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________________ अनेकान्त [वर्ष ४ कितने ही निजको भूल यहाँ अति परासक्त हो जाते हैं। एकान्तवादकी. रजनीमेनर निजपरको है भूल रहा । निज लक्ष्य-बिन्दुसे हो सुदूर, परको ही अपना मान रहा। xxx उल्लिखित विरोधी भावोंमेंएकान्त-निशाके अञ्चलमें दिनकर हा आता अनेकान्त, आलोक लिय अन्तस्तलमें है अनेकान्त मजुल प्रभात सुख-शान्तिगेह, समता-निकंत सब वैर-तापको कर विदूर ' बन जाता सबका सौख्य-हेत । , सन् नित्य, अनित्य, अनेक, एक अज्ञान-ज्ञान-सुख-दुःखरूप शुचि,अशुचि,अशुभ,शुभ,शत्रु,मित्र नय-वश हाजाता सकलरूप । यह अनेकान्तका मूल मन्त्र बनकर उदार जपना सीखो, हैं सकल वस्तु निज-निज स्वरूप समभावोस रहना सीखो । विवाहका उद्देश्य (लेखक-श्री एम० के० ओसवाल ) संध्याका समय है। सूर्य भगवान अपनी अन्तिम सुंदर बालकको सुरक्षित रखेगी, जिसका कि विवाह किरणोंके सुनहरे प्रकाशसे नगका देदीप्यमान कर एक अठारह बरसकी कुमारीकं साथ हारहा है। रहे हैं। लेकिन यह प्रकाश अब थोड़ी ही देर के लिये ___क्या हम इस बालकको जाकर समझा कि वह है। सामने एक आलीशान मकामके चबूतरेपर एक यह सब क्या कर रहा है ? लेकिन नहीं, वह अपने बारह बरसका बालक बड़ी ही सज-धजके साथ पिताकी कठपुनली है। वह खुद भी तो इतना अज्ञान दूल्हेके रूपमें बैठा हुआ है । मकान गाँवके एक है कि इन बातोंको ममझना उसके बूतेकी बात नहीं। सुप्रसिद्ध नामदार सेठजीका है, जिनकी लड़कीका साधारण पांचवीं क्लासका लड़का क्या समझे कि शुभ लग्न आज इस छोटी उम्रके दूल्हेके साथ होने विवाह किस उद्देश्य को सामने रखकर किया जाता वाला है। है ? उसके पिताको घरमें बहू लेजानेसे मतलब है, सूर्यकी वही अंतिम किरणें इस कोमल बालकके ताकि वह जल्दी ही पितामहक पदको प्राप्त होवे, चहरेकी प्राकृतिक शांभाको और भी उचकाटिकी बना और परदादा बननेपर ता उस स्वर्गम ऊँचा स्थान रही हैं । उसका मुंह हृष्ट-पुष्ट है। शरीर भी खूब प्राप्त होगा और मरते समय उसके नामपर सोनकी सुडौल है। इतनेपर भी उसके शरीरपर लगे हुए जवाहिरात और जरीके कपड़े तो उसमें इन्टकी-सी सीढ़ी दान देने का हक मिलेगा। शोभा लारहे हैं। पर हमें डर है कि प्रकृति ऐसे
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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