SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 544
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनकान्त वीरसेवामन्दिरके विशेष महायक दम हजार रूपयको नई महायता श्रीमान माह शान्तिप्रमादजी जैन, हालामयानगर قررررربزهرة प्रामान माह शान्तिप्रसादमी जन डालमियानगर जो श्राप amमामन्दिरका बरा हा प्रमकी दृष्टिय दम्वतं कि डालमिया मिमंट, भाग्न हुनश्याम गहनाम है उममहान वाल दास मा कायाका महना उपयोगिता इन्दुस्तान प्रादि अनक कापन्यांक डायरक्टर और भारत का श्रापका अनुभव और श्राप उनक प्रनि गात अनुगग अन्च लव्च प्रविष्ट व्यापारा है बड़ा हा उदार प्रानिक वन । इमाम वीरमगामन्दिरका श्राप शुरूम ही अपना मजन है । व्यापारम पार जहा एक हाय विल धनसम्पनि- महायता लक्ष्य बनाय हुए है और उस इमस पहल कराव का उपार्जन करते है वहा दसर हाथम बराबर लोक सवा पन हजार ४८०० रुपयकी सहायता प्रदान कर चुक कामामे उम्मका प्राय वितरण भी करते रहते है जिमम स्पष्ट है जिसका परिचय हमी वर्षक अनकान्तकी प्रथम किरणमे निकल कि आप अपनी उपा जन धनसम्पनिमें अधिक ग्रामति नहीं बन चुका है । हालम प्रापन वीरमवामन्दिरका धाक प्रकाशनार्थ -प्रामविको बढनका अमर ही नहीं देतं. आपका लाभ-माह दस हजार १०००० रुपयकी नई महायनाका वचन दिया वाण वं विवक जागृत और इलिय श्राप परच प्रमों और ..) का चेक पत्रक माम भेजकर उसका भेजना में दानवार' है। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती रमादाजी भी. प्रारम्भ भी कर दिया है. जिसक लिय श्राप भाग धन्यवादक जोकि भारतक सुप्रसिद्ध व्यापारी रामकृष्ण डालमियाजीकी पात्र है, और मैं आपकी इम कृपाक लिय बहत ही प्राभारा विदुषी मुपत्रा है, अच्छी दानशाला है. उन्हान पिछले दिनों है। मग नो निरन्तर यह हार्दिक भावना है कि प्राप अपनी धर्ममाता (मामक वर्गवामक अवसरपर चारलाग्यकी अधिकाधिक रूपम दानवनी लक्ष्मीक म्वामी बनें, आपका भारी रकम दानमे निकाली थी। हननपर भी अभिमान आप वरद हाथ जैनममाजक सिर पर मदा बना रहे और उसक को छूकर नही गया, आप बहुत ही नम्र एक मरल स्वभाव- द्वारा नमाहिन्य, इतिहास एवं पुरानम्वका उद्धार होकर जैन क युवक है. गुण-ग्राहक हैं, और जैनममाजम्पी प्रकाशमं ममाजका मम्नक ऊंनाही उठ। एक उदीयमान नक्षत्रकी नरहम देदीप्यमान है। जुगलकिशोर
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy