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________________ पउमचरियका अन्तःपरीक्षण (लेखक-पं०५रमानन्द जैन शास्त्रा) 'पउमचरिय' प्राकृत भाषाका एक चरितग्रन्थ है, जिम रचना-काल में रामचन्द्रकी कथाका अच्छा चित्रण किया गया है । इस विद्वानी में हम ग्रन्थके रचनाकालके सम्बन्धमे भारी अन्धके कर्ता विमलमूरि हैं। ग्रन्थकाने प्रस्तुत ग्रन्थ में मत-भेद पाया जाता है। डा. विण्टरनीज़ बादि कुछ अपना कोई विशेष परिचय न देकर सिर्फ यही मृचिन किया कया विद्वान् तो ग्रन्थमे निदिष्ट समयको ठीक मानते हैं। किन्तु है कि-'स्व-समय और पर-ममयके सद्रावको ग्रहण करने पाश्चात्य विद्वान् डा. हर्मन जैकोबी वगैरह इसकी रचनाकरने वाले 'राह' प्राचार्यके शिष्य विजय थे उन विजयके औली भाषा-साहित्यादि परमे इसका रचनाकाल हेसा शिष्य नाइल-कुल-नन्दिकर भुझ “विमल' द्वारा यह ग्रन्थ की तीसरी चौथी शताब्दी मानते हैं। कुछ विद्वान् डा. रचा गया है* ।' यद्यपि रामकी कथाके सम्बन्धी विभिन्न कीय प्रादि इममें 'दीनार' और ज्योतिष-शान-सम्बन्धी जैन कवियों द्वारा अनेक कथा-ग्रन्थ रचे गए हैं परन्तु उन कल ग्रीक भाषाके शोक पाये जाने के कारण इसे इसाय में जो उपलब्ध हैं वे सब पउमचरियकी रचनासे अर्वाचीन ३० वर्ष या उसके भी बादका बतलाते हैं। और छन्दकहे जाते हैं। क्योंकि इस ग्रन्थम ग्रन्थका रचनाकाल वीर- शासके विशेषज्ञ श्रीदीवान बहादुर केशवलाल ध्रुव उक्त निर्वाणये १३० वर्ष बाद अर्थात विक्रम संवत् ६० सूचिन रचनाकाल पर भारी सम्देह व्यक्त करते हुए इसे बहुत बाद किया है । अन्धकारने इस प्रन्थमे उमी रामब.थागे प्राकृत- की रचना बतलाते हैं। आपने अपने लेखमे प्रकट किया है भापामे सूत्री-सहिन गाथाबद्ध किया बलाया है जिसे प्राचीन- कि-इस अन्धके प्रत्येक उमके अन्त में गाहिणी, शरभ कालमें भगवान महावीरने कहा था, जो बादको उनके प्रमुख आदि छन्दोका, गीनिमे यमक और सर्गान्तमें 'विमल' घर इन्वशान द्वारा धमाशयम शिष्याक प्रात कहा गह शब्दका प्रयोग भी इसकी प्राचीनताका ही द्योतक है।' और जो माधुपरम्पगमे मक्ल लोकमे उस समय तक इनके मिवाय, और भी कितने ही विद्वान् इसके रचनाकाल स्थित रही। पर मंदिग्ध है-प्रन्धमे निर्दिष्ट समयको ठीक मानने में - हिचकिचाते हैं. और इस तरह इसका रचनाकाल अब तक * गह नागारियो ".ममयार-ममयहियमभाव।। विजयो य तम्स मीमी नाइल-कुल-बम-नन्दियगे ॥११॥ सन्देहकी कोटिमें ही पडा हुया है। ऐसी स्थितिम ग्रन्थो. मीमेण तस्म रइयं सहचारय नु मृर्मिनमलेगा। लिखित समयको महमा स्वीकार नही किया जा सकता। ___ग्रन्थके समय-सम्बन्धमे विद्वानोंके उपबन्ध मताका - उमरिय, उम १०३ परिशीलन करते हुए, मैंने ग्रन्थके अन्तःसाहित्यका जो परीक्षण किया है उस परमे मैं इस नतीजेको पहुंचा हूँ कि चव य वासमया दुममाए नीमवरिम संजना । ग्रन्थका उक्त रचनाकाल ठीक नहीं है--वह जरूर किसी बीरे मिद्धिमवगए तो निबद्धं इमं चरियं ॥१०३ भूलका अथवा लेम्बक-उपलेखककी गल्तीका परिणाम है, एवं बीजिणेण गमग्यि मि महत्थं पग, - - - - - - - - पच्छा बइल भूहगा उ काहा सामाग धम्मामय। देग्यो, 'इन्माइक्लोपीडिया श्राफ रिलीजन एण्ड एथिक्स' भूयो साहुपरंपराए मयलं लोए ठियं पायड, भाग पृ० ४३७ और 'माइन रिव्यू' दिसम्बर सन् १९१४ । एनाहे विमलेश मुन-महियं गाहानिवढं कयं ।। १०२ देग्यो, कीथका मंस्कृत-माहिल्या इतिहास, पृष्ठ ३४, ५६ --उमचरिय, उ० १०३ इन्ट्रोडक्शन टु प्राकृत ।
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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