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________________ किरण ११-१२] प्राचार्य जिनसेन और उनका हरिवंश ५६१ अन्य मंघांकी वीर नि० सं०६८३ के चादकी परम्परायें जान हरिवंशके अन्तिम सर्ग ५२ पद्य में लिखा है कि शक पड़ता है कि नष्ट हो चुकी है और अब शायद उनके प्राप्त संवत् ७०५ में, जब कि उत्तर दिशाकी इन्द्रायुध नामक करनेका कोई उगय भी नही है। राजा, दक्षिणकी कृष्णका पुत्र श्रीवल्लभ, पूर्व दिशाकी ग्रन्थकी रचना कहाँ पर हई? अचान्नभूर वत्मराज और पश्चिमके सौगेके अधिमाल या श्रा. जिनमेनने लिखा है कि उन्होंने हारवंशपाणी मौराष्ट्रकी वीर जयवगह रक्षा करता था, तब इस प्रन्यकी रचना वर्तमानपुर में की और इसी तरह श्रा. हरिषेणने रचना हुई। उमसे १४८ वर्ष बाद अाने कथाकोशको भी वर्द्धमानपुरमें यदि वर्द्धमानपुरको कर्नाटक में माना जाय, तो उसके ही बनाकर ममाप्त किया है। जिनसेनने वर्द्धमानपुरको पूर्व में अवान्त या मालवेकी, दक्षिणमें भीवल्लभ (गष्ट्रकूट) 'कल्याणे : परिवर्द्धमान-विपलश्री' और हरिपेगने 'कार्जस्वग की और इमी तरह दूमरे गज्योकी अवस्थिति ठीक नहीं पूर्ण ननाधिवाम' कहा है। 'कल्याण' और 'कार्नस्वर' ये बैट सकती। परन्तु जैमा कि श्रागे बतलाया गया है, दोनों शन्द मुवर्ण या सोनके वाचक भी हैं। स्वर्णके अर्थ काठियावाड़में माननेसे ठीक बैठ आती है। में कल्याण शन्द मंस्कृत कोशीमें तो मिलता है पर वाड. इतिहामजोंकी दृष्टिमें यद्यपि हरिवंशका पूर्वोक्त पद्य मयम विशेष व्यवहन नहीं है। हो, भावदेवकृत पार्श्वनाथ- बहुत ही महत्वका रहा है और उस ममयके प्रासपासका चरित श्रादि जैन मंस्कृत प्रन्योम हमका व्यवहार किया हानहाम लिखने वाले प्राय: सभी लेखकाने इसका उपयोग गया है। जिनमेनने भी उमी अर्थमं उपयोग किया है। किया है; परन्तु इस बानपर शायद किसीने भी विचार नहीं अर्थात् दोनों ही कथनानमार वर्द्धमानपरके निवासियांके किया कि श्रास्विर यह बर्द्धमानपुर कहा था जिसके चारो पाम मोनेकी विपुलता थी, वह बहुत धनमम्पन्न नगर तरफके राजाश्रोकी स्थिति इस पद्यमें बतलाई गई है और था और दोनों ही अन्य कर्ना पुनाट मंघके हैं, इमलिए इसी लिए इमके अर्थ में सभीने कुछ न कुछ गोलमाल दोनों ग्रन्योकी रचना एक ही स्थानमें हुई है, इममें मन्देह किया है। यह गोलमाल इस लिए भी होता रहा कि नहीं रहता। अभी तक इन्द्रायुध और वत्मराजके राजवंशोका मिलमिले चाके पुन्नाट और कर्नाटक पर्यायवाची हैं, इमलिए वार इतिहास तयार नही दिया है और उनका राज्य की हमने पहले अनुमान किया कि वर्तमानपुर कर्नाटक कहासकहा तक रहा, यह भी प्राय: अनिश्चित है। प्रान्त में ही कहा पर होगाः परन्तु अभी कुछ ही ममय पहले अब हमे देखना चाहिए कि चागं दिशाओमें उस जब मेरे मित्र डा० ए०एन० उपाध्येने हरिपेणक कथाकोश ममय जिन-जिन गजानोका उल्लेख किया है, वे कौन थे की चकि मिलसिले में सुझाया कि वर्द्धमानपुर काठयावाड़ और कहाँके थे। का प्रसिद्ध शहर बढ़वाण मालूम होता है, और उसके बाद र बढ़वाण मालूम होता ह, श्रार उमक बाद १इन्द्रायुध-स्व. चिन्तामणि विनायक वेद्यने जब हमने हरिवंशमें पतलाई हुई उम समयकी भौगोलिक बनलाया है कि इन्द्रायुध भएड कुलका था और उक्त स्थितिपर विचार किया, तब अच्छी तरह निश्चय हो गया वंशको वर्म वंश भी कहने थे। इसके पत्र चक्रायुधको कि बढ़वाण ही वर्तमानपुर है। पगस्त करके पनिहारबंश राजावत्मगजके पुत्र नागभट दूसरे ने जिमका कि राज्य-काल विन्मेंट स्मिथके अनुमार वि. 'हरिषेगका अाराधना कथाकोश' जिम समय रचा गया हे मं०१७-८८ की नका माम्राज्य उममे छीना था'। उम ममय विनायकाल नामका राजा था, और वह भी बदवागाके उत्तरम' मारवारका प्रदेश पहना। इसका काठियावाड़का ही था। २ देखो माणिकनन्द्र-जैन-ग्रन्य-मालाके ३३.३३ वै अन्य देवी, मी० बी. वैद्यका हिद भारतका उत्कर्ष' पृ.१७५ हरिवंशकी भूमिका और जैनहितैषी भाग १४ अंक -८२ म.म.श्रीमाजीक अनुमार नागभटका समय वि.मं. में हरिषेणका कथाकोश' शीर्षक लेख । ८७२ मे .
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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