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किरण ६-७]
'चूनड़ी' ग्रंथ
मझ-लोइ सत्तरु-मय खेत्त।
अट्ठावीस वि मोहरिणय, सरिम तीस कुल-पव्ययहि,
आव चारि दुइ गोत्त म छंडहि। अज-मिलेच्छ-भोय-महि-जुत्त।। ५ ।।
णाम-पयडि तेणवइ पुणु, पुणु छ एणवइ कु-भोय-धरा-ल।।
अंतराय लइ पंच वि मंडहि ॥ ११ ॥ लवण-काल-रणाम मयगल।।
रणव पयत्थ मत्त त्रि लिहि तश्च । ऊसप्पिणि-अवसत्पिणिय,
छह दव्व पंचत्थिय सच्चई ।। छह-छह-काल लिहहि गिरुत्त ।
दुइ पमाण णव मुग्णहि णय, कोडा-कोडिउ सायरहि,
चारि वि रणामाइय णिववव। एक एक दम दस पवि-हत्त ॥ ६॥
मइ छत्तीमा निरिण सय, चउदह कुल-यर जिण चउ-वीस।
बारसंग संठवि मंग्वेव।।१२।। लिहि पुराण बारह चक्केस।
चउदह पुच्च पयिएणय' च उदह । वासु-राव बलराव गाव, व पडि-वामु एवं मंचारहि। अहि-गाणु जाणहि छह-भेयह ।। कामवणारय' सुरि, पुणु एयारह रुद्द पयारहि ॥७॥ लिहि संपुण्णु समोमरणु, दंसा-सुद्धि-पमुह अणुमरिय।
सत्त-पयारु संघु जिग्ग-समय। सोलह कारण लिहि जिणचरिय॥
मण-पजव दुहु-भेद ठिउ, तिहिं भयहि मम्मत्त लिहि,
निरिण सय तिमट्टि लिहि कुमयह ॥ १३॥ सत्त-भय-मिच्छ म मंभरि ।
लइ लेहरिण महु वुतउ२ किजइ। पंच णाण अण्णाण तय,
चूडिया-वट मंडिवि दिंजइ ।। दसण चारि पयत्तं" उद्धरि ।। ॥
मत्त सरीरइँ चारि मग, लिहि एयारह सावय-पडिम।
चारि वि वयग पणरह जोय।। बारह भिक्खु-पडिम मुणि गम्मइ ।।
पणरह लिहि पमाय पुणु, अट्ठावीस वि मूलगुण,
उउदह मल परिहारहि तेम ॥ १४॥ वारह-विह त उ दम-विहमंजमु ।
गुत्तिउ मल्ल दंड तिहि भयहि । महम-ट्ठारह मीलु भणि,
मोलह-विह कमाय मा वेयहि ।। पंचाचारु म वीसरि उत्तिमु ॥६॥
सुमरि अमंजम मत्तरह, गुण] लक्षु चउरासी टिप्पहि।
णोकमाय णव जोणिउ लिहि णव । चउदह जीव-समास-वियप्पइँ ॥
छह लेस दस धम्म धरि, च उदह लिहि गुणठाण पुणु,
चारिसरण भय मत्त ति-गारव ॥ १५ ॥ बीस परवण चउहह मग्गण ।
चारि भाग चउभयहि कलिय। छह पज्जत्ती पाण दह,
सम्मतहो गुण अट्ट जि कहिय॥ चारि वि गइ नह मिद्धि णिरंजण ॥१०॥
लिहहि दोस पणवीस तहिं, णाणावरण पंच दुइ वेयण ।
अट्ट वि अंग नस्स सरीरहो। रणवदंसण-आवरण महावरण (?)॥
विणउ विसेमहि पंच-विहु,
जं करेवि मुणि गयभवत्तीरहो।। १६ ।। १ कुलपर्वत-कुलाचल २ समुद्र ३ नवनारद ४ म-मा-मत ५घयत्नसे
१ प्रकीर्णक २ कहना ३ प्रमाद