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________________ प्रात्म-बोध [ लेखक-श्री भगवत्' जैन] 'वे सब बातें कीजिए । जिन्हें आत्मोन्नतिक इच्छुक काममें लाया करते हैं । दिन-रात ईश्वराराधन, आत्म-चिन्तवन और कठिन व्रतोपवास करते रहिए । लेकिन तब तक वह 'सब-कुछ नहीं माना जा सकता, जब तक कि 'आत्म-बोध' प्राप्त न हो जाए ! हाँ, आत्म-बोध' ऐसी ही चीज़ है, उसे पाकर 'इकछा' मिट जाती है। क्योंकि वह सर्वोपरि है !! रहा कि अँगूठी कब तक उँगलीमें रहो, और कब, मनमें सन्तोष रहता है कि अमुक चीज हमने किस जगह उँगलीसे निकल कर खो गई ? अमुकको दे दी। लेकिन वैसी हालनमें दिलपर काबू चीजका खोजाना ही जहाँ दुःखका कारण है, कग्ना सख्त मुश्किल मालूम होता है, जब कोई चीज़ , वहाँ सूर्यमित्रको उससे भी कुछ ज्यादह वजूहात है ! अमावधानीस खा जाए ! इससे बहस नहीं चीज़ पहली बात तो यह, कि अँगूठी बेश-क्रोमती है ! घठिया रहे या क्रीमती ! 'ग्यो जाने की जहाँसे हद अलावः इसके बड़े रंज और घबराहटकी गुजायश शुरू होती है, वहींस मनकी शान्ति, प्रायः दूर भागने यों है कि अँगूठी अपनी नहीं, वरन् एककी-थोड़े ही लगती है ! समय के लिए रखने-भरको अमानत थी ! अमानत सूर्यमित्रको अगर घरमदुःख है, तो कुछ बे-जा ऐसेकी है जिसे डाट-डपट कर संतुष्ट नहीं किया जा नहीं ! हो सकता है-गतं न शोच्यं' के मानने वाले सकता, बहाना बनाकर पिण्ड नहीं छुड़ाया जा कोई धीमान उन्हें बज-मूर्ख कहनेपर उतारू हों। पर सकता।'' वह हैं राजगृहीके प्रतापशाली महाराज ! यह उतना ही अन्याय-पूर्ण रहेगा, जितना वासना- बात यों हुई ।-महाराज सूर्यमित्रको मानते. त्यागी, परम शान्त, दिगम्बर-माधुको दरिद्री कहना ! चीनते हैं, राजका उठना-बैठना, कराव-करीब बे 'घरका कोना-कोना खोज डाला गया ! नगर- तकुल्लुफ्री का-सा व्यवहार ! मगर सिर्फ महाराजकी बोथियां, राजपथ-जहाँ जहाँ उन्होंने गमन किया है- प्रोग्से ही! क्योंकि सूर्यमित्रको तो राज्य मम्मान मब, सतर्क-दृष्टि द्वारा देखे जाचुके हैं। लेकिन अँगूठी करना जैसे आवश्यक ही है! का कहीं पता नहीं ! कोई जगह ऐसी नहीं बाकी कुछ कारण विशेष होनेपर महाराजने अँगूगीको रही जहां उसे न हूँढा-कोरा गया हो ! बहुत याद उँगलीसे उनाग। सूर्यमित्र पास ही थे, दे दी जरा करने पर भी सूर्यमित्रको इसका जवाब नहीं मिल रखने के लिये । मिनिट, दो मिनिट तो सूर्यमित्र
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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