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श्रीवीर-वाणी-विलास जैनसिद्दान्तभवन मूडविद्रीके कुछ
हस्तलिखित ताडपत्रीय ग्रन्थोंकी सूची मृडबिद्री जिला माउथ कनाडामे हम्नलिग्यित अन्यों के किनने हो जैन भंडार हैं, सबम धड़ा भंडार महारकजीका है, जो मिद्धान्तबसदि' नाममं प्रख्यात है और जिमम धवल जयधवल भावि सिद्धान्तग्रंथ मौजूद हैं। इम भण्डार के अतिरिक्त जो दुमरं भंडार हैं उनमें 'श्रीवार-वाणी-विलाम जैनसिद्धान्त भवन' का नाम खास तौरम हवनीय है। यह मिद्धान्तभवन कर्णाटक दशक अमिन विद्वान पं० लोकनाथजी शाखी के मत्प्रयत्नका फल है। हाल में शास्त्रीजी ने अपने इस भवन के ताडपत्रों पर लिखे हुए प्रथोकी एक सूची तय्यार कराकर भेजी है, जिसके लिये मैं आपका बहुत ही प्राभाग है। प्राप्त सुनीम कुल ३०५ प्रेथ हैं, जिनमेंमें कोई ५० ग्रंथ नोएल हैं, जो पूर्वप्रकाशित दंडलीक भंडागेकी सूचियांम पाचुके हैं, और इलिये नन्हें यहाँ छाड़ दिया है; १०-१२ पंथ ऐम भा है जा प्रायः यथा परिचय माथम नरहनक कारणछाड़ दिये गये हैं। शेप २४५ प्रन्याकी यह सूची रक्त सूनीक आधार पर प्रकट की जानी है। प्राप्त सूचीमे ग्रंथों का रचना-काल नथा ग्रन्थतियों पर लिपि-संवत न हानसं वह यहां नहीं दगा जामका । शास्त्रीजीने लिया है कि इन ग्रंथप्रतियां पर लिपि-मंबन दिया हुश्रा नहीं है-मिर्फ कविवर पप कनड आदि पुगगन पर लिपि-संवत् दिया हया है और बह शानिवाहनशक १४८५ है। :म सूची में ५३ ग्रन्थ कनडी भाषाके हैं, जिनममे १० क माथ मूल मंस्कृत तथा प्राकृनके मूल प्रन्थ भी लगे हुए है, कनडी माहित्यकं निमोगम जैन विद्वानों ने बहुत बड़ा काम किया है। पनडी माहित्य प्राय: जैननियामही ममृद्ध है। -मम्मदक
नम्बर
प्रन्थ नाम
प्रन्थकार-नाम
भाषा
पत्र संख्या
१०३
१ अकलंकप्रतिष्ठापाठ अक्लकंदव
। संस्कृत अक्षरप्रश्नचिन्तामणि ३ अनन्तकुमागचम्ति कविवर शांनष्पवर्गी । कडमांगल्य पण । ४ अभिमन्युयक्षगायन
कन्नड पद्य ५ अमरकोष (विदग्ध चुडामणि टी.म.) म० अभरसिंह टी०४ । मंस्कृत ६ अर्द्धनामनाथपुगण पं० मिचन्द्र कवि कन्नड पण ७ अहस्तोत्र
मंस्कृत अलंकारसंग्रह
अमृतनंदि योगी अपांगकथा
कन्नर गद्य अहिमाचरित्रे पायरण कवि
कन्नड मांगत्य पद्य ११ अंजनादेवी चग्नेि वधमान मुनि
कन्नड पथ १२ आत्मानुशासन-कन्नडटीका मू. गुणभद्राचार्य टी.x/ संस्कृन, कमाड अात्मादयसार
संस्कृत प्रादिपुराण कविवर पंप
कारपद्य १५ आदिनाथयक्षगायन सदानन्द कवि १६ पागधनामारकमह टीका मू० देवसन टी.केशवराण प्राकृत, कन्नर पागधनामार गर्गवचन्द्र मुनि
संस्कृत ५८ उत्तरपुगण टिप्पण १९ सत्पातदोष शांतिकर्म
११४
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