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________________ विषय-सूची समन्तभद्रभारतीके कुछ नमूने-संपादक पृ. ३२६.६ भगवान महावीत-श्रीविजयसाल जैन B.Com.३५३ २ अनेकान्तके मुखपृष्ठका चित्र-[संपादक अपराधी (कहानी)-[श्रीभगवत् जैन ३५६ ३ पडमचरियका अन्तःपरीक्षण-[.परमानन्द जैन ३३७ र पाशा-गीत (कविता)-[श्रीभगवत् जैन ३६१ ४ समर्थन-[40 परमानन्द जैन: शास्त्री ३१ पंडित-गुण-[संपादक .३६२ ५ सर्वार्थसिद्धिपर समन्तभद्रका प्राव-संपादक ३४५१० तत्वार्थस्त्रका मंगलाचरण-न्या.पं दरबारीलाल ३६५ अनेकान्तके लिये चिन्ता आजकल युद्धाद्विकी परिस्थिति के कारण कागजका अकाल सर्वत्र व्याप रहा है- सभी जगह कागजकी हाय-हाय मची हुई है। कागज मिलता ही नहीं, और जो मिलता भी तो बहुत भारी रेट पर अर्थात् युद्धसे पहले के कोई दस गुने मूल्य पर !! इसके फलस्वरूप कितने ही समाचारपत्र बन्द होगये हैं-बन्द हो रहे हैं, कितनों हीको अपना मूल्य चोढ़ा दुगना कर देनेपर भी पृष्ठ-संख्याको घटानेके लिये बाध्य होना पड़ा है और कितनों हीका सुन्दर पुष्ट कलेवरकंकालमात्र रह गया है। ऐसी हालत में अनेकान्त' के लिये चिन्ताका होना स्वाभाविक है। अनेकान्तके कागका स्टाक गतविरण के साथ ही समाप्त होगया था। इस किरण के लिये कागजकी कितनी ही खट-पट करनी पड़ी-२८ पीट तकका कागज भी लगाना पड़ा है। जैसे-तैसे इस किरणके कागजकी समस्या हल हुई है। अगली किश्या भी विसी तरह निकल ही जायगी और उसके साथ ही अनेकान्तका पाँचवा वर्ष भी समास हो जायगा। अब प्रश्न है भनेकान्तके आगामी वर्ष का-अगले वर्ष इसे चालू रक्सा जाय या कागजकी समस्या हल होने तक बन्द किया जाय ? बन्द करनेपर समाजको एक पलाम जरूर होगा और वह यह कि इसके निमित्तसे शोध-खोजका काम होकर महत्वके ठोस एवं गुत्थियोको सुलझाने वाले साहित्यका जो सजन होता है वह भी एक प्रकारसे बन्द हो जायगा, क्योंकि अपने समाज में दूसरा ऐसा कोई मासिक पत्र नहीं जो इस कामको पूरा कर सके । साप्ताहिकपन वोजके लम्बे लेखोंको एक साथ प्रकाशित करने में प्रायः अपनी असमर्थया व्यक्त करते हैं। यदि पत्रको चालू रखा जाय तो उसके लिये दो ही सूरतें हो सकती हैंएक तो यह कि पत्रका मूल्य ३) रुपयेके स्थानपर ६) रुपये कर दिया जाय और दूसरी यह कि मूल्यको बदस्तूर रखकर सहायकोंको जुटाया जाय, जिससे घाटा उठाकर भी यह पत्र पाठकोंको कम मूल्यमें दिया जासके। पहली सूरत (मूल्य बढ़ाने) से समस्याका हल नहीं हो सकेगा, क्योंकि उससे ग्राहक संख्या एक दम गिर जायगी, ऐसा समाजका अपना अनुभव बतलाता है। तब सहायकोंको जुटाने रूप दूसरी सूरत ही श्रेयस्कर होगी। अनेकान्तके अन्यतम सहायक ला. वलीपसिंहजी कागजी देहलीने अनेकान्तको विसी तरह भी बन्द न करनेका भाग्रह करते हुए लिखा है कि कागज सारीदने में जो अधिक चार्ज देना पदे उसकी पूर्ति २० पत्तियां करके करली जाय, जिनमेंसे पाँच पत्तियोंका भार वे स्वयं अपने उपर लेनेको तय्यार है। ऐसे ही दूसरे कुछ सजन भी इस कार्य में हाथ बटाचे तो सहज हीमें काम निकल सकता है। इधर एक बात यह भी सुझाई जा रही है कि 'भनेकान्त' को त्रैमासिक कर दिया जाय, उसका आकार भी, जैनसिद्धान्तभास्कर तथा वीरसेवामन्दिरसे प्रकाशित 'समाधितन्त्र' जैसा कर दिया जाय और उसमें गवेषणापूर्ण ताविक एवं ऐतिहासिक लेखोंकी ही विशेषता रहे। साथ ही, महत्वके अप्रकाशित ग्रन्थोंको अनुवादाविके साथ प्रकाशित किया जाय । घाटेको कुछ सहायतासे और कुछ पत्रमें प्रकट होने वाले प्रन्योंकी अलग विकीसे पूरा किया जाय । मस: अनेकान्तके प्रेमी पाठकोंसे निवेदन है कि वे इस विषयमें समस्याका ठीक हल करनेके लिये शीघ्र ही अपनी अपनी राय भेजकर अनुगृहीत करें। जुगलकिशो मुख्तार सम्पादक अनेकान्त'
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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