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________________ अनेकान्त [ वर्ष ५ जा सकते हैं। और न सर्वार्थसिद्धि तथा राजवार्तिक अख- म. २ सू०४७ ४८।०३ सू० ३१ । १०५ ण्ड व्याख्या ग्रंथ हैं। इनमें मी उक्त भाष्योंकी तरह मंगल सू० २०, ३६, ३८ । अ०६ सू० १८, २३, १४ । रलोकके अतिरिक्त मध्यके अनेकसूत्रों, पदों और शब्दोंको अ०७ सू० १०, ११, १२ । ०६ सू० ३२, ३३ । भी अभ्यास्यात छोर दिया गया है । 'च' 'तु' जैसे शब्दों उदाहरक्षकी तो बात ही क्या है। ऐसी ही स्थिति श्लोकवातिककी व्याख्यापद्धतिकी भी है जिस पर भागेके प्रत्याक्षेपमें जोर (क) अव्याख्तातसुत्रदिया गया है। नीचेके कुछ उदाहरणोपरसे यह विषय अ. ४ सू० २८, २९, ३०, ३१ । विल्कुल स्पष्ट हो जाता है और शास्त्री जीने अखण्ड व्याख्या (ब) व सूत्र जिनके रेखाङ्कित पद अव्याख्यात हैंहद्धतिकी जो नई बात कही है वह गलत ठहरती है:- १ भवनेषु च' (अ० ४ सू० ३७) २ 'अपरा द्वादशमुहूर्ता वेदनीयस्य' (म०८ सू०१८) (१) सर्वार्थसिद्धिके उदाहरण(क) अव्याख्यात सूत्र-लोकान्तकानामय सागरो- (ग) वे सूत्र जिनमें प्रयुक्त हुये 'च' 'वा' इति' और पमाणि सर्वेषाम् । (अ.४ सू०४२) 'अपि' शल्द अव्याख्यात हैं म. २ स० ४७, ४८। (ख) सूत्र जिनके रेग्याङ्कित पद अव्याख्यात है-- प्र० ३ स. ४० । अ० ५ स० ७, २०, ३६ : . 'प्रत्यक्षमन्यत्' (भ० १, सू. १२) श्र. ६ स. २४ । अ० ७ सू० १०, ११, १२ । २ तद्विगुणद्विगुणविस्तारा वर्षधरवर्षा विदेहान्ताः' म. सू. ३२, ३३ । अ० १० सू. ३ । (०३ सू० २५) (घ) वे मत्र जिनके वार्तिक नहीं है-- ३ 'पारणाच्युताय मेकैकेन.. '(१०४,सूत्र. ३२) अ० २ स. ३७, ३८, ४१ । प्र० ३ स. ११, १२ (ग) वे सूत्र जिनके उत्थान वाक्य नहीं हैं १३ इत्यादि। अ०७ सू० २६ २७, २८, २६, अ. सू० २६ । अ. ४ स. १६, २८, २९, ३० इत्यादि । श्र.. (घ) वे सूत्र जिनमें प्रयुक्त हुये 'च' 'वा' 'इति' स. १९। शब्द अव्याख्यात हैं (छ) वे मुत्र जिनके उत्थान-वाक्य नहीं हैंअ. ३ सु. ३५, ३१ । ०५ सू०७, ३६ । ०६ प्र. २ स. २५ । अ०३ स. १, ७, ११. २६ । अ० सू० १८, २५, २४ । १०७ सू० १०,११,१२। अ०१ ४ स. १, २, ३ इत्यादि । अ०५ स० १ २, ३ सू० ३२, ३३ । प्रादि । १०६ स. १, २, १० आदि । अ० ७ स. (२) राजषार्तिकके उदाहरण १.३, ११, १२ । अ० ८ सू० २५ । अ० ६ स. ६ (क) अव्याख्यात सूत्र आदि । भ० १० स० ५। __'अपरा द्वादशमुहूर्ता वेदनीयस्य' (म० ८ सू० १८) (च) वे सत्र जिनके वार्तिक और व्याख्यान न होने (ख) वे सूत्र जिनके रेखाहित पद अव्याख्यात हैं के साथ-साथ उत्थानवाक्य भी नहीं हैं:. 'शेषाणां संमूर्खनम्' (अ० २ सू० ३१) अ०४ सू. २६, ३०, २ 'पारणाच्युतादूवमेकैकेन ' (०४ सू० ३२) ऐसी हालतमे सर्वार्थ सिद्धि आदिको अखण्ड व्याख्या(ग) वे सूत्र जिनके उत्थानवाक्य नहीं है- ग्रन्थ एवं अविकल व्याख्यानात्मक बता कर मंगल-श्लोकके अ. ७ सू० २६, २७, २८, २९, १०८, सू०२६ व्याख्यान पर जोर देना और श्वे० कर्मग्रन्थोंके भायोंको, (घ) वे सूत्र जिनमें प्रयुक्त हुए 'च' 'वा' 'इति' और जिनमें मंगल-गाथाका व्याख्यान नही है और न निर्देश ही 'अपि' शब्द अव्याख्यात हैं है, पूरक भाष्य कह कर व्याख्यान न होने की पुष्टि करना
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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