________________
अनेकान्त
[वर्ष५
मूर्तिकलामें इसने अर्हन्तीकी अगणित कायोग्पर्ग और मृतियोंके शिरापर सर्पफण लगे हैं। पद्मासन ध्यानमग्न दिगम्बर मृतियोंको पैदा किया है, ये चित्रकलाम इसने भारतकी दोनो शैलियोंको अपनाया मृतियो मामूली पत्थरोमे लेकर मृगा, पन्ना, हीरा, पुग्वराज, है-नदाकार वा स्पष्ट शैली (Direct Representaनीलम आदि बहुमूल्य पाषाणों की बनी हुई हैं। ये मामूली thon), अतदाकार वा सांकेतिक शैली (Symbolic ताबा, पीतलसे लेकर चांदी, सोना जैसी कीमती धातुओंकी Representation). बनी हुई हैं। ये आकारमं छोटी छोटी हैं और बडी बडी स्पष्ट शैलीके द्वारा जैनकलाने अर्हन्तोंके पञ्चकल्याणकहैं। इनमें कितनी ही ३० फुट ६० फुट, ६० फुट तक ऊंची उत्सवो उनकी परिषदोंका दिग्दर्शन कराकर बतलाया है ग्वडी विशालकाय प्रतिमाएँ हैं, ये कही चट्टानोंको काटकर कि इन महापुरुषोके जीवनमे गर्भकालसे लेकर निर्वाणकाल ग्वालियर, एनर, कारकल, श्रवणबेलगोल, बडवानी श्रादि तक कैसी कैसी अद्भुत घटनाय लोकमे पैदा होती हैं । इन स्थानों में बनाई गई हैं।
की शान्ति और सौम्यताके कारण कैसे कैसे जातिविरोधी इनमे कितनी ही चतुर्मुख प्रतिमाये हैं, कितनी ही जीव अपने वैर-विरोधको छोड़कर श्रापममें कल्लोल करने सर्वतोभद्र प्रतिमायें हैं। ये शिलावण्डो व स्तम्भोके चागे लगते हैं।
और जन्कीर्ण होने से सबही पोरके दर्शकोंको शान्ति देती इस शैलीक द्वारा जैनकलाने मठ शलाका महापुरुषों हैं। कितनी ही चतुर्विशति-संख्यक शिला प्रतिमाय है। इनमें की जीवनी, उनके पूर्वभव पीगणक पाख्यान, ऐतिहासिक बीचके भागमे मृलनायककी प्रतिमा कुछ बटी बनी हुई होनी वृत्तांका चित्र चित्रण कर दिग्बलाया है कि स्वकृत कर्मोके है श्रीर उसके चारों ओर बाकी २३ नीर्थकरोंकी मूर्तियां कुछ प्रभावसे जीवको कैसे से उतार-चटाव मेमे गजरकर स्मार छोटी छोटी सी बनी हुई होती हैं।
में भ्रमण करना पड़ता है। इनमे कितनी ही छत्र, चमर, सिहासन, भामण्डल,
इस शैलीके द्वारा इसने स्वर्गों के सुग्ब और नरकाकी वृत्त श्रादि अट प्रानिहार्य-संयुक्त प्रतिमाएँ हैं । इनमें
वेदनाओंके दृश्य ग्बीचकर दिग्बनाया है कि पुण्य और पाप मूर्तियोंके शिरोपर छत्र घूम रहे हैं, गर्दनके पीछे भामराडल
के प्रभाव जीवको कम कैस मीटे और कटुवे फल भोगने लगे हैं बराबरमें चामरधारी खड़े हैं. दाय-बाये वृक्ष बने पडत हए हैं और उपरकी तरफ गन्धर्व अपनी अप्पराओके साथ
जहां इस स्पष्टशैल मे जैनकलाने इतना काम लिया है फुलोकी मालाय लिए हुए हैं. दन्दभि बजा रहे हैं. पाप-वधि वहां साकतिक शैलीम ग्रोर भी अधिक काम लिया है। कर रहे हैं। कितनी ही मूर्तियों में सुण्डोंमें धारण किये हर इस दूसरी शैलीये इसने पशु-पक्षी अादिकं चिद बनाकर कलशोंमे अभिषेक करते हुए हाथी दिखलाए गए हैं।
मंगलकारी अर्हन्त-मृत्तियोको जगह-जगहपर स्थापित इन मूर्तियों के सिंहासनोंपर कुछमै धर्मचक्र बने हुए
किया है। विविध वृक्षाकी तसवीर बनाकर श्रहन्तांक है, कुछमें हिरण ग्बड़े हुए हैं, कुछ में बैल, मृग, हाथी,
वृबोधिक्षकी और उनके तपस्वी जीवनकी याद दिलाई घोडा, सर्प, सिह ग्रादि चिह्न अंकित हैं। कुछमें कुबेर,
है। स्वस्तिक, त्रिशूल और चक्रकी नस्वीरे बनाकर उनके नमेश, हारिती तथा नवग्रहों श्राकार बने हैं। करमे इन सिद्धान्तोकी शिक्षा दी है । श्रष्ट मंगलद्रव्याकं चित्र खीचमृतियोको बनवाने वाले नर-नारी तथा कटम्बी जनोंकी कर उनकी सभ्यतापरक बताकी सूचना दी है। संसारमृतियां भी बनी हैं। कछम उपर्युक्त चीजोके अतिरिक्त वृक्ष और पर लेश्या वृक्षकं चित्र खीचकर उनके द्वाग शिलालेग्व भी लिखे हुए है।
संसारका नथा मनोवृत्तियोका स्वरूप दर्शाया है। ___ इनमें कितनी ही मूतिया ऐसी हैं, जिनके दाय-बाये यह समस्त जैनकला अर्हन्तोंके अादर्शकी समर्थक है। शासनदेवी-देवता कहलाने वाले यक्ष-यक्षणियांकी मूनियां यह सब श्रमण-संस्कृतिकी स्मारक है । यह सब धर्मबनी हैं, कितनी ही ऐसी हैं, जिनके दाय बाय सर्पफण प्रचारके उद्देश्यसे रची गई है। इससे कल्पनाकी अपेक्षा धारण किये हुए नाग लोग वन्दना कर रहे हैं, कितनी ही वास्तविकता (Realism) को अधिक स्थान मिला है।