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अनेकान्त
[वर्ष ४
पंच य मासा पंच य वासा छ शेव होंति वाससया। थवा 'विक्रमसंवत्मर' से नहीं है, और इसलिये 'शकसगकालेण सहिया थावयन्यो नदो गमी।" गजा' का अर्थ विक्रमगजा नहीं लिया जा सकता।
इसमें बतलाया है कि-'शककालकी संख्याक विक्रमगजा वीरनिर्वाणसे ४७० वर्ष बाद हुआ है; साथ यदि ३०५ वर्ष ५ महीने जोड़ दिये जावें तो जैसा कि दिगम्बर नन्दिमंघकी प्राकृत पट्टावलीके वीरजिनेन्द्र के निर्वाणकालकी संख्या आ जाती है।' निम्न वाक्यमे प्रकट हैइस गाथाको पूर्वाध, जो वीरनिर्वाणसे शककाल सत्तरचदुसदजुत्ता जिणकाला विक्कमो हवड जम्मा । (संवत्) की उत्पत्तिके ममयको सूचित करता है, इसमें भी विक्रमजन्मका अभिप्राय विक्रमकाल श्वेताम्बरोंकें तित्थागाली पहनय' नामक निम्न गाथा अथवा विक्रमसंवत्सरकी उत्पत्तिका है। श्वेताम्बरोंके का भी पूर्वार्ध है, जो वीरनिर्वाणसं ६०५ वष ५ 'विचारश्रेणि' ग्रन्थमं भी इमी श्राशयका वाक्य निम्न महीने बाद शकराजाका उत्पन्न होना बतलाती है- प्रकारसं पाया जाता हैपंच य मामा पंच य वासा छ व होति वामसया। विक्कमरज्जारंभा पुरो सिरिवीरनिव्वुई भणिया । परिणि व्वुअस्मऽरिहतो तो उपपाणो सगो गया६२३ सुन्न-मुणि-वेय-जुत्ता विक्कमकालाउ जिणकालो ॥
यहाँ शकराजाका जो उत्पन्न होना कहा है उमका जब वीरनिर्वाणकाल और विक्रमकाल के वर्षोंका अभिप्राय शककालके उत्पन्न होने अर्थात शकसंवतके अन्तर ४७० है तब निर्वाणकालम ३०५ वर्ष बाद होने प्रवृत्त (प्रारंभ) होनेका है, जिसका ममर्थन 'विचार- वालेशक 'गजा अथवा शककालको विक्रमगजा या श्रेणि' में श्वेताम्बराचार्य श्री मेहतंग-द्वारा उद्धृत विक्रमकाल कैमें कहा जा मकता है ? इमे सहृदय निम्न वाक्यस भी होता है -
पाठक स्वयं समझ मकते हैं । वैसे भी 'शक' शब्द श्रीवी निवनव: षडभिः पंचातरः शतः। आम तौरपर शालिवाहन गजा तथा उमक संवत्कं शाकसंवत्सरस्यैषा प्रवृत्तिर्भग्तेऽभवत् ॥
लिये व्यवहन होता है, इस बातको शास्त्रीजीन भी इम तरह महावीरके इस निर्वाण-समय-सम्बन्ध
स्वयं स्वीकार किया है, और वामन शिवगम ऐप्टे मे दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायोंकी एक
( V. S. APTE ) के प्रसिद्ध कोषमें भी इस वाक्यता पाई जाती है ! और इमलिय शास्त्रीजीका
Specially applied to Salivahan i दिगम्बर समाजके संशोधक विद्वानों तथा सभी पत्र
शब्दोंके द्वाग शालिवाहनगजा तथा उसके संवत सम्पादकोंपर यह आरोप लगाना कि उन्होंने इस
(era) का वाचक बतलाया है। विक्रम राजा 'शक' विषयमें मात्र श्वेताम्बर मम्प्रदायका ही अनमरण नही था, किन्तु 'शकारि='शकशत्र' था, यह बात किया है-उसीकी मान्यतानुमार वीरनिर्वाणसंवत्का -
__ भी उक्त कोषसे जानी जाती है । इसलिये जिन उल्लेख किया है-बिल्कुल ही निगधार तथा अविचारित है। *यह वाक्य 'विक्रमप्रबन्ध' में भी पाया जाता है । इसमें स्थूल
रूपसे-महीनोंकी संख्याको साधमें न लेते हए-वर्षोंकी ऊपर के उद्धृत वाक्योंमें 'शककाल' और 'शाक- संख्याका ही उल्लेख किया है; जैसाकि 'विचारश्रेणि' में
प्रयाग इस बातका भी स्पष्ट उक्त 'श्री वीरनिवृतेः ' वाक्यमें शककाल के वर्षोंका ही बतला रहा है कि उनका अभिप्राय विक्रमकाल' अ. उल्लेख है।