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फिल्म १]
पिंजरेकी चिड़िया
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तो वह जघन्य है और विवाह जैसे पवित्र कार्य का तथा त्याग और बलिदानका क्रियात्मक पाठ पढ़ाना है और गौणरूपसं उद्देश्य कहिये अथवा उसका फल कहिये सन्तानोत्पत्ति अथवा सन्ततिक्रमको बराबर चलाये रखना है ।
उद्देश्य अथवा ध्येय कभी नहीं होसकता । इसलिए frosर्ष यही निकलता है कि विवाहका मुख्य उद्देश्य समाजमे आचरण सम्बन्धी मर्यादा स्थापित करना
पिंजरे की चिड़िया |
मूल लेखक - नोबेल पुरस्कार - विजेता, जॉन गॉल्सवर्दी ( इंगलैण्ड) ( अनुवादक - महावीरप्रसाद जैन, बी० ए०, सरधना )
“पहाड़ी मैना—यहाँ कहाँ ?” मेरे मित्रने आश्चर्य रहा था। युवक होनेपर भी वह वृद्ध जान पड़ता था । से पूछा । एक झुका हुआ.. काँपतासा... निरकंकाल, मैलीसी मैंने उंगलीस संकेत कर पिंजरा दिखा दिया। चादर में लिपटा हुआ । अपनी पहली स्वतन्त्र अवस्था लोहे की तीलियोंस चोंच लड़ा कर मैना एक बार का कितना दारुण भग्नाववेष था... वह बंदी !! फिर बोल उठी ।
यकायक मेरे मित्रके मुखपर वेदनाके चिन्ह स्पष्टतया दृष्टिगोचर होने लगे। ऐसा जान पड़ने लगा मानो उनका हृदय किसी दुःखपूर्ण स्मृतिसंशांकाकुल हो उठा है। थोड़ी देर बाद धीरे २ हाथ मलते हुए उन्होंने कहना प्रारम्भ किया
“कई वर्ष बीत जानेपर भी वह दृश्य मेरी स्मृति में ज्योंका त्यों ताजा बना हुआ है। मैं अपने एक मित्र के साथ बन्दीगृह देखने गया था । हमें उस भयानक स्थानके सब भाग दिखा चुकनेपर जेलरने अन्तमें कहा - श्राश्री, अब तुम्हे एक आजन्म कारावास पाय हुए बन्दीको दिखाऊँ ।
हमारे पैरोंकी आहट सुनकर उसने अपनी आँखें ऊपर को उठाई । आह ! मैं उस समय उसके भावको भली भाँति न समझ सका । परन्तु बादमें समझा । उसकी आँखें अपने आखिरी सॉस तक मै उनको न भूल सकूंगा । वह दारुण दुखकी प्रतिमूर्तियाँ ! और एकान्त वास के लम्बे युग जिन्हें वह काट चुका था, और जो उसे अभा बंदीगृह के बाहर वाले कब्रस्तान में दबाये जानेसे पहले, काटने शेष थे, अपनी समस्त वंदना लिए उन आँखोंस झाँक रहे थे । विश्व भर के सारे स्वतन्त्र मनुष्योकी सम्पूर्ण वेदना मिलकर भी उस निरीह पीड़ाके बराबर न होती उसकी पीड़ा मुझे असा हो उठी । मैं कांठीमें एक और लकड़ी के टुकड़ेको उठाकर देखने लगा | उसपर बन्दी ने एक चित्र बना रक्खा था ।
जब हम उसकी कोठरी में घुसे तो वह स्थिर दृष्टि चुपचाप अपने हाथमें कागज की ओर देख