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किरण ५
जीवन इसका नाम नहीं है
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अभय-दान जब योगीश्वरके श्रीमुखसे मैंने पाया ! देवो यह उँगलीम जैसा कोढ़ अभी भी है सुस्थित ! फिर क्या शंका? अटल-गिग जब,गिर-मीमाथ-साथ लाया!!
इसी तरहका सब शरीर था, गलित, घृणित या दुर्गन्धित !!
मुाननिन्दासे मलिन न हो जाए उनका पवित्र-जीवन ! ___ x x x x
साधु-सुभक्त वणिकने इस ही लिए किया मिथ्या-भाषण !! जैसे-तैसे रात बिता कर. राज-भवनकी ओर चले! मुझे नही तनकी चिन्ता थी, रहे रोग अथवा जाए? फिर नरेश के साथ तनिधिके दर्शन करने निकले!! थी इसकी चिन्ता कि धर्मका नाम कही न डूब जाए !!" सेठ देख कर दंग रह गए, मुनिवरकी निगेग-काया! बोले-नृा और बणिक साथ ही-कैसे प्रभुवर रोग गया? अचरज!-यह क्या इन्द्र जालने फैलादी अपनी माया ?? राज-रोगसे मुक्त हुए, किम तरह मिला यह स्वास्थ्य नया ??? सौन-सा अतिदीम, गंगसे शून्य, तपोबलसे जगमग! माधु-शिरामणि बाले-'प्रभुकी अटल-भक्तिको क्या मुश्किल? गुरुका देख शरीर, संठ २६ गए बड़े कुछ दूर अलग !! लेकिन इतना है कि चाहिए, अात्मशक्ति इसके काबिल !! मत्ताधीश क्रोधमे डूबे, सोच उठे अपने भीतर-! रत्न-राशिमय 'पुर' हो जाता, जिम पुरम प्रभुवर आते ! 'मुझमे भी जा झूठ बोलना, है वह कितना घानक नर? 'उर' म श्राए हुश्रा स्वर्ण-तन, यह सुन क्या विस्मय लाते ? मृत्यु-दण्ड दूंगा मैं उनको, हे बेशक संगीन-कुसूर ! चमत्तार यह देख उपस्थित-जन अानन्द-विभोर हुए ! साधु-अचशा कर, करडाली उसने मानवता चकचर !!' मुनिनिन्दक भी लजित दोकर, भक्ति-मार्ग की अोर हुए !! भागांकी भाषा पढ कर गुरु, कहने लगे दया-वचन !- साधु-भक्त वह मेठ और साधना-मुग्ध पृथ्वी-पालक ! क्रोध-कालिमाक द्वारा क्या करते अपना मेलामन? देखा-दोनो मनि-चरणों मे. झुका रहे अपने मस्तक !! कहने वाले ने पृथ्वीपति ! कुछ भी मिथ्या कहा नहीं ! जय-धोष से गगन-हृदयको जनता चारे देती थी! लेकिन यह जरूर है तनमे, रोग श्राज है रहा नहीं। भगवत्'-धर्मात्थान मुदित लम्ब, लोकोत्तम-सुख लेनी थी !!
* जीवन इसका नाम नहीं है ! *
[ श्री भगवत्' जैन ] चिथड़ो से शरीर को ढक कर,
खेल-कूद, खाने-पीने का, सह जाता मरदी की बाधा !
नहीं व्यवस्थित-श्रयमर पाया! कभी कभी भृग्वा सो रहता,
मदा प्रामुत्रोका जल लेकर, भग्ता उदर किसी दिन आधा !!
अपना अन्तर्दाइ बुझाया !! इतना होने पर, सोने का कोई एक मुकाम नहीं है !! जीते रहनेका भा शायद, दुनिया मे कुछ काम नहीं है! 'जीवन' इसका नाम नहीं है !!
'जीवन' इसका नाम नहीं है !! कड़ी-ठोकरोमे भी, मुर्दा
निर्धनताने कुचल दिए हैं, स्वाभिमान सोता रहता है!
दिलके सब अरमान हठीले ! मिर्फ गुनामीको लेकर दी,
सूख नहीं पाते यह श्रॉसूअत्याचाराको सहता है !!
रहते पलक हमेशा गीले !! दुग्व-दी-दुखमे डूबा रहता, पाता कुछ अाराम नही है! क्षीण-काय, जर्जर-शरीर पर, चिकना-चुपड़ा चाम नही है ! 'जीवन' इसका नाम नहीं है !!
'जीवन' इसका नाम नही है !! लिए दीनता को फिरता है, मानवता की याद भुलाए ! मृत्यु-गोदमे सो रहनेको, घड़ी - घड़ी मनमें ललचाए !! किन्तु मृत्यु वह पाए कैसे ? जबकि जेबमे दाम नही है !
'जीवन' इसका नाम नही है !!