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पंडित-गुण
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बात.
[कुछ वर्ष हुए गेहतक (पंजाब) के शास्त्रमण्डारको रेग्बत ममय, मैने एक गुटके परमे 'पंडितनगण' नामकी कविताको नोट किया था, जो अपभ्रंश भाषाम लिबी गई है और उमका लेवक है कवि 'नल्नु' । इममे शान्तिनाथ भगवानको नमस्कार करके पडितम पाये जाने वाले गुणोंके निर्देश-द्वारा पाहतकी पहिचान बतलाई है-अर्थात यह मुचित किया है कि जो इन गुणोम युक्त है वह परित' है और जिमम ये गुण प्रायः नही पाये जाने वह पंडित नहींपंडिन कहलानेका वास्तवम अधिकारी नहीं । मंगलाचरणके अनन्नर विषय-कथन की कोई प्रतिजा नहीं । कविताम काय ने अपना तथा अपने ममयका कोई परिचय भी नहीं दिया। मालूम नही इस कविकी और कितनी तथा कौन कोन कृनिया हैं, जिन्हे कुछ मालूम हो उन्हें प्रकट करना चाहिये । अस्तु अनेकान्तक पाठकाकी जानकारीक लिये उक्त कावना अनुवादके साथ नीच प्रकाशित की जाती है।
-सम्पादक
(मूल) पदविवि जगमंडणु कलि-मल-खंडणु मंतिणाहु मंतिक्करणु । मिव-उरि-संपत्तउ भव भय-चत्त बजिय-जम्म-जरा-मरण ॥छ। मो पंडित जी परतिय धंस, मो पंडित जी इंदिय दंडमो पंडिउ जो मनु संबोहह विणयचंतु बुहयणमहि पोहइ ।। मोपंडिउ जोप्रमुवय पाबा,जलनोलेहिं (कलकु पखालह। मो पंडिड जो बमण] वजह, परहे होम बोलनह लजह ॥ मोपंडिउ जो गणाणुप्पाचह' [सरधावंतु गुह अणुगगइ ।मो पंडिउ जो अप्पा मावहि वीतरागुअादिगु बाराहइ ।। सो पंडिड जो महुरड जंपह, धीक होइ जसु चित्तु न कपड़ । सोपडिउ जो मच्छक छंह,कोहु लोहु भय-माह विवजह ॥ मो पंडिट जो मापा शिंदह, तीन काख जिणवर-पय वनइ । मोपंडिउ जोमम-दमवंत उ, विमग्रनुक्ग्य पणु विमय विरत्तउ॥ *सो पंडिड जोभनदुहीमइ, सो पंडिउ जो मुक्षु ममीहइ। पत्ता-य पंडिय-गण बारिया, जंजिण शाहे मिटिया । कवि कहा नन्दु कर जोडकर, जम परंपर अपिग्षया ।
इति पंडितगण॥
(अनुवाद) उन जग-भूपण, पारा-गल-नाशक और शानिक ग्नेि वाले श्रीशा। ननाथको नमार है, जा शिवपर्गका पाम हुए हैं, भव-भयमे गहन है और जन्म-जग-मरणम मभित हैं।
पांडन वह है जोपरस्त्रीका त्यागी है। पौडन वह है जा इन्द्रियांको दगिदत करता है-उन्ह म्बासीन बना है। पंडिन वही जो अपने मनको मबाघ देता है, विनयवार बुधजनाक. माघशामा पाई।
पंडित वह है जो अग्मिादि) अणुव्र की गलना ४ बार उनके द्वारा पार-मलका उमा नदघा दालना है जिम नगद जनकी तरंगं मलका बहा देना है। पांडत यह है नो (यतादि) पसनोको त्याग र दमग दोषांको मनम जिस लज्जा पाती है।
पंडित यह है जी जान उत्पादनम लगा रहा है, [श्रद्धावान है और गृणाम अनुगग बना है] | पांडन वह है जो प्रात्माको ध्याना है और चीनगगकी प्रातदिन श्रागधना करना है।
पंडित वट है जो मधुर वचन बोलना है. धीरज रग्बना है और जिमका निन कापना नहीं। डिन वह ई जा मन्म-भावको छोड़ना है बार क्रोध लोभ तथा मद-हको न्यागता है।
पंडित वह है जो अात्मान्दा करता है और नीन बाल जिनेन्द्र-चग्गाकी वन्दना करता है। पांडन वह है जो ममदमवन्न है और विषय-मुग्य तथा इन्द्रिय-विषयोमे श्रामक नहीं होना । पाइन वट है जो ममार-दम्पम भयभीन रहते पडिन वह है जो मोक्षकी अभिलाषा रग्यता है।
ये पंडितगुण जिननाथकी शिनानमार कहे गये है। नल्द कवि हाथ जाट कर कहना कि जेमा पगम कथन चना अाया है यह उमीके अनुमार है।
कटका पाठ त्रुटिन चरणकी पूर्ति के लिए अपनी प्रोग्स ग्वया गया है। २ या पद्य अाधा है, मभव : मके श्रादि या अन्नके दो चरण लिम्वनेमें छूट गये हो।