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________________ अनेकान्त [वर्ष५ विभिन्न विषयों पर सुन्दर सूक्तियोंका निर्माण संस्कृत का डेड़ रुपया। पदोंमें किया है। पद्योंकी रचना सरल और मरस है, प्रस्तुत पुस्तक देवकुमार-ग्रंथमालाका पंचमपुष्प है। और वे अपने विषयके स्पष्ट परिचायक हैं। अनुवाद इस संग्रहमें ५४ प्रथोंकी प्रशस्तियाँ दी गई हैं। ये भी अच्छा हुआ है। अनुवाद साथमें रहनेसे पाठकों सब प्रशस्तियाँ जैनसिद्धान्तभास्कर में क्रमशः प्रकाशित को मूलका सहज हीमें परिचय हो जाता है । पुस्तक हुई हैं। उन्हींका यह अलग पुस्तकरूपमें प्रकाशन अच्छी अयोगी एवं संग्रहणीय है। इसके लिये लेखक है। ग्रंथप्रशस्तियोंका ऐतिहासिक जगतमें कितना और प्रकाशक दोनों धन्यवाद के पात्र हैं। महत्व एवं आदर है और उनमें कितनी ऐतिहासिक ४ तस्वन्याय-विभाकर (स्वोपाटीकासहित) मामग्री निहित है इसे बनलानेकी आवश्यकता नहीं। -लेखक, पाख्यानवाचस्पति श्रीविजयलब्धिसूरीश्वर। इतिहासज्ञों और रिमर्च के स्कालरों के लिये तो वे प्रकाशक, लब्धिसूरीश्वरग्रन्थमाला, वाणी । पृष्ठ संख्या बहुत ही उपयोगी होती हैं। ममस्त दि. ग्रंथोंकी मब मिलाकर ६६४ । मूल्य, मजिल्द प्रतिका पाँच रु०। प्रशस्तियोंके संकलन हो जाने पर जैन इतिवृत्त मुलग्रंथका परिचय अनेकान्त वर्ष ३ किरण ६ मे के निर्माणमे जो मुविधा प्राप्त होगी वह अकथनीय दिया जा चुका है । यह उमी ग्रंथको विस्तृत स्वापज्ञ है। परन्तु ग्वद है कि इम और दि० जैनसमाजका टीका है । इममें मूलग्रंथके प्रतिपादा विषयका स्वयं लक्ष्य नहीके बगबर है। इस दिशामे जैन-सिद्धान्न प्रथकार द्वारा अच्छी तरह स्पष्टीकरण किया गया है। भवनका यह प्रथम कदम प्रशमनीय है। ४०पृष्ठों में दी गई विस्तृत विषय-सूचीम टीका-गत मभी इस प्रथके माथ प्रशम्तियोंम आए हा श्राचार्य, स्थलोंका महज ही परिचय मिल जाता है। ग्रंथ न्याय- मुनि-आयिका, गरमा-गच्छ, श्रावक, श्राविका, शासक, शास्त्र के अभ्यासियोंके लिये उपयोगी और संग्रहणीय शासिका, माचव, मनानायक, कोपाध्यक्ष एवं गजहै। कागजको महगाई के समयमें पुस्तकक कलेवदि ष्ठियोंकी सूनक और ग्रंथ तथा नदगन स्थलोको भी को देखते हुए मूल्य भी कम ही रक्खा गया है। समाविष्ट करनेवाली एक २० पृष्ठोकी तालिका अका५ प्रशस्ति-संग्रह-संपादक पं० के० भुजबली गदि क्रमम दी है, जिसमें कितनी ही तिहासिक शास्त्री, जैन मद्धान्त भवन, आग। प्रकाशक, बा० बातोंका महज ही पयवेक्षण किया जा सकता है। निर्मलकुमार जैन मंत्री जैन-मिद्धान्तभवन आग। पुस्तक पटनाय तथा संग्रह करने योग्य है। पृष्ठ सम्या, सब मिलाकर २२८ । मृल्य, अजिल्ल प्रति -परमानन्द जैन शास्त्री हमारे अधुनिक जैनकवि--------- ----........-------- एक मर्वाङ्गपूर्गा मंग्रहका आयोजन अखल भारतीय दिगम्बर जैनपरिषदके कानपुर अधि- रमागनी जैन, धर्मपन्नी दानवीर माहू शान्तिप्रसादजी जैन, वेशनके अवसरपर होने वाले कवि-सम्मेलनकी सफलतासे डालमिया नगर (बिहार) के पतेपर शीघ्र भिजवाद। प्रभावित होकर परिषद्के सभापति, दानवीर माहू शान्ति. कवितासंग्रहकी प्रति जैन पत्रांक उन ग्राहको की बिना प्रसादजीने एक ऐसे कविता-संग्रह के संकलन और प्रक शन मूल्य भेंटकी जायेगी जिनकी सूची हमे पव्र सम्पादकी द्वारा का भार अपनी धर्मपत्नी श्रीमती रमारानी जनक सुपुट प्राप्त होगी। पत्रांके ग्राहक इस सम्बन्ध पत्रक सम्पादका किया था जिसमें प्राधुनिक जैन कवियोंकी सर्वोत्तम रचनाये को पहलेसे ही सूचित करें ताकि कुल संख्याक अनुमानके संग्रहीत हो और जिसका प्रकाशन सागपूर्ण तथा सुन्दर अनमार पुस्तक छपाई जाए। प्रत्यक ग्राहकका केवल एक ही हो। श्रीलचमीचन्द्र जैन एम० ए० श्रीर श्री अयोध्याप्रमाद प्रति भेट की जायेगी। आशा है जैन समाज सभी सम्पाजी गोयलीयके पहयोगमे श्रीमती रमारानी जैनने संग्रहका दकांके कवि और कवियित्रियों अपनी मर्वोनम चिनाएँ कार्य प्रारम्भ कर दिया। उपर्युन पनेपर शीघ्र भेजनेकी कृपा करेंगे । कविताप्रोका समस्त जैन समाजके कवियो और कवियित्रियोम विषय चाहे धार्मिक हो या लौकिक, किन्तु वह साहित्यिक निवेदन है कि वह अपनी पाठ आठ दस-दस मत्तम दृष्टिमे उच्च कोटिकी होनी चाहिये, जिन्हें अजैनबन्धु भी रचनायें अपनी फोटो और संक्षिप्त जीवनी, शीघ्र ही श्रीमती चावगे पढ़ें। --मंत्री---भा०दि.जैनपरिषद
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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