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________________ अनेकान्त | वर्ष५ अण्डाउय-पोयाउय-जगच्या गभगा इमे भणिया। मारनं हेमवयं पुग्ण हग्विाम नह महाधिदेहं च । सुरनारय उबवाया इमे य संमृच्छिया जीया ||| रम्मय हेरगणवयं उत्तरी हवइ एरवयं ।। १०६।। -यमच गय०१०२ -उमञ्चग्य, :००२ श्रीदारिकवैक्रियिकाहायजमकार्मणा न शरीगग ३६ तद्विभाजिनः पूर्वापरयता हिमवन्हाहिमवनि परंपरं सुक्ष्मम ॥३७॥ तत्वार्थसूत्र, अ०२ पधनीलविशिखरिणो वपंधरपर्वताः ॥ ओरालियं विवाहार जम कम्मदयं । -तत्वा०, अ०३ सुहम परंपराए, गुणहि संपज्जइ मरीरं ।। ३६८।। हिगवो य महाहिमवो निमटोनीलो यमपि मिरीय। --पउमचरिय, उ०१.२ गह विहत्ताहं मतं हवंति वामाइ ॥ १० ॥ ग्लशकंगवालुकाकधूमतमोमहानमःप्रभा भूमयो --उमचरिय, २०१०० घनाम्बुवानाकाशप्रतिष्ठा समाधोधः॥५॥ गंगासिन्धुगहिदोहितान्याहरिद्धरिकांतासंतातत्त्वा०, अ०३ मातोदानारीनरकान्तासुवर्गरूप्यकुलार कारक दामरिग्यणप्पभाय-सकर-बालुय-पंकप्पभा य धूमपभा । नम्तन्मध्यगाः ॥ २०॥ -तत्वा०, अ०३ पत्तो तमा तमतमा ममिया हवइ अह योग ॥६६|| गगग य पढम मरिया मिन्धू पुरण रोहिया गयचा ! ताम त्रिशल्पञ्चविंशतिपञ्चदश पउमरिय, उ० १०२ तह चव गहियमा हीनदा चेव हरिकंना ॥१०॥ दशत्रिपञ्चानेकनरकशतसहस्राणि चव यथाक्रमम मीया विय मीओया नारी य तहेव होइ नरकता। ॥२॥ -तत्वा०, अ०३ तीसाय पन्नवीसा पणरम दम्चेब होति नरकाऊ । रूपय सुवगणकृन्ना रत्ता रत्तावई भगिया ।। १०॥ तिएणक्कं पंचूर्ण चित्र अणत्तग नग्या ।। ३७ ।। -पउमचाग्यि ,३० १०२ भरतगवतयोहिदामी पटसमयान्यामुमगिगावा-पउमचरिय,३०२ तेवेकत्रिशप्तदशमप्तदशहाविशतित्रयस्त्रिशत्मागरम पिंणीयम ॥२७॥ मत्वानां पथितिः॥६॥ --तत्वा०, अ०३ ताभ्यामप्गभूमयोऽवस्थिताः। -सन्वार्थमन्त्र, ०३ एकंच निरिण मत्त य दम सत्तरमहंव बावी। भरहरवा सुतहा हागी वुदी मोमु य होड नम१ तेत्तीस उहिनामा आऊ रयणप्पभादाम ॥२३॥ --पत्मचरिय२०३ भग्नैरावतविदेहाः कर्मभूमयोऽन्यत्र देवकुरुत्तरकुरुभ्यः, -पध्मचरिय,.१००। जम्बूद्वीपलवणोदादयः शुभनामानो द्वीपसमुद्राः ॥७॥ तत्वा० अ०, ३ सू० ३७ द्विििवष्कम्भाः पूर्वपूर्वपरिक्षेपिणो बलयाकृतयः ।।८।। पंचसु पंचसु पंचमु भरहेरवामु तह विदेहेम् । भगिया उ कम्मभूमी तीमं पुरण योगभमीश्रो ।।११।। तत्वा०, अ०३ जम्बूहावाईया दीवा लवणाइया य सलिलनिही। हेमवयं हरिवास उत्तरकुरु नह य देवकुरु । एगन्तरिया ते पुण दुगणा दुगुणा असंवजा १० रम्मय हरगवयं प्याभो भोगभूमीओ ।। ११२॥ --पउमरिय, ३०१०० -पउमचग्यि, २०१०२ नन्मध्ये मेमनाभित्तो योजनशतमहनविकम्मो भवनवामिनोऽसुग्नागविद्युत्सुपर्णाग्निवातम्ननिनोदधि जम्बूद्वीपः ॥६॥ -तत्वा०, अ०३ द्वीपदिक्कुमाराः॥ -तत्वा०, अ०४ मू०१० तम्स वि हवइ मज्झ नाहगिरी मन्दरो सयमहाग। अमग नागसवण्णा दीवममुहा दिसाकुमारा य । सव्वपमाणेणचो वित्थिगणो नममहम्पाई ॥१०३॥ वायग्विजारण्या भवरणनिवाम ढमवियापा ।३। -पउमचरिय, उ०१०२ -पउमचारिय, उ०७५ भग्नहैमवतहििवदेहरम्यकहरण्यवतरवितवपः व्यन्तराः किन्नरक्म्पुिरुपमहोग्गगन्धर्वयक्षराक्षमभूतक्षेत्राणि ।। --तत्वार्थसूत्र, अ.३ पिशाचाः। --तत्वा०, अ०४ मू०१०
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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