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________________ प्रिनेकान्त - । याकरमवामान्दर के विशिष्ट प्रेमी ह । अापने उसे अपनी ।। अन्य माता नाका यारमा ५० माामक काटमायम ५७००० की मायना : माम नक प्रदान की है। और अपने धर्म पन्नीको । नरम :...) का काम गयना · अनमन्धान व अन्यानमाण' कार लादा है. मित्र लिम्वरूप - नेनलक्षणावली' और गतन जगवाक्य-मचा क, मंग्रट्या ग्राधकाश काय या है।। उस बर पासवामान्दग्गे अनेकानेक प्रकाशनका ममाचार पाकर श्रार नमका मदायक कामका देखकर श्राप मा उभव सगर वन है ।। -0 -0 -0 -00 -0 -0 -0 ........ ... माह शान्निप्रसादजी जैन. टामियानगर । ला० ननसुग्वरायजी जैन, न्यू देहली ड्यालले दो वर्ष 'अनेकान क मचालक रहे हैं. अर उसे फिम्म चानू कगर्नका श्रेय अापका प्राम है। इम वर्ष ) का महायताका वचन देकर श्राप उमक । महायव बन है । वारसवामन्दिर के ग्राम प्रेमी है।। माह श्रेयांसप्रमादजी जैन, लाहार [यार नजीबाबादक मुमिद रईम व जमादार हैं, बीमिवामन्दिर' और 'अनेकान्न' में ग्वाम प्रेम सम्बत हैं। टम वर्ष ००)म० की महायताका वचन देकर यार भी अनकान्तके महायक बने हैं।
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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