________________
७४
अनेकान्त
[वर्ष ४
चित्रमें एक सुन्दर युवती हाथमें फूलों का गुच्छा हानेपर भी मुर्दा । किसी प्राकृतिक वस्तु के स्पर्श, गंध, लिए पुष्पांद्यानके बीचोंबीच बैठी पार्श्व में एक घूम वर्णसे दूर । उनकी स्मृति भी मिटसी चली थी। अपनी कर बहता हुआ स्रोत, किनारे पर हरो २ दूब, और तृषित आत्मासे सींचकर उसने यह युवती वृक्ष और एक अजीब-सी चिड़िया, और युवतीके ऊपर एक पक्षी निकाले थे। मानुषिक कलाकी यह उच्चतम बहुत बड़ा सघन वृक्ष, पत्तोंमें बड़े बड़े फल लिए महाकाष्ठा है और ह्रदयकी कभी न मिटने वाली हुए। सारा चित्र, मुझे ऐसा ज्ञात हुआ, क्या बताऊं? भावनाओंका सहा दिग्दर्शन । जैसे एक प्रकारके कुतूहलसे परिपूर्ण हो। मेरे साथीन पूछा-जेल प्रानेसे पहले चित्र ।
उस समय मैंने मूक परीषह की पवित्रताका बनाना जानता था ?
अनुभव । किया क्रॉमपर चढ़ाए इस जीवित क्राइस्टके __'ना-ना', उसने हाथ हिलाकर कहा, 'जेलर साहब
सम्मुख मेग माथा आपसे आप झुक गया। उसने जानते हैं। यह किसीका चित्र नहीं। 'केवल कल्पना है।'
चाहे जो अपराध किया हो उसकी मुझे पर्वा नहीं।
परन्तु मैं कह सकता हूं कि हमारे समाजने उस निरीह यह कहकर वह किस प्रकार मुम्कगया उससे हृदयहीन पिशाच भी रो पड़ता । उस चित्रमें उसन, संदर
भटके हुए प्राणीके साथ अक्षमनीय अपराध किया है।
जब कभी मैं किसी पक्षीको पिंजरेम बन्द देखता युवती, हरा-भरा फूलोंसे लदा पेड़, पौदे, स्वतंत्र पक्षी
हूं तो मेरी आंखों के सामने उस अकथनीय व्यथाका गरज अपने हृदयकी समस्त सुन्दर भावनाएँ निकाल
दृश्य खिंच जाता है ना मैंने उस बन्दीकी आँखोंमें कर रखदी थीं। अट्ठारह सालसं वह उसे बना रहा था।
देखी थी।" बनाकर बिगाड़ देता और फिर बनाता । कईसौ बार । बिगाड़ कर उसने यह चित्र बनाया था।
मेरे मित्रने बोलना बन्द कर दिया और थोड़ी हां, सत्ताईस वर्षसे वह वहाँ बंदी था। जीवित देर बाद हमसे बिदा माँगकर चला गया ।
भामाशाह
देशभक्त ! तेरा अनुपम था, वह स्वदेश अनुराग! प्रमुदित होकर किया देश-हित धन-वैभवका त्याग !!
जिस समृद्धिकेलिये विश्व यह रहता है उद्भ्रान्त ! निदेय हा भाई कर देता भाईका प्राणान्त !!
उसी प्राण-से प्रिय स्वकोषको दे स्वदेश रक्षार्थ !
एक नागरिकका चरित्रमय-चित्र किया चरितार्थ !! दानवीर ! तेरे प्रतापसे ले प्रतापने जोश ! फतह किए बहु दुर्ग, भुलाया शत्रु-वर्गका होश !!
जैन-वीर ! तू था विभूति पह, उपमा दुर्लभ अन्य ! भारत-माँ जन तुझे मानती है अपनेको धन्य !!
भामाशाह ! गा रहा तेरी कीर्ति-कथा इतिहास ! जीवित तुझे रखेगी, जब तक है धरती-आकाश !!
श्री भगवत्' जैन