर सताती रही, जिससे पाँचौं वर्ष शामिल हैं । वीरसेवामन्दिरने नवम्बर सन् उसकासकोच दूर होनेमे नहीं पाया और वह यथेटरूपमे प्रगति १९४० में प्रकाशन-भारको अपने ऊपर लिया था, फर्वरी नहीं कर सका, फिर भी इन दो वर्षोंमे उसे पहनेकी तरह सन् १९४१ में चतुर्थ वर्षकी प्रथम किरण प्रकाशितकी थी घाटा उठाना नहीं पडा, प्रत्युत इसके वह कुछ पैसा बचा और अब पंचम वर्षकी अन्तिम किरणको, कागज आदिकी सका है जो अगले वर्ष में कदम बढ़ानेके लिये प्रोत्साहित कर कुछ परिस्थितियोंके वश, जून मासकी समाप्तिपर प्रकाशित रहा है, और यह सब भी कुछ कम सौभाग्यकी बात नहीं है। किया जा रहा है। इस तरह अनेकान्तका हिसाब अढाई आशा है आगामी वर्ष प्रेमी पाठक इसकी ओर विशेषरूपसे वर्षका हो जाता है, जिसे इस किरणके साथ पाठकोंके सामने प्राकृष्ट होगे और वर्तव्यनिष्ठ उदार महानुभाव नेकान्तके रख देना उचित मालूम होता है। हिसाबको सामने रखनेसे प्रति अपने कर्तव्यको ध्यानमें लाकर उसे सब पोरसे निश्चिन्त पहले मुझे यह प्रकट करते हुए बडी प्रसन्नता होती है कि बनाने एवं ऊँचा उठानेके लिये अपना पूरा सहयोग प्रदान अबकी बार अनेकान्तको घाटेका मुंह देखना नहीं पड़ा, करेंगे | अस्तु । जिसका सारा श्रेय उन सहायक सजनोको प्राप्त है जिन्होंने हिसाबका जो गोशवारा प्रागे दिया जाता है उसमे तृतीय वर्षकी १२ वी किरण (पृ० ६६६ ) में प्रकाशित प्रकट है कि इन दो वर्षों में वास्तविक आमदनी 'मेरी प्रान्तरिक इच्छा' और चतुर्थ वर्षके नववर्षाङ्क (पृ. ११२१) की हुई । खर्चकी कुल रकम ३४८१10) मे ३६ ) में दिये हुए मेरे 'श्रावश्यक निवेदन' पर ध्यान देते से ८६) की उस रकमको मिन्हा कर देनेपर जो बकाया हुए अनेकान्तको सहायता भेजने-भिजवानेकी उदारता कागज तथा पोष्टेजकी बाबत जमा की गई, खर्चकी वास्तविक दिखलाई है. और इस लिए मैं उनका खास तौरसे आभारी रकम ३३१२-) होती है, जिसे श्रामदनीकी उक्त रकममेसे हूं। यद्यपि मेरे निवेदनपर उतना ध्यान नहीं दिया गया घटा देनेपर ७२६) अवशिष्ट रहते हैं । इनमेसे १२) जितना कि दिया जाना चाहिये था और इसी लिये अने- को उस रकमको घटानेपर जो इस किरणके खर्च में प्रायः कान्तको अभी तक अपने भविष्यके विषयमें वह निश्चिन्तता देनी है, ६३७०) की जो रकम बाकी रहती है वही इन प्राप्त नहीं हुई जो होनी चाहिए थी और न वह उस हद दोनों वर्षोमें लगभग बचतकी रकम समझनी चाहिये। गोशवारा हिसाब 'अनेकान्त' ना०१ नवम्बर सन् १६४० से ३० जून सन १६४३ तक आमद (जमा) खर्च (नाम) ४) पिछले सम्पादक-श्राफिम खाते बाकी । १७२||) कागज खर्च में दिये इस प्रकार: २१६॥) धर्मदाख हंसकुमार, सहारनपुर । १९५६) ग्राहकोंसे प्राप्त, जिसमें १०५४)वी०पी० पोष्टेज १०५७)। मामनचन्द राधाकिशन, सहारनपुर । श्रादिके शामिल हैं: ७०||2) मंगृमल कागजी, सहारनपुर । १०१६॥) चतुर्थ वर्ष की बाबत मय ५७ ) १६०11-) सिद्धोमल ऐंड सन्स काग़जी, देइली। वी० पी० पोष्टेज श्रादिके। ३०६।।1-) धूमीमल धर्मदाम, देहली। ६३६||) पंचम वर्षकी बाबत मय ४७॥) ४॥) सुन्दरलाल नथीमल भार्गव, देहली। बी० पी० पोष्टेज श्रादिके। ३) नन्दराम सूरजमल कागजी, देहली। २५१) कौशलप्रसाद, सहारनपुर । १६५६) ४२||-) रघुवीर सिंह सर्राफ, देहली। ६३) समन्तभद्र श्राश्रमसे प्राप्त स्थायी सदस्योंकी बाबत. ३४) वीरसेवामन्दिर-ग्रन्थमाला, सरसावा । जिन्हें अनेकान्त फ्री भेजा गया। १७२||)
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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