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________________ किरण] अपभ्रंश भाषाके दो ग्रंथ सविणय-पंचमय-णरेसरेहि पानंदि गणीन्द्र मुनिनाथकी भक्ति प्रवर्गों और गुरु महलवि दिक्व णिजियसरेहिं कवि हरिचंद्र के चरण मुझे शरण होउ । इस प्रकार जिणु माइउ णियमणु लाइ नेमिचंद रवि बंदिर कवि कलका, गरु आदिका, संघपति हीलिवम्मका णिय-सत्तिए गुरुयर-भत्तिए तव मिरिहरण दिउ साधारणमा परिचय मिलता है। हीलिवम्म, पद्यइय मिरि-बड़माणतिस्थयग्देव-चरिए पवर-गुण-यण नंदिमुनीद्र, कवि हरिचंद्र आदिकी समय स्थिति णियर-भरिए विबुह-मिरि-सुकड-सिरिहर-विरा माह अज्ञात है। मिरि-गिचंद-णामंकिए णंदिवडण-णग्दि वइगय- वढमाणकवुका नमूना वराणां णाम पढमो परिच्छेनी ॥ १ ॥ अथ श्रीवर्द्धमानकाव्य लिख्यते । वडमाण-कबुकी प्रति मंगलं भगवान वीगे मंगलं जिनशासनम यह पनि नवीन ३०-४० वर्ष की ही है, ५३४५ मंगलं कुंदकुदार्यो वंदे वाणी जिनाय काम् । १ । घत्ताइंच माइजके अनुमान ५०-५५ पत्रोमे उपलब्ध है । ग्रंथ 'संण, पट्टविन तेरण। परिमाण १४०० श्लोकके लगभग है । कहाँकी प्रतिक । तं पेच्छि गउ, हुर साणुगः॥ आधारपर इसकी नक़ल हुई, यह बान संठ सा० ण उ किय परिक्ख, गुरुयणहँ सिक्ख । अठिया णयण (?) ते गण पणा ॥ भागचंदजी सांनी अजमेरके यहॉमे दर्यापन की जा होवि रमिल्ल, हयग्इ-गहिल्ल । सकती है। श्री०चिरंजीलालजी सोनीक मौजन्यस गर बाहियालि मम कर-विसालि ।। नशियाक शास्त्र देखिनेको मिल । हवलीके शास्त्राका महमई चडिण्णु " अवलाकन करने के लिये कई प्रयत्न किये, पर ना हार घडक्कि फुरु हरि फडक्कि । मंधुणवि कंधु झाडवि कबंधु। निष्फल रहे । अस्तु, वड्डमाणकव्वुकी प्रति अशुद्ध चल्लि र पयंडु फरवि स तुडु ।। है। शुरूका पाठ छूटा हुआ है । मंगलपद्य संस्कृतमे ण उ रहइ ठाई संधिर विगई। है, उसके बाद ही उपश्रेणिक नरंशकं अश्वारोहण जहं मसु णग्म्म विसया उरम्म ।। और भिल्लसमागमक वर्णनके पद्य है । प्रथम मंधिक गर गिग्विाम्म लयतरुघणम्मि । अंत कडवकर्म नंदीको दहला लई चित्त गउ जिहं गावरान घर पडिउ दिह, गुणगणगरिह अभयघोषणाका और कुमार अभयके जन्मका पंल्ली व (च) रेण धणुमवरेण ।। वर्णन है। मुपयंड पण (गण), जमदंड [व] गण । __ आगे उद्धत अन्ती ११वीं मंधिक अंत्यभागमे यह निगि म घरिणी उ जहिं ठिय विणीय ।। उल्लेख है कि देवरामक पत्रही लिवम्म म नहा तिय वियच्छ, रह-रस-रसक्छ। चरित प्रथको लिखा लिखा कर विस्तार किया।' तथा मध्यभागयह कुछ अष्ट सा है कि-'मंग पुत्र निज कुलमंडण मणित्थित गम्भणि वसहिं विगु ॥ दिगणाई सुसत्तमु घोमणु दिणु । पाल्हा साह है, जो मग्गहा (१) की जनताका दुःख मउ माहं पुराणु हुमा दस माम और रोग मिटाना है। साथ ही, कविकी प्रार्थना है कि सउण कुणंतु जणाह मणस्स |
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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