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________________ REGISTERED NO. A-731. चौथा भाग तैयार होगया! श्रीमन्त मेठ शिनावराय लक्ष्मीचन्द जैन साहित्य उद्धारक फंड बारा पखंडागम (धवलसिद्धांत) । चौथा भाग “नेत्र-म्पर्शन-कालानुगम” भी छपकर तैयार होगया है। पूर्व पद्धति अनुसार यह भाग भी शुद्ध मूलपाठ, सुम्पष्ट हिन्दी अनुवाद तथा अनेक उपयोगी परिशिष्टोंके साथ छपाया गया है । एक एक गुणस्थान व मार्गणास्थानमें जीवोंक क्षेत्र, म्पर्शन और कालका A. विवेचन करना प्रस्तुत प्रथभागका विषय है। इस विषयपर लगभग ३४० शंकाएं उठाकर उनका समाधान किया गया है। प्राचीन गणितशाबका यहां भी अद्वितीय निरूपण है। जिसे बड़े २ गणितज्ञोंकी सहायतास अंकगणिन व क्षेत्रगणित ५२ उदाहरण देकर ममझाया गया है। विषयके मर्मका उद्घाटन करनेवाल ६०२ H विशेषार्थ लिखे गये हैं और ६२० में ऊपर टिप्पणियां लगाई गई है। क्षेत्र और स्पर्शन प्ररूपणाओंसे संबद्ध लोकके भाकार व प्रमाण सम्बन्धी विभिन्न मान्यताओंका जा अपूर्व विवेचन व जीवोंकी अवगाहना न तथा द्वीपमागर-संस्थानों का विवरण मूलमें पाया है उसका २१ चित्रीद्वारा स्पष्टीकरण किया गया है। प्रस्तावनामें सिद्धान्त अध्ययनका अधिकार, शंका-समाधान. विषय-परिचय व तत्मम्बन्धी मानचित्र आदिके द्वाग सक्त प्रापरणामोंके गहन विषयको खूब सुबोध बनाया गया है। प्रन्थका पुग महत्व नमके अवलोकन कग्नमे ही जाना जा मकेगा। पुस्तकाकार १०) मृल्य शास्त्राकार १२) of [१] प्रथम भाग पुस्तकाकार १०) शाम्राकार (अप्राप्य ) द्वितीय भाग पुस्तकाकार १०) शाम्राकार १२) तृतीय भाग पुस्तकाकार १०) शाम्राकार १३) [२] पेरागी मूल्य भेजनेमे डाक व रेल्वं व्यय नहीं लगेगा। इस संस्थाके हाथमें द्रव्य बहुन थोड़ा और कार्य बहुत हो विशाल प्रार्थना-३, प्रतएव समस्त श्रीमानों, विद्वानों और संस्थानोंको उचित मूल्यपरा प्रनियाँ बरीदकर कार्यको प्रगतिको सुलभ बनाना चाहिये । -. - मन्त्री . जैनसाहित्यउद्धारक फंड कार्यालय किंग एडवर कालेज, अमरावती (बगर) मुद्रक, प्रकाशक . परमाननशास्त्री बीरमेबामन्दिरममावाके लिय श्यामसुन्दरलाल श्रीवास्तवद्वारा श्रीवास्तव प्रेस सहारनपुरमें मु
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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