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विषय-सूची
, समन्तद्र भारतीके कुछ नमूने
पृष्ठ १०५ १. वादिराजसूरि-[पं० नाथूराम प्रेमी' जैन २ श्वे. तत्वा. और उसके भाष्यकी जाँच-[संपा. १०७ ११ क्षरचूड़ामणि और उसकी सूक्तियों३ साहित्यपरिचय और समालोचन
पं० सुमेरचन्द जैन दिवाकर १४५ ४ भ. महावीरकी झांकी-[बा. जयभगवान वकील १११ १२ मध्यप्रदेश और बरारमे जैनपुरातत्य-[कांतिसागर १६. ५ परीक्षामुखसुत्र और उसका उद्गम
१३ दही-बड़ोंकी डांट [श्रीदौलतराम 'मित्र' १६२ [प० दरबारीलाल ११४ १४ सीतल सेवामन्दिर देहीलीके लिये अपील६ अनकी प्रतीज्ञा-[भगवन जैन ....
परिषद विज्ञप्ति १६४ • संकटका समय (कविता)-[श्री भगवत् जैन १३३ १५ एक माहित्यसेवीपर घोर संक्ट [जुगलकिशोर मुख्तार १६६ ८ सामायिक पाठ-साहित्याचार्य पं० पन्नालाल जैन १३४ १६ समाजके दोगण्य-मान्य सज्जनोंका वियोग १६७ है बासी-फूल (कविता)--[श्री भगवत् जैन १३८ १७ वह मनुष्य नहीं देवता था-[अजितकुमार जैनशास्त्री १६८
श्रीसाहू शान्तिप्रसादजीकी ओर से
लायब्रेरी और फर्नीचरके लिये वीरसेवामन्दिरको १५००) की नई सहायता
श्रीमान् साहू-शान्तिप्रसाद जी जैन डालमियानगर वीर सेवामन्दिर सरसावापर कितनी अनुग्रह दृष्टि रखते हैं और कहाँ तक उसके संरक्षक श्रोर सरपरस्त बने हुये हैं, यह बात अनेकान्तके पाठकोंसे छिपी नहीं है-बराबर उनले सामने आती रही है । हालमें श्रापके उदार विचारोंके फलस्वरूप बान जयभगवानजी वकील पानीपत की योजना वीरसेवामन्दिरमें होजाने से जब श्रापको यह सूचना मिली कि वीरसेवामन्दिरकी लायब्रेरीमें रिसर्चादि-विषयक अंग्रेजी श्रादिके कुछ श्रावश्यक ग्रन्थोंकी कमी है और फर्नीचर भी नाकाफ़ी है तो आपने तुरन्त ही उनकी पूनिके लिये पन्द्रह सौ १५००) रु. की नई सहायता वीरसेवामन्दिरको भेजदी। इस उदारतापूर्ण कृपाके लिये में श्रापका बहुत ही श्राभारी हूँ और इसके लिये श्रापको जितना भी धन्यवाद दिया जाय वह थोड़ा है। संस्थाके प्रति श्रापके ऐसे उदार व्यवहारसे यह दृढ श्राशा होती जाती है कि यह संस्था जरूर ही अपने ध्येयमें सफल होगी । हार्दिक भावना है कि साहुजीका बरद हाथ सदा ही इस संस्थाके सिरपर बना रहे और वे इसे अपनी संरक्षतामें बगबर ही उन्नति शील देखकर प्रसन्नता-लाभ करें।
जुगलकिशोर मुख्तार