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________________ ३३६ अनेकान्त [ वर्ष ५ मित्रों को भी अनेकान्तका रहस्य समझाया।" पृष्ठ पर म्यादात अनेकान्त नीतिका द्योतक सप्रभंगी ६-०सुमेरचन्द दिवाकर,न्यायतीर्थमिवनी- नयका रंगीन चित्र बहुत ही मनोहर एवं सुन्दर है। "मुखपृष्ठ पर स्याद्वाद के तत्वको बसान वाला चित्र इसमें एकनाकपन्ती' और 'विधेयं वाय चानुभयं बढ़िया है। चित्र अनेकान्तके स्वरूप पर अच्छा इत्यादि श्लोकदयके अभिप्रायको मूर्त स्वरूप बना कर प्रकाश डालता है।" आपने अपनी उच्चकोटिकी कल्पनाशक्तिका समाज के ७–६० के० भुजवली शास्त्री, आरा-"मुख- मामने परिचय कगया। यह कार्य अत्यन्त प्रशंसा पृष्ठका चित्र स्याद्वाद (अनेकान्त) सिद्धान्तका पूर्ण करने योग्य है।" परिचायक है।" १३-वा०जयभगवान वकील.पानीपत-"मुग्व८-बा० कृष्णलाल जैन, जोधपुर-"टाइटिल मण्डल पर जिस मतभंगकी अविधा रही है वह पेज पर जो चित्र दिया है वह वाकई बहुन सुन्दर केवल जैनी नीतिका ही नहीं बल्लि इम पत्र-नीतिक और मौलिक और मैद्धान्तिक है।" भी पूरा पूरा पता दे रही है। इस प्रकार चिचित्रम -पं० दौलतराम मित्र', इन्दौर-"मुखपृष्ठएर द्वारा नीतिको दर्शाना आपकी ही अनुपम प्रतभ'कः जैनी नीतिका जो चित्र अंकित किया गया है वह अपने कौशल है।" विषयको स्पष्ट करने वाला तो था ही, फिर भी समन्तभद्रविचारमालाके 'स्व-पर-बैरी कौन ?' नामक मणिका १४-ना० माईदयाल जैन वी००, सनावद ने ऊपरसे और भी प्रकाश डालकर उसे मनोहर बना (हाल देहली)-मुखपुरका चित्र भाव तथा अर्थ डाला है। इस प्रकाशमे जैनी नीति क्या है यह बात है। इम के लिये चित्रकार की नधा उस को भार हर एक समझदारकी समझ अच्छी तरह समझ देने वालों की जितनी प्रशंसा की जाय कम है।" सकेगी, संतुष्ट हो जायगी और पंडित जनाके प्रति १५-न्यायाचार्य पं० दरवारीलाल कोठिा उसे यह शिकायत न रहेगी कि-" मथुरा (हाल सम्मावा)-"पंडितजीकी ही यह विचित्र १०-वा० रतनलाल वकील, विजनौर- नी मुझ है कि अनेकान्तक मुग्यपृष्ठ पर जैनी नीतिका नीति वाला लेख तथा उसकी तसवीर मुझे वहन ही गोपिकाके समन्वयका सुन्दर चित्र खीचा है।" पसन्द आई-उस उदाहरणसे अनेकान्तको बड़ी १६--सम्पादक जनमित्र, सुरत-"मुख पृष्ठ पर सरलतामे समझाया है। मैं चाहता है कि यदि जैन जैनी नीतिका द्योतक समगीका रंगीन चित्र बहन नीतिका दधिमन्थन वाला चित्र बड़े आकारमं छप कर ही मनोहर है। इसमें एकनाकपेन्ती' शोकको मन मन्दिरों में लग जावे तो बड़ा लाभ समाजका होगा। स्वरूप देकर मख्तार सा० ने अपनी उच्च कल्पनाशक्ति, यह जैननीति सरलतासे समझमें आ सकेगी।" का परिचय दिया है।" ११-पं०कन्हैयालाल मिश्र'प्रभाकर'सहारनपुर- आशा है इस लेख परमे श्रावकजी तथा उन "मुख पृष्ठका चित्र जैनी नीतिका संपूणे प्रदर्शन है। दूसरोका भी समाधान होगा, जिन्हें चित्रके सम्बन्ध इस वैज्ञानिक निर्देशके लिये.... 'प्रशंसाके पात्र हैं।" में कुछ भ्रम हुआ हो। १२-पं० लोकनाश शास्त्री, मृडविद्री-"मुख- वीरसेवामन्दिर सरसावा, ता० ३०-१२-१६४२ NO.IN
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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