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________________ अनेकान्त [वर्ष ५ निशाचरोंके निवास स्थान बनी हुई हैं। कुछ रचनाएँ ऐसी परिचायक हैं कि मध्यकालीन भारत में महापुरुष-मुनि. हैं, जिन्हें "प्राचीन स्मारक-रक्षा" कानून ( Ancient रचना जैनकलाकी देन है. वहां य इस बातकी भी परिचाMonuments Protection Act. ) के अनुसार यक हैं. कि जैनसंस्कृति भारतकी बहुत पुरानी संस्कृति है।' मकारने अपनी अध्यक्षतामें कर लिया है। कुछ ऐसी हैं, इन मूर्तियों और चित्रों के देवनेने. जहां भारतीय विविध जैनतीर्थ-रक्षा-कमेटियोंने अपनी अध्यक्षतामे लोगोंके रहन-सहन, मकान-उद्यान, व्यसन-व्यवसाय, वेषलियारे कछ स्थानीय जैनसमाजकी अध्यक्षतामें मौजूद भूषाका ज्ञान होता है. वहां इन्हें देखनसे यक्ष-गन्धर्व नागहै। इनमें से कितनी ही रचनाओंका जीर्णोद्वार और राक्षस, खचर-विद्याधर, सुर-असुर श्रादि भारतकी पुरानी व्यवस्थित होना शुरू हो गया है कितनी ही का पहिले से जातियोकी सभ्यताका भी बोध होता है। दो और कितनी ही का होना अत्यन्त वाञ्छनीय है। जैनकलाके पशपक्षिजैनकलाका अध्ययन करते समय उपर्युक्त सब ही इन सब चीजोसे भी अधिक महत्वशाली जैनकलाक प्रकारकी रचनापोका ध्यान रखना ज़रूरी है। वे पशुपक्षि श्रादि चिह्न हैं. जो विभिन्न अहन्नाके प्रतीक जैनकलाका ऐतिहासिक महत्त्व : होनेके कारण महाअादरणीय बने हुए हैं। यह चिह्न संख्या इस जैनकलाकी बहुत सी चीज उपलब्ध जनसाहित्य में चौबीम हैं- वृषभ. २ हाथी, ३ घोडा ४ बन्दर. मे भी पुरानी हैं। वे जैनसंस्कृतिके बहुतसे अज्ञात पहलुङ्गो ५ चकवा, ६ कमल, ७ स्वस्तिक, ८ चन्द्रमा. . मन्छ, पर असाधारण प्रकाश डालती हैं। वे जैनधर्म सम्बन्धी १० वृक्ष. १९ गेंडा, १२ भैसा, १३ बराह १४ मेहि साम्प्रदायिक मान्यताओंगी समालोचना करने में बडी (श्यन) १५ बज्र, ५६ हिरण, १७ बकरा, १८ मछली, सहायक हैं। १६ घट, २० कछवा. २१ उत्पल. २२ शंख, २३ सर्प, ___इन चैत्यों और स्तूपों पर, मन्दिरों और गुफाओंपर, २४ सिंह। मृतियों और चित्रोपर बहुतमे लेख लिखे हुए हैं, जिनमे ये क्रमश: : ऋषम, २ अजित, ३ संभव, ४ अभिअनेक राजवंशों, गुरू परम्पराओं और अन्य ऐतिहासिक नन्दन, ५ सुमति, ६ पद्म, ७ सुपार्श्व, ८ चन्द्रप्रभ, ६ पुष्पमातीकी खोज हो सकती है। दन्त. १० शीतल, ५९ श्रेयांस, १२ वामपूज्य. १३ बिमल, ये लेख जहां भिन्न भिन्न कालोंकी नागरी लिपि में लिम होनेसे नागरी लिपिके क्रमिक विकासके जानने में अद्वितीय 1. "The discovelles (al Mathura) साधन हैं, वहा ये भिन्न भिन्न भाषायोमे लिखे होनेमे, भारत have to a very large extent supplied की भाषाओं के पारस्परिक सम्बन्धको जानने में भी बड़े corroboration to the written Jain मूल्यवान हैं। tradition and they offer tangible । ये मूर्तियां जहां भिन्न भिन्न कालोंकी, भिन्न भिन्न ढंगोकी incontrovertible proof of the anबनी हुई होने के कारण मूर्तिकलाके वकामपर गहरा प्रकाश tiquity of the Jam religion and डालती हैं, वहां ये विभिन्न कालीन योगियोके प्रासन, of its early existence in its preमुद्रा. केश और प्रतिहार्योंपर भी काफी प्रकाश डालती हैं, sent form. The series of 24 Tirक्योंकि ये सब एक समान नहीं हैं। इनमें कितनी ही thankaras each with his disपद्मासन हैं. कितनी ही खगासन हैं, कितनी ही जटाधारी tinctive emblem was evidently है. कितनी ही उष्णीष वाली हैं और कितनी ही लोच किये firmly believed in at the begining हुए बालों वाली हैं। of the Christian era." ये महन्तोंकी मूर्तियां जहां बुद्ध और बोधिसत्व, राम -Vicent A. Smith Archeological और कृष्णकी मूर्तियोंये पहले मिलनेके कारण, इस बातकी Survey of India. Vol XX,1901 ,96
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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