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तदअशिष्मेण शिवाप्रसौख्यभागसिनेमीश्वरभक्तिभूरिया, भोपालयनन्नराजवसतो पर्याप्त शेषः पुरा स्वशक्तिमाना जिनसेनसूरिणाषियाल्पयोक्ना हरिवंशपद्धति:३३ पश्चादोस्तटिकाप्रजाप्रजनितप्राज्यार्चमावर्चने (8)
शान्तः शान्तिगृहे बिनस्य रचितो वंशो हरीलामया ॥५॥ शाकेष्वन्दशतेषु सप्तसु दिशं पंचोत्तरेषूतरां,
व्युत्सृष्टापरसंघसन्ततिवृहत्पन्नाटसंघान्वये पातीन्द्रायुधनाम्नि कृष्ण नृपजे श्रीवल्लभे दक्षिणां । प्राप्तः श्रीजिनसेनसूरिकविना लाभाय बोधे पनः। पूर्वा श्रीमदवन्तिभूमति नृपे वत्मादिराजेऽग्री, दृष्टोऽयं हरिवंशपुण्वचरितश्रीपर्वतः सर्वतो मौराणामधिमंडलं जययुते वीरे वगोऽयति || ५३ ॥ ब्यासाशामुखमण्डल: स्थिरतरः स्पेयात्पृथिव्यां चिरम् ॥५५॥ कल्याणैः परिवर्धमानविपुन:श्रीवर्धमाने पुरे,
-सर्ग ६६
'बनारसी-नाममाला' पर विद्वानोंकी सम्मतियाँ
'बनारसी-नाममाला' का जो नया प्रकाशन हुमा है उसपर किसने ही विद्वानों की समतियाँ प्राप्त हुई हैं, उनमेंसे कुछ नीचे दी जाती हैं :१ डाक्टर ए०एन० उपाध्याय, एम० ए० कोल्हापुर- ४ साहित्याचार्य पं० पन्नालाल जैन सागर___ मैं बनारसी नाममालाका सूक्ष्मत: अवलोकन कर गया
"बनारमी नाममाला, देखी। उसका प्रकाशन अत्यंत है। यह एक मनोहर कृति है, और प्राकृत तथा अपभ्रंश भाषाके विद्यार्थियोको कुछ महत्व के शब्द प्रदान करती है।
उपयोगी है। शब्द-सूची तथा टिप्पण देनेमे उमकी उपइस महत्वके प्रकाशन के लिये मैं आपका हार्दिक अभिनन्दन
योगिता और भी बढ़ गई है। छोटा माइल होनेसे उमे हर
एक व्यक्ति हर समय अपनी जेब में रख सकता है। हिन्दी करता है।'
तथा संस्कृत-दोनों भाषाके विद्यार्थियोकी अत्यन्त लाभदायक २५०कैलासचन्द्रशासी सम्पादक 'जैनसंदेश'बनारस-है। इस उपयोगी कोषके प्रकाशनके लिए सम्पादक और "यद्यपि संस्कृतमें इस प्रकारके कोषोंका काफी प्रचार है
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प्रकाशक दोनों ही धन्यवाद के पात्र हैं।" और अनेको कोष रचे भी गये हैं। लेकिन हिन्दी में इस प्रकारका पद्मबद्ध कोष इमके मिवाय और दसरा अभी तक । रालाल जैन, एम० ए०, अमरावतीहमारे देखने में नहीं आया। यह जैन कविकी हिंदी भाषाको "बहुत उपयोगी रचना मामने लाई गई । मम्पादनअनुपम देन है। हिन्दी भाषासाहित्यमें कविवरकी यह छोटी- प्रकाशन भी उत्तम हुआ है।" सीकृति अमर रहेगी। मादकजीने हसे प्रकाशित कर
६ सम्पादक "जैन मित्र" सूरतहिन्दी भाषा-भाषियोंका बहन उपकार किया है। हिन्दी साहित्य सम्मेलनकी परीक्षामि इसे स्थान देनेकी हम
"रचना सुन्दर व संग्रह करने योग्य है। विद्यार्थियोंके
बड़े कामकी है।" जोरदार सिफारिश करते है।" ३ श्रीभगवा जैन, 'भगवत्' ऐस्मानपुर
७ पं० काशीराम शर्मा 'प्रफुल्लित' सहारनपुरइसकी उपयोगितापर मुग्ध ई, और वीर-सेवा-मंदिर
अब तक ऐसा सुन्दर हिन्दी-कोष न देखनमें श्राया। की आवश्यक और कीमती साहित्य-सेवापर प्रनमा इससे
खोजपूर्ण यह कार्य प्रापका हिन्दी जगके मन भाया । अधिक लिखमा, शब्दोंका अपव्यय होगा। जनताको इसे उपयोगी, गुटका-सी छोटी पुस्तक है सुन्दर यह चीन । अपनाना चाहिए-कामकी चीन है।"
प्रौ' सुबोध 'शब्दानुक्रम' ने इसमें बाया नूनन बीज ॥