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________________ Registered No A 731. वीरसेवामन्दिरको दो योग्य विद्वानोंकी सम्प्राप्ति पाठकोंको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि श्री बाबू जयभगवानजी जैन बी. ए., एलएल. बी. वकील पानीपतने, जिनकी लेखनीमे अनेकान्तके पाठक परिचित हैं और जो बड़े ही अध्ययनशील तथा सुलझ हुए विद्वान हैं, हालमें वीरसेवामन्दिर मरमावाको अपनी पूरी सेवाएँ अर्पण की हैं। आप अपनी अच्छी चलती वकालत छोड़कर गत १२ मार्चको वीरसेवामन्दिरमें तशरीफ ले श्राप हैं और तबसे बराबर सेवाकार्य कर रहे हैं। इसके लिये श्राप भारी धन्यवाद । के पात्र हैं। आपमें सेवाभाव तथा शोध-खोजकी बड़ी स्पिरिट है, वकालत करते समय उसके लिये आपको यथेष्ट अवकाश नहीं मिलता था और इसलिये सेवाफी बहुतमी भावना आपकी मनही मन में विलीन होजाती थीं, और समाज भी उनमे वचन रह जाता था । अब वीरमेवामन्दिरके द्वारा समाजको आपकी पूरी मेवा प्राप्त होंगी-जो शक्ति पहले वकालत जैमी झंझटोंमें खर्च होती थी वह अब माहित्य और इतिहास में समाज-मंबाक टीम कामि व्यय होगी, यह जानकर किम प्रमत्रता नहीं होगी। इधर न्यायाचार्य पं० दरवारीलालजी कोठियाने भी जो भाग्नकी प्रसिद्ध विद्या संस्था कीन्सकालिज बनारससे छहों खण्डोम उत्तीर्ण न्यायाचार्य है, और साथ ही सिद्धान्न विषयक भी अच्छ विद्वान हैं, वीरसेवामन्दिरको अपनाया है पर उसे अपनी मंवा अर्पण की हैं। जिनके लिये आप धन्यवादके पात्र है। आपकी इच्छा बहुत दिनोंमे साहित्य पार इतिहासक क्षेत्र में काम करके प्रगति प्राप्त करने की थी, जिसके लिये अापने वीरसंवामन्दिरको चुना है। आप ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम (जैनगुरुकुल) मथुगको स्तीफा देकर फल प्रातःकाल २४ अप्रेलको उम समय वीरसेवामन्दिर में पधार है जब कि मै 'वीरमेवामन्दिर ट्रस्ट' की योजनाका लिय हुए अपना 'वसीयत नामः' रजिष्ट्री कराने के लिये सहारनपुर जारहा था, पर इससे मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। - आशा है इन दोनों ही योग्य विद्वानों के सहयोगसे वीरसेवामन्दिर के कार्योंको प्रगति प्राप्त होगी, और 'जैनलक्षणावली' का हिन्दी तथा अंग्रेजी मार शीघ्र ही तय्यार होकर पहला खण्ड प्रेसमें जाने के लिये प्रस्तुत हो जायगा। माथमें और भी दुसरं कार्य शीघ्र मन्पन्न होकर जल्दी जल्दी बाहर भागे। कई विद्वानोकी और भी योजना हो रही है । वोरसेवामन्दिरक सामने बहुतसे महत्व के कार्य करनेको पड़े हुए हैं, और कई योग्य विद्वानोंकी आवश्यकता है। जुगलकिशोर मुख्तार अधिष्ठाना-धीरमेवामन्दिर, सरमावा - मुद्रक, प्रकाशक पं. परमानन्दशास्त्री वीरसेवामन्दिर सरसावालिये श्यामसुन्दरलालद्वारा श्रीवास्तव प्रेम, महारनपुरम मद्रित ।
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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